क्यों भौतिक इच्छाएं रोकती हैं आध्यात्मिक पिरामिड में आपकी प्रगति?

Edited By Updated: 06 Dec, 2025 11:59 AM

material desires vs spiritual growth

इस सृष्टि की संरचना पिरामिड की तरह है। इस पिरामिड में आपकी इच्छायें आपका स्थान निर्धारित करती है। प्रत्येक प्राणी  एक इच्छा के साथ जन्म लेता है और उस इच्छा के अनुकूल गुरु धारण करता है l

Material Desires Vs Spiritual Growth: इस सृष्टि की संरचना पिरामिड की तरह है। इस पिरामिड में आपकी इच्छायें आपका स्थान निर्धारित करती है। प्रत्येक प्राणी  एक इच्छा के साथ जन्म लेता है और उस इच्छा के अनुकूल गुरु धारण करता है l आप गुरु का हाथ पकड़कर पिरामिड के उस  स्तर तक पहुंचते है जहां आपकी इच्छा पूर्ण होती है l समस्या उसके बाद शुरू होती है क्योंकि सामान्यतः व्यक्ति वही फंस के  रह जाता है और आगे जाने में असमर्थ होता है l फिर उसकी पतन यात्रा शुरू हो जाती है l
 
कलियुग की समस्या है की हमारी इच्छायें स्थूल में सन्निहित है, जन साधारण की सोच स्थूल तक ही सीमित है और यही कारण  है की वह गुरु को ढूंढते समय भी भौतिक मापदंड का प्रयोग करता है, जैसे कि उनका आश्रम कितना बड़ा हैं, वे कितने कारखानों के मालिक हैं आदि l परिणाम स्वरूप वह गुरु का सार नहीं समझ पता हैं ll

वर्तमान समय में व्यक्ति गुरु से अधिक आदर गणित के शिक्षक को मिलता है क्यूंकि सामान्य सोच यह है की गणितज्ञ से जो  मिलेगा कम से कम कही काम तो आएगा। परन्तु गुरु से क्या प्राप्त होगा। इसकी न तो किसी को समझ है और न ही पाने की  इच्छा l भौतिक में सन्निहित रहने में कोई बुराई नहीं हैं क्योंकि अधिकांश लोगो के लिए वही शुरुआत होती हैं | परन्तु यदि आपने  गुरु धारण किये हैं और आप उनके दिखाए मार्ग पर चल रहे हैं और यदि फिर भी आपकी इच्छाओं में परिवर्तन नहीं आ रहा है , तब या तो आप गलत हैं या फिर गलत स्थान पर हैं l

योग भौतिक जगत में अधिक से अधिक प्राप्त करने का मार्ग नहीं है बल्कि इस यात्रा में स्थूल से ऊपर उठकर सिद्धियां प्राप्त  कर उनके भी परे जाना होता है l आपको तुरंत छोड़ने कि आवश्यकता नहीं है परन्तु छोड़ने कि इच्छा सदैव होनी चाहिए, तब आप स्वतः ही इस मार्ग पर चलेंगे और जो भी आपके लिए भारी है स्वयं ही छूट जायेगा और आपको परमात्मा कि अनुभूति होगी। 

रहीम अपने दोहे में व्याख्या करते है कि शतरंज के खेल में वज़ीर एक ऐसा मोहरा है जो तिरछा चलता है और कई बड़े- बड़े  मोहरों को मारता है परन्तु वह रानी नहीं बन सकता और न ही वह सर्वश्रेष्ठ ( शतरंज के खेल में- रानी ) को प्राप्त कर सकता l दूसरी तरफ एक सामान्य प्यादा केवल सीधा चल सकता है तथा भौतिक में भी बहुत कम प्राप्त करने कि क्षमता रखता है, परन्तु  यदि वह अंतिम चौखाने को लक्ष्य बन ले तो रानी बन जाता है l ठीक इसी तरह जीवन में भी अगर आपका ध्यान उस अंतिम  चौखाने पर है, तो आप भी उसे प्राप्त कर सकते है l गुरु और परमात्मा पर केंद्रित ध्यान आपको पिरामिड में क्रमागत उन्नति  प्रदान करेगा  l

जब आप गुरु से मिलते है तो धीरे- धीरे आपकी इच्छायें सुक्ष्म की ओर परिवर्तित होने लगती है l जैसे- जैसे आप आध्यात्मिकता  के पिरामिड में ऊपर कि ओर जाते है। वैसे-वैसे आगामी स्तरों कि समायोजन कि शक्ति कम होतीजाती है l परिणामतः आस पास कम लोग रह जाते है l ठीक उसी प्रकार जैसे कि हिमालय की ऊपरी चोटियों पर में कम लोग पाए जाते है क्योंकि उस  वातावरण में जीवित रहने का सामर्थ्य कुछ ही में हैं l

पिरामिड में ऊपर की और एक कदम का अर्थ नीचे से एक कदम दूर, जो की भौतिक इच्छा और भौतिक सृष्टि का प्रतिक है l तो   यदि आप नेटवर्किंग, इमारतों के ठेके, सम्पति, व्यवसाय इत्यादि के बारे में सोच रहे है तो वास्तव में आप विपरीत सिद्धांत पर  काम कर रहे है और पिरामिड के आधार की और बड़ रहे हैं l

आधुनिक काल में गुरु शब्द को स्थूल में बांधा जा रहा है, प्रतिदिन 'लव गुरु ', 'व्यापार गुरु ', ' मैनेजमेंट गुरु' आदि पदवियां लोकप्रिय हो रही है। इससे पहले सिर्फ गुरु थे। इससे लोगों की खेदजनक विचारधारा का अनुमान लगाया जा सकता है l आज  के समय में तो तीर्थ स्थान को भी पिकनिक स्पॉट का रूप दे दिया गया हैं , यहां लोग भौतिक आकांक्षाओं को पूरा करने की आशा से जाते है। यदि आप भौतिक उपलब्धियों के प्रार्थी हैं, तो आपको गुरु संगत की आवश्यकता नहीं है। सामान्य  दान, सेवा और सृष्टि के कानूनों का पालन भौतिक इच्छाओं की  परिपूर्ति  के लिए पर्याप्त है। गुरु की आवष्यकता तब है जब आप भौतिक से परे जाना चाहते हैं, और योग की सिद्धियों के इच्छुक हैं, जन्म और मृत्यु के चक्र से बाहर जाने हेतु ।

अध्यात्म के पिरामिड में आप जितने ऊपर स्थित है। वहां से गिरने का घात उतना ही अधिक होगा। यह पतन आपको नीचे के  लोकों में ले जाता है और यह तभी होता है। जब आप गुरु का हाथ छोड़ते है या उनसे ध्यान हटा लेते है l कबीर दोहे में कहते है  “कबीरा ते नर अंध हैं जो गुरु कहते और हरि रूठे गुरु ठोर हैं गुरु रूठे नहीं ठोर ”

अतः गुरु बनाना एक जोखिम भरा प्रस्ताव है l तभी गुरु बनाएं जब आप में परमात्मा और योग सिद्धियो को पाने की इच्छा दृण  हो, शारीरिक संतोष और सुख के लिए नहीं बल्कि उससे परे जाने के लिए l

अश्विनी  गुरुजी

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!