Edited By Rohini Oberoi,Updated: 07 Oct, 2025 01:04 PM

2025 में वैश्विक मुद्रा बाजारों में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिली है जहां एक ओर अमेरिकी डॉलर अपनी शुरुआती बढ़त गंवाकर फिसल गया वहीं यूरो और मैक्सिकन पेसो ने जबरदस्त मजबूती हासिल की। हालांकि इन सबके बीच भारतीय रुपया विपरीत दिशा में चला और कमजोर हुआ...
इंटरनेशनल डेस्क। 2025 में वैश्विक मुद्रा बाजारों में बड़ी उथल-पुथल देखने को मिली है जहां एक ओर अमेरिकी डॉलर अपनी शुरुआती बढ़त गंवाकर फिसल गया वहीं यूरो और मैक्सिकन पेसो ने जबरदस्त मजबूती हासिल की। हालांकि इन सबके बीच भारतीय रुपया विपरीत दिशा में चला और कमजोर हुआ जिसने वैश्विक आर्थिक कारकों और स्थानीय नीतिगत विकल्पों के बीच के विरोधाभास को उजागर किया है।
अमेरिकी डॉलर: शुरुआती चमक के बाद बड़ी गिरावट
अमेरिकी डॉलर ने साल की शुरुआत तो मजबूती के साथ की लेकिन जल्द ही यह दबाव में आ गया।व्यापारियों द्वारा ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद और विकास दर में नरमी के संकेत मिलने के कारण डॉलर की मांग कम हो गई। इन कारकों के चलते अमेरिकी डॉलर सूचकांक (US Dollar Index) 2025 तक 9.5% नीचे चला गया।
यूरोप और मेक्सिको की करेंसी मजबूत
यूरोपीय और मैक्सिकन मुद्राओं ने डॉलर की कमजोरी का भरपूर फायदा उठाया और मजबूत हुए:
यूरो (€) की उड़ान: डॉलर के मुकाबले यूरो में लगभग 13% की भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई। इस मजबूती से अमेरिकियों के लिए यूरोपीय संघ की यात्राएं महंगी हो गईं जबकि यूरोपीय लोगों के लिए अमेरिकी सामान थोड़ा सस्ता हो गया। पेसो में इस साल लगभग 12% की बढ़ोतरी हुई। इसे उच्च स्थानीय ब्याज दरों और निकटवर्ती क्षेत्रों से जुड़े स्थिर निवेश से काफी मदद मिली।
भारतीय रुपया विपरीत दिशा में
जहां अधिकांश प्रमुख मुद्राएं डॉलर के मुकाबले मजबूत हुईं वहीं भारतीय रुपया (₹) विपरीत दिशा में चला। रुपया 2025 में लगभग 3-4% नीचे चला गया। रुपये की यह गिरावट एक स्पष्ट चेतावनी है कि वैश्विक पूंजी प्रवाह और देश के स्थानीय नीतिगत विकल्प एक ही समय में किसी भी मुद्रा को अन्य वैश्विक मुद्राओं से अलग दिशाओं में धकेल सकते हैं।
यह घटनाक्रम दिखाता है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आर्थिक नीतियां और पूंजी का प्रवाह कितनी तेजी से किसी भी देश की मुद्रा के मूल्य को प्रभावित कर सकता है।