Vishwakarma Puja: कल किसी भी प्रकार के औजार अपने हाथों में न लें

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Sep, 2023 07:16 AM

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भारत और विशेष कर हिंदू धर्म में दो त्योहारों को छोड़कर तमाम पर्व व त्यौहार भारतीय तिथियों के अनुसार मनाए जाते हैं, केवल मकर संक्रांति (14 जनवरी) और विश्वकर्मा पूजा (17 सितम्बर) का आयोजन अंग्रेजी

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Vishwakarma Puja 2023:: भारत और विशेष कर हिंदू धर्म में दो त्योहारों को छोड़कर तमाम पर्व व त्यौहार भारतीय तिथियों के अनुसार मनाए जाते हैं, केवल मकर संक्रांति (14 जनवरी) और विश्वकर्मा पूजा (17 सितम्बर) का आयोजन अंग्रेजी तारीख पर किया जाता है। निर्माण के देवता यानी भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर वर्ष 17 सितम्बर को देश भर के शिल्पकार विशेष रूप से करते हैं। देश के कई हिस्सों में भव्यता और उत्साह से विश्वकर्मा पूजा की जाती है। बंगाल में तो मजदूर वर्ग के लोग न केवल बड़ी धूमधाम से यह पूजा करते हैं, बल्कि इस दिन किसी प्रकार के औजार अपने हाथों में नहीं लेते।

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मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए अनेक भव्य महलों, आलीशान भवनों, हथियारों और सिंहासनों का निर्माण किया। मान्यता यह भी है कि एक बार असुरों से परेशान देवताओं की गुहार पर विश्वकर्मा जी ने महर्षि दधीचि की हड्डियों से देवताओं के राजा इंद्र के लिए वज्र बनाया था। यह वज्र इतना प्रभावशाली था कि असुरों का सर्वनाश हो गया।

यही वजह है कि सभी देवताओं में भगवान विश्वकर्मा का विशेष स्थान है। विश्वकर्मा जी ने एक से बढ़कर एक भवन बनाए। उन्होंने रावण की लंका, श्री कृष्ण की द्वारिका, पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ और हस्तिनापुर का निर्माण किया।

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माना जाता है कि उन्होंने उड़ीसा स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए भगवान जगन्नाथ समेत बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं का निर्माण भी अपने हाथों से किया था। इसके अलावा उन्होंने कई बेजोड़ हथियार बनाए, जिनमें भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र और यमराज का कालदंड शामिल हैं।

यही नहीं, उन्होंने दानवीर कर्ण के कुंडल और पुष्पक विमान भी बनाया। माना जाता है कि रावण के अंत के बाद श्री राम, श्री लक्ष्मण व सीता जी और अन्य साथी इसी पुष्पक विमान पर बैठकर अयोध्या लौटे थे।

भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को विश्वकर्मा पूजा, विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। कहते हैं, इसी दिन भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के सातवें धर्मपुत्र के रूप में जन्म लिया था। भगवान विश्वकर्मा को ‘देवताओं का शिल्पकार’, ‘वास्तुशास्त्र का देवता’, ‘प्रथम इंजीनियर’, ‘देवताओं का इंजीनियर’ और ‘मशीनों का देवता’ भी कहा जाता है।

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विष्णु पुराण में विश्वकर्मा को ‘देव बढ़ई’ कहा गया है। यही वजह है कि हिन्दू समाज में विश्वकर्मा पूजा का विशेष महत्व है। हो भी क्यों न, अगर मनुष्य को शिल्प ज्ञान न हो तो वह निर्माण कार्य नहीं कर पाएगा, निर्माण नहीं होगा तो भवन और इमारतें नहीं बनेंगी, जिससे मानव सभ्यता का विकास रुक जाएगा। मशीनें और औजार न हों तो दुनिया तरक्की नहीं कर पाएगी।

कहने का अर्थ है कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक विकास के लिए शिल्प ज्ञान होना बेहद जरूरी है। अगर शिल्प ज्ञान जरूरी है तो शिल्प के देवता विश्वकर्मा की पूजा का महत्व भी बढ़ जाता है। भारतीय परम्परा में निर्माण कार्य से जुड़े लोगों को ‘विश्वकर्मा की संतान’ माना जाता है।

 

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