Edited By Sarita Thapa,Updated: 04 Dec, 2025 01:50 PM

एक बार संत तिरुवल्लुवर एक नगर में गए। जैसे ही लोगों को पता लगा कि तिरुवल्लुवर वहां आए हैं लोगों की भीड़ जुटने लगी। हर कोई उनसे अपनी समस्याओं का समाधान चाहता था।
Sant Thiruvalluvar Story: एक बार संत तिरुवल्लुवर एक नगर में गए। जैसे ही लोगों को पता लगा कि तिरुवल्लुवर वहां आए हैं लोगों की भीड़ जुटने लगी। हर कोई उनसे अपनी समस्याओं का समाधान चाहता था।
एक दिन एक सेठ उनके पास आया और कहा, ‘‘गुरुवर मैंने पाई-पाई जोड़कर अपने इकलौते पुत्र के लिए अथाह सम्पत्ति जोड़ी मगर वह मेरे गाढ़े पसीने की कमाई को बड़ी बेदर्दी के साथ बुरे कामों में लुटा रहा है? ऐसे तो वह सारी सम्पत्ति लुटा देगा और सड़क पर आ जाएगा।’’
तिरुवल्लुवर मुस्कुरा कर बोले, ‘‘सेठ जी तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिए कितनी सम्पत्ति छोड़ी थी।’’
सेठ ने कहा, ‘‘वे बहुत गरीब थे, कुछ भी नहीं छोड़ा था।’’ संत बोले, “जबकि इतना धन छोड़ने के बावजूद तुम यह समझ गए कि तुम्हारा बेटा गरीबी में दिन काटेगा।’’ सेठ बोला, ‘‘आप सच कह रहे हैं प्रभु, परन्तु मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि गलती कहां हुई।’’

तिरुवल्लुवर बोले, ‘‘तुम यह समझकर धन कमाने में लगे रहे कि अपनी संतान के लिए दौलत का अंबार लगा देना ही एक पिता का कर्त्तव्य है। इस चक्कर में तुमने अपने बेटे की पढ़ाई व अन्य संस्कारों के विकास पर ध्यान नहीं दिया।’’
पिता का पुत्र के प्रति प्रथम कर्त्तव्य यही है कि वह उसे पहली पंक्ति में बैठने योग्य बना दे। बाकी तो सब कुछ वह अपनी योग्यता के बलबूते हासिल कर लेगा। सेठ की सारी बातें समझ में आ गई थीं, उसने बेटे को सुधारने का प्रण किया और वहां से चल दिया।

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