दामोदार मंदिर में शुरू हुई गिरराज शिला की परिक्रमा

Edited By Jyoti,Updated: 01 Jan, 2021 04:40 PM

vrindavan damodar mandir

मथुरा: वृन्दावन के सप्त देवालयों में अपनी अलग पहचान बना चुके राधा दामोदर मन्दिर में नौ माह के बाद उस गिररज शिला की परिक्रमा शुरू हुई जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं संत सनातन गोस्वामी को दिया था।

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मथुरा:
वृन्दावन के सप्त देवालयों में अपनी अलग पहचान बना चुके राधा दामोदर मन्दिर में नौ माह के बाद उस गिररज शिला की परिक्रमा शुरू हुई जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं संत सनातन गोस्वामी को दिया था। वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण पिछले साल 25 मार्च से बन्द शिला की परिक्रमा नये साल के पहले दिन शुक्रवार को शुरू होने के पहले शिला का घंटे, घड़ियाल, शंखध्वनि एवे वैदिक मंत्रों के मध्य पंचामृत अभिषेक किया गया और 108 तुलसी दल अर्पित किये गए इसके बाद ही परिक्रमार्थियों को शिला की परिक्रमा करने की अनुमति दी गई। परिक्रमा की अनुमति से प्रफुल्लित श्रद्धालुओं ने ‘श्री राधादामोदर लाल की जय' और ‘गिररज महाराज की जय' के उदघोष के साथ परिक्रमा शुरू की। जिन परिक्रमार्थियों ने कोविड-19 के नियमों का पालन नही किया तथा मास्क भी नही लगाया उन्हें परिक्रमा करने की अनुमति नही दी गई। 
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यह शिला इतनी चमत्कारी है कि इसकी परिक्रमा करके प्रभुपाद जी विदेश गए और वहां पर भी भारतीय संस्कृति की ध्वजा फहराई और अन्ततोगत्वा वे इस्कान के प्रवर्तक हुए। मन्दिर के सेवायत आचार्य बलराम गोस्वामी ने बताया कि यह शिला स्वयं प्राकट्य विग्रह से भी अधिक महत्वपूर्ण है तथा भावपूर्ण परिक्रमा करनेवाले को कभी निराश नही करती। तपस्वी संत सनातन गोस्वामी नित्य वृन्दावन से पैदल गोवर्धन जाते थे तथा वहां गिररज जी की सप्तकोसी परिक्रमा कर लौटकर मन्दिर परिसर में बनी अपनी कुटिया में विश्राम करते थे। अधिक वृद्ध होने पर एक बार गोवर्धन परिक्रमा करने के दौरान वे थककर बैठ गए तो ठाकुर जी प्रकट हो गए। उन्होने सनातन गोस्वामी से कहा कि वृद्ध हो जाने के कारण वे अब गोवर्धन की परिक्रमा न किया करें। परिक्रमा बन्द करने की सुनकर सनातन के अश्रुधारा बह निकली तो ठाकुर ने पास की एक शिला को उठाया और उस पर जैसे ही अपने चरण कमल रखे शिला मोम की तरह पिघल गई और उस पर ठाकुर के चरण कमल अंकित हो गए। इसके बाद उन्होंने वंशी बजाकर सुरभि गाय को बुलाया और उसका खुर उस पर अंकित करा दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी लकुटी और वंशी को शिला पर रखा तो उसके भी चिन्ह अंकित हो गए। 
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सेवायत आचार्य ने बताया कि इन चिन्हों के अंकित होने के बाद ठाकुर जी ने उस शिला को सनातन को यह कहकर दे दिया कि वे वृन्दावन में इसे अपनी कुटिया में रखकर इसकी चार परिक्रमा करेंगे तो उनकी गिरिराज की एक परिक्रमा हो जाएगी। इसके साथ ही ठाकुर जी अन्तर्ध्यान हो गए। सनातन गोस्वामी का शरीर पूरा होने पर यह शिला मन्दिर में रख दी गई तथा जो लोग अधिक आयु होने या रोगग्रस्त होने के कारण गिररज की परिक्रमा नही कर सकते,वे इस मन्दिर में विशेष रूप से आकर शिला की परिक्रमा करते हैं। समय के साथ ही इस शिला की परिक्रमा करनेवालों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई तथा सभी आयु के लोग इस परिक्रमा को करने लगे थे मगर कोविड-19 के कारण जब से मन्दिर बन्द हुए तब से शिला की परिक्रमा रोक दी गई थी। इस शिला की परिक्रमा शुरू होने से श्रद्धालुओं को प्राप्त होने वाला असीम आनन्द पहले दिन की परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के चेहरे के भाव में उस समय परिलक्षित हो रहा था जब वे ‘श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव' गाते हुए परिक्रमा कर रहे थे। 
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