दुनिया भर में भीषण आग का खतरा बढ़ा ! हर साल बढ़ेंगे 57 अत्यधिक गर्म दिन, छोटे-गरीब देशों पर पड़ेगा ज्यादा असर

Edited By Updated: 16 Oct, 2025 02:57 PM

the climate crisis is fueling massive fires around the world

वैश्विक जलवायु संकट के कारण जंगल की आग और अत्यधिक गर्मी में वृद्धि हो रही है। पिछले साल 37 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रभावित हुआ। छोटे और गरीब देशों पर इसका असर सबसे ज्यादा, जबकि बड़े उत्सर्जक देशों को कम झेलना पड़ेगा। विशेषज्ञ ग्रीनहाउस गैस कटौती...

International Desk: दुनिया जलवायु परिवर्तन के लगातार बढ़ते प्रभावों का सामना कर रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण जंगल की आग, बुशफायर और अत्यधिक गर्मी जैसी प्राकृतिक आपदाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। अमेज़न और कांगो के वनों से लेकर ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के शहरों तक, जलवायु संकट के दावे सबके सामने हैं। मेलबर्न विश्वविद्यालय के वरिष्ठ शोध अध्येता हैमिश क्लार्क के अनुसार, पिछले वर्ष दुनिया भर में लगभग 37 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जंगल की आग से प्रभावित हुआ। इसके कारण 10 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए और 215 अरब अमेरिकी डॉलर के घर और बुनियादी ढांचा खतरे में पड़े।

 

ऑस्ट्रेलिया में बुशफ़ायर ने पश्चिमी और मध्य क्षेत्रों में लाखों हेक्टेयर भूमि को जला दिया, जबकि अमेरिका के लॉस एंजिलिस में असामान्य रूप से नम मौसम और गर्म जनवरी ने आग की तीव्रता को बढ़ाया। दक्षिण अमेरिका के पैंटानल-चिकिटानो क्षेत्र में आग का प्रभाव 35 गुना अधिक रहा। जलवायु वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही, तो आग और गर्मी की घटनाएं और भी अधिक भीषण होंगी। उन्होंने आग से निपटने के लिए स्थानीय और क्षेत्रीय ज्ञान, प्रभावी वन प्रबंधन, घरों की तैयारी और आपदा प्रबंधन को जरूरी बताया।

 

अत्यधिक गर्मी का बढ़ता संकट
अमेरिका स्थित ‘वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन’ और ‘क्लाइमेट सेंट्रल’ के अध्ययन के अनुसार, सदी के अंत तक दुनिया को हर साल लगभग 57 अतिरिक्त “अत्यधिक गर्म” दिनों का सामना करना पड़ेगा। इसका सबसे अधिक असर छोटे और गरीब देशों पर होगा, जबकि अमेरिका, चीन और भारत जैसे बड़े उत्सर्जक देशों को अपेक्षाकृत कम असर झेलना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, पनामा को 149 अतिरिक्त गर्म दिन झेलने पड़ सकते हैं, जबकि अमेरिका और चीन को केवल 23-30 अतिरिक्त दिन ही झेलने होंगे। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि यह असमानता जलवायु न्याय की गंभीरता को दिखाती है। जिन देशों ने कम प्रदूषण फैलाया है, वे सबसे ज्यादा जलवायु संकट का सामना करेंगे।

 

वैश्विक कार्रवाई की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी देर नहीं हुई है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती, भूमि कटाई को रोकना और प्रकृति की रक्षा करना जरूरी है। आने वाले महीने में ब्राज़ील के बेलेम में होने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन (सीओपी30) में विश्व नेता, वैज्ञानिक और नागरिक समाज जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों पर चर्चा करेंगे। जलवायु परिवर्तन की वजह से जंगल की आग, अत्यधिक गर्मी और प्राकृतिक आपदाएं हर महाद्वीप में बढ़ रही हैं। वैश्विक कार्रवाई और स्थानीय तैयारी के बिना, मानवता और प्रकृति दोनों को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

 

 

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