सितंबर Gen-Z बगावत पर बड़ा खुलासा: नेपाल की सुरक्षा एजेंसियों का काला चेहरा बेनकाब, HRW की रिपोर्ट ने मचाया भूचाल

Edited By Updated: 20 Nov, 2025 06:16 PM

nepali security forces used disproportionate force during september uprising

HRW की रिपोर्ट ने खुलासा किया कि सितंबर में हुए Gen-Z आंदोलन के दौरान नेपाल की सुरक्षा एजेंसियों ने अत्यधिक बल का उपयोग किया। 8 सितंबर को काठमांडू में पुलिस की गोलीबारी से 17 लोग मारे गए, जबकि दो दिनों में कुल 76 मौतें हुईं। HRW ने अंतरिम सरकार से...

International Desk: नेपाल में सितंबर में हुई Gen-Z बगावत पर बड़ा खुलासा सामने आया है। ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) की रिपोर्ट ने कहा है कि नेपाल की सुरक्षा एजेंसियों ने छात्रों और युवाओं पर अनुचित, अत्यधिक और जानलेवा बल का इस्तेमाल किया, जिसकी वजह से सिर्फ काठमांडू में 17 लोगों की मौत हुई। HRW ने अंतरिम सरकार से कहा है कि यह सिर्फ हिंसा नहीं, मानवाधिकारों का बड़ा हनन है और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई अनिवार्य है। नेपाल में सितंबर 2025 में हुए Gen-Z आंदोलन को लेकर ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) ने एक बड़ी और गंभीर रिपोर्ट जारी की है।

 

रिपोर्ट के अनुसार, 8 सितंबर को राजधानी काठमांडू में युवाओं के प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस ने तीन घंटे लगातार फायरिंग की, जिसमें 17 लोगों की जान चली गई। यह आंदोलन भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के विरोध में शुरू हुआ था। युवाओं ने संसद भवन के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसके बाद पुलिस ने भीड़ पर सीधे सिर, छाती और पेट पर गोलियां चलाईं। HRW की जांच में कहा गया कि पुलिस को ऐसी कोई स्थिति नहीं मिली जिसमें जानलेवा बल का उपयोग जरूरी था। 9 सितंबर को हिंसा और बढ़ गई। कई जगह भीड़ ने पुलिस थानों पर हमला किया, सरकारी इमारतों में आग लगाई, नेताओं और पत्रकारों पर हमला हुआ।

 

उस दिन की हिंसा में कुल 76 लोगों की मौत दर्ज की गई, जिनमें तीन पुलिसकर्मी भी शामिल थे। इसी अराजकता के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने उसी शाम इस्तीफा दे दिया। इसके बाद पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कर्की के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी, जिसने एक उच्च-स्तरीय जांच समिति बनाई है। HRW की टीम ने 52 गवाहों, पत्रकारों, डॉक्टरों और पीड़ितों से बातचीत की। फोटो, वीडियो और जगह-जगह जाकर की गई जांच में कई गंभीर तथ्य सामने आए:

 

HRW के मुख्य खुलासे

  • पुलिस ने चेतावनी दिए बिना सीधे गोली चलाई।
  • भीड़ में शामिल 33 लोगों को हिरासत में लेकर पीटा और धमकाया गया।
  • 47 शव काठमांडू के एक ही मुर्दाघर में पहुंचे, जिनमें से 35 की मौत “हाई-वेलोसिटी गनशॉट” से हुई।
  • पुलिस 9 सितंबर को कई जगह हिंसा रोकने में विफल रही।
  • अस्पताल के भीतर भी पुलिस ने लाठियां चलाईं, एक मेडिकल स्टाफ घायल हुआ।
  • दोनों दिनों में एंबुलेंस पर हमले हुए, पत्रकार घायल हुए, मीडिया दफ्तरों पर भीड़ का हमला हुआ।

 

एक सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने HRW को बताया कि नेपाल पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के मानकों का पालन नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र के नियमों के मुताबिक, जान से मारने वाली गोली सिर्फ तभी चलाई जा सकती है जब सामने किसी की जान को तत्काल खतरा हो जो इस मामले में नजर नहीं आया।HRW ने कहा कि नेपाल की सरकार को यह समझना चाहिए कि बीते कई वर्षों से चल रही दण्डहीनता (impunity) ही इन घटनाओं की बड़ी वजह है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 10 नवंबर तक पुलिस ने 423 लोगों को गिरफ्तार तो किया, लेकिन 8 सितंबर को गोली चलाने वाले पुलिस अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। HRW ने अंतरिम सरकार से स्पष्ट शब्दों में कहा है कि: जांच स्वतंत्र, पारदर्शी और समयबद्ध हो।  दोषी चाहे पुलिस अधिकारी हों या राजनीतिक लोग सबके खिलाफ कार्रवाई हो।भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और अधिकारों की कमी जो युवा आंदोलन का कारण बने उन्हें ईमानदारी से संबोधित किया जाए।

 

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