भारत का पहला गणपति मंदिर, मात्र होती है मुख की पूजा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 18 Sep, 2021 09:40 AM

world famous trinetra ganesha ji temple ranthambore

प्रत्येक कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से की जाती है। भारतवर्ष में अनेक गणेश मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। इनमें से ही एक है रणथम्भौर का गणेश मंदिर। राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर के निकट

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World Famous Trinetra Ganesha ji Temple Ranthambore: प्रत्येक कार्य की शुरुआत गणेश पूजा से की जाती है। भारतवर्ष में अनेक गणेश मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं। इनमें से ही एक है रणथम्भौर का गणेश मंदिर। राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित रणथंभौर दुर्ग में स्थित गणेश मंदिर आस्था एवं श्रद्धा के लिए जन-जन में प्रसिद्ध है। रणथम्भौर मुख्यत: अपनी अभेद्य संरचना, हजारों वीरांगनाओं के जौहर एवं शरणागत की रक्षा के लिए जीवन उत्सर्ग करने वाली परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है तथा गणेश मंदिर आज इसकी एक धार्मिक पहचान बन चुका है।

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Trinetra Ganesh Temple Ranthambore मात्र मुख की होती है पूजा
यह मंदिर 1579 फुट की ऊंचाई पर अरावली और विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित है। दुर्ग के मध्य दक्षिणी परकोटे पर बने इस प्राचीन गणेश मंदिर के प्रति लोगों के अथाह श्रद्धा है। सिंदूर लेपन के कारण इसका वास्तविक रूप देख पाना सम्भव नहीं है परंतु कहा जाता है कि यहां के गणपति की मात्र मुख की पूजा होती है। गर्दन, हाथ, शरीर, आयुध एवं अन्य अवयव इस प्रतिमा में नहीं है।

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प्रतिमा से जुड़ी मान्यता
ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश यहां स्वयंभू हो रहे थे तभी किसी ने उन्हें देख लिया तथा ऐसे में उनका प्राकट्य रुक गया तथा वह इसी रूप में रह गए।

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देश-विदेश से आते हैं गणेश जी के नाम पत्र
यद्यपि ऐसी मान्यताएं कितनी सत्य हैं या नहीं यह तो स्पष्टता से नहीं कहा जा सकता परंतु रणथम्भौर के गणेश जी लाखों लोगों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं ऐसी आस्था जन-जन में है। यह एक रोचक सत्य है कि विवाह एवं अन्य मांगलिक अवसर पर कार्यों को प्रारंभ करने से पूर्व रणथम्भौर के गणेश जी को निमंत्रण देने एवं उनको कार्य में पधारने का आग्रह करना एक परम्परा है। यहां देश-विदेश से गणेश जी के नाम डाक आती है जिन्हें पुजारी मूर्ति के सामने भक्तों की कामना पूर्ण करने के लिए रखते हैं। ये पत्र विवाह निमंत्रण, मकान प्रवेश, पुत्रादि की कामना आदि विषयों से संबंधित रहते हैं।

History of ranthambore ganesh temple मंदिर के निर्माण का इतिहास
मंदिर के निर्माण के बारे में अनेक किवदंतियां हैं परन्तु यह निर्विवाद है कि 10वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण किया गया होगा।
एक मान्यता के अनुसार रणथम्भौर के किले को जब मुगलों ने लंबे समय तक घेरे रखा था। किले में राशन का सामान तक ले जाने का रास्ता रोक दिया गया था। तब राजा हमीर के सपने में गणपति आए और उन्होंने उसे पूजन करने को कहा। राजा ने किले में ही ये मंदिर बनवाया। यह भी कहा जाता है कि यह भारत का पहला गणपति मंदिर है। यहां की मूर्ति भी भारत की 4 स्वयंभू मूर्तियों में से एक है। चौहान राजाओं के काल से ही यहां ‘गणेश चौथ’ का मेला लगता आ रहा है।  
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The Trinetra Ganesha Temple Trinetra Ganesh Temple त्रिनेत्री हैं गणेश जी
रणथम्भौर के गणेश त्रिनेत्री हैं यानी यहां पर भगवान गणेश की जो मूर्ति है, उसमें उनकी तीन आंखें हैं। ऐसी गणेश जी की मुखाकृति अन्य गणेश मंदिरों से नहीं मिलती है। यहां भगवान अपनी पत्नी रिद्धि और सिद्धि और अपने पुत्र शुभ-लाभ के साथ विराजित हैं। भगवान गणेश का वाहन मूषक (चूहा) भी मंदिर में है।

Ganesh temple sawai madhopur ranthambore fort हमेशा सुरक्षित रहा मंदिर
रणथम्भौर पर मुस्लिमों के अनेक हमले हुए एवं मुगलों खिलजी शासकों के अधीन भी यह दुर्ग रहा। अपनी चमत्कारिक शक्ति से यह देवालय सदियों से सुरक्षित रहा है और आज भी अपने गौरवशाली अतीत को छोटे से गर्भगृह में समेटे जन-जन की आस्था का वंदनीय स्थल बना हुआ है।

गणेश चतुर्थी पर लगता है मेला
भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को जिसे गणेश चतुर्थी भी कहते हैं, को किले के मंदिर में भव्य समारोह मनाया जाता है और विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस अवसर पर ऐतिहासिक एवं संभवत: देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला लगता है। इस दौरान प्रतिदिन यहां सैंकड़ों दर्शनार्थी दर्शन के लिए आते हैं तथा बुधवार को विशेष मेला लगता है।

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दीवारों पर फेंके जाते हैं अन्न के दाने
यहां पर ग्रामीण एवं किसान बड़ी संख्या में मनौतियां मांगने आतेे हैं। एक दिलचस्प परम्परा है कि मंदिर की दीवारों से टकराकर जो अन्न के दाने बिखरते हैं उसे ग्रामीण किसान बीन कर ले जाते हैं और अपने बीजों में मिलाकर बुआई करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी पैदावार अच्छी होगी। रणथम्भौर गणेश मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण घाटियों, मनोरम झीलों के करीब स्थित है। यहां बहुरंगी वस्त्रों से सुसज्जित ग्रामीणों के साथ यह बहुत ही सुंदर लगता है। यात्री 4 किलोमीटर पैदल चल कर एवं सैंकड़ों सीढिय़ों को चढ़ कर इस मंदिर पर पहुंचते हैं तो उनका मन शांत एवं प्रसन्नचित हो जाता है।
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कैसे पहुंचें
हवाई मार्ग :
रणथम्भौर से लगभग 150 कि.मी. दूर जयपुर एयरपोर्ट है।
रेल मार्ग : रणथम्भौर से लगभग 10 कि.मी. की दूरी पर सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन है।
सड़क मार्ग : लगभग सभी बड़े शहरों से रणथम्भौर के लिए बसें चलती हैं।

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