Kundli Tv- क्यों मार डाला परशुराम ने अपनी मां को

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 29 Oct, 2018 10:31 AM

why did parashuram kill his mother

भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ऋषि जमदग्नि व देवी रेणुका के पुत्र हैं। पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने पिता की आज्ञा से अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया

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भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ऋषि जमदग्नि व देवी रेणुका के पुत्र हैं। पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने पिता की आज्ञा से अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया था तथा अपने पिता महर्षि जमदग्नि से प्राप्त वर के बल पर परशुराम जी ने माता रेणुका को पुनर्जीवित किया व उनकी स्मृति को भी समाप्त किया।
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परशुराम त्रेता युग में एक महान मुनि हुए हैं, जो लोक मान्यता के अनुसार आज भी जीवित हैं। उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा किए गए पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इंद्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। इन्हें श्री हरि का अवतार कहा जाता है। परशुराम के चार बड़े भाई थे लेकिन गुणों में यह सबसे बड़े थे।

एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन के लिए गंगा तट पर जल लेने गई रेणुका आसक्त हो गई और कुछ देर तक वहीं रुक गई। हवन काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचार करने के दण्ड स्वरूप सभी पुत्रों को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।
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अन्य भाइयों द्वारा ऐसा दुस्साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का सिर गरदन से अलग कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तो उन्होंने तीन वरदान मांगे- मां पुनर्जीवित हो जाएं, उन्हें मरने की स्मृति न रहे और भाई फिर से जीवित हो जाएं। 
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जमदग्नि ने उन्हें तीनों वरदान दे दिए। परशुराम जी की माता तो पुनः जीवित हो गई पर परशुराम पर मातृहत्या का पाप चढ़ गया। राजस्थान के चितौड़ जिले में स्थित मातृ कुण्डिया तीर्थ स्थान पर परशुराम मातृहत्या के पाप से मुक्त हुए। इस ही तीर्थ के पास स्वयं भू शिवलिंग स्थापित है जहां परशुराम जी ने महादेव का कठोर तप कर उनसे धनुष, अक्षय तूणीर एवं दिव्य फरसा प्राप्त किया था। इस तीर्थ का निर्माण स्वंय परशुराम ने पहाड़ी को अपने फरसे से काट कर किया था। 
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