जानिए, कब कष्टदायी होती है शनि की साढ़ेसाती

Edited By ,Updated: 15 Jul, 2016 01:39 PM

astrology

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शनि की गणना सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रह के रूप में की गई है। यह जितना अनिष्ट फल प्रदायक है उतना ही उत्कृष्ट

भारतीय ज्योतिष शास्त्र में शनि की गणना सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रह के रूप में की गई है। यह जितना अनिष्ट फल प्रदायक है उतना ही उत्कृष्ट और अभीष्ट फलदायक भी है।

 

विश्व के 25 प्रतिशत व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती और 16.66 प्रतिशत व्यक्ति इसकी ढैया के प्रभाव में सदैव रहते हैं। तो क्या 41.66 प्रतिशत व्यक्ति हमेशा शनि की साढ़ेसाती या ढैया के प्रभाव से ग्रस्त रहते हैं तो क्या उन लोगों पर जो न शनि की साढ़ेसाती और न ही उनकी ढैया के प्रभाव में होते हैं कोई विशेष संकट नहीं आते? यदि आते हैं तो फिर शनि को ही हम क्यों इस नजरिए से देखते हैं? सत्य तो यह है कि साढ़ेसाती का ढैया का प्रभाव शुभ होगा या अशुभ इसका निर्धारण करने के लिए हमें शनि के आकार-प्रकार, रूप-रंग और स्वभाव के साथ-साथ जन्म कुंडली में उसकी स्थिति और अन्य ग्रहों के साथ संबंधों पर भी ध्यान देना होगा।

 

शनि अन्य ग्रहों की अपेक्षा बहुत विशाल एवं सूर्य से सर्वाधिक दूरी पर स्थित है। यह पूर्णतया क्रांतिहीन ग्रह है और अन्यान्य ग्रहों की अपेक्षा इसकी गति भी सर्वाधिक मंद है। इसीलिए इसका नाम तम, शनेश्वर या मंद भी है। इसकी उत्पत्ति सूर्य से हुई है। सूर्य के गोल पिंड से एक अंग टूटकर अलग हो गया जो अत्यधिक वेग के कारण सूर्य से बहुत दूर जाकर एक निश्चित बिंदू पर अवस्थित हो सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से उसकी परिक्रमा करने लगा। इसके अर्कज, सूर्य पुत्र, भानुज आदि नामों का यही कारण है।

 

शनि का व्यास 75 हजार मील और सूर्य से इसकी दूरी 88 करोड़ मील है। सूर्य की एक पूरी परिक्रमा करने में इसे 295 वर्ष लग जाते हैं। हालांकि यह अपनी धुरी पर 10 घंटे 12 मिनट में ही एक चक्कर कर लेता है। हमारे 70 वर्ष शनि के एक वर्ष के बराबर होते हैं। एक भूचक्र अर्थात सभी (बारह) राशियों की एक परिक्रमा पूरी करने में इसे 29 वर्ष 5 माह 17 दिन और 5 घंटे लग जाते हैं। यह पृथ्वी से 89 करोड़ मील दूरी पर है और इसे एक राशि पर लगभग अढ़ाई वर्ष भ्रमण करना पड़ता है।

 

शनि तम प्रधान होने के नाते तामसी स्वभाव का है। इसमें नपुंसकत्व की मात्रा अधिक होती है। यह दो राशियों क्रमश: मकर और कुंभ का स्वामी है। तुला के 20 अंश तक इसकी उच्च राशि और मेष के 20 अंश तक इसकी नीच राशि मानी जाती है। कुंभ इसकी मूल त्रिकोण राशि है।

 

सूर्य, चंद्र और मंगल शत्रु ग्रह, मेष, कर्क, सिंह और वृश्चिक शत्रु राशि हैं जबकि बुध, शुक्र, और राहु इसके मित्र ग्रह और वृष, मिथुन, कन्या और तुला इसकी मित्र राशियां हैं। इसी प्रकार गुरु इसका न तो मित्र है और न ही शत्रु यानी सम है और धनु व मीन राशियां भी इसके लिए सम हैं।

 

इसी प्रकार मेष राशि जहां नीच राशि है, वहीं शत्रु राशि भी और तुला जहां मित्र राशि है वहीं उच्च राशि भी है। शनि वात रोग, मृत्यु, चोर-डकैती मामला, मुकद्दमा, फांसी, जेल, तस्करी, जुआ, जासूसी, शत्रुता, लाभ-हानि, दिवालिया, राजदंड, त्याग पत्र, राज्य भंग, राज्य लाभ या व्यापार-व्यवसाय का कारक माना जाता है।

 

शनि जिस राशि में स्थित होता है उससे तृतीय, सप्तम और दशम राशि  पर पूर्ण दृष्टि रखता है। इसकी ढैया अढ़ाई वर्ष की और साढ़ेसाती साढ़े सात वर्ष की होती है। सौर वर्ष की गणना से साढ़े सात वर्ष में 2700 दिन होते हैं जबकि एक राशि में सवा दो नक्षत्र के हिसाब से कुल 9 नक्षत्र होते हैं अर्थात तीन राशि नक्षत्रों के 27 चरण के भ्रमण में शनि को 2700 दिन या साढ़े सात वर्ष लग जाते हैं। इस प्रकार किसी भी नक्षत्र के एक चरण का भ्रमण करने में शनि को प्राय: 100 दिन लग जाते हैं।

 

स्पष्ट है कि शत्रु, मित्र, सम, उच्च, नीच, निज और मूल त्रिकोण राशियों के अनुसार शनि की साढ़ेसाती हो या ढैया अपना अलग-अलग फल देगी। कुछ में अत्यंत निकृष्ट तो किसी में अत्यंत श्रेष्ठ फल भी प्रदान करने में समर्थ होगा, जबकि अन्य स्थितियों में वह शुभाशुभ मिश्रित फल प्रदायक ही होगा। गोचर कालिक स्थितियों के साथ जन्मांग चक्र के ग्रहों का तालमेल देखे बिना इन शुभाशुभ फलों का सही निर्धारण नहीं किया जा सकता। चरणों के हिसाब से भी फलों में परिवर्तन होता रहता है। ये परिवर्तन भी शुभाशुभ या मिश्रित हो सकते हैं।

 

शनि की साढ़ेसाती तब शुरू होती है जब शनि गोचर में जन्म राशि से 12वें घर में भ्रमण करने लगता है और तब तक रहती है जब वह जन्म राशि से द्वितीय भाव में स्थित रहता है। वास्तव में शनि जन्म राशि से 45 अंश से 45 अंश बाद तक जब भ्रमण करता है तब उसकी साढ़ेसाती होती है।

 

इसी प्रकार चंद्र राशि से चतुर्थ या अष्टम भाव में शनि के जाने पर ढैया आरंभ होती है। सूक्ष्म नियम के अनुसार जन्म राशि से चतुर्थ भाव के आरंभ से पंचम भाव की संधि तक और अष्टम भाव के आरंभ से नवम भाव की संधि तक शनि की ढैया होनी चाहिए। इस प्रकार जन्म नक्षत्र से 27 चरण और 65 चरण  के बाद शनि की स्थिति से चतुर्थ और अष्टमभाव मध्य होता है। इससे 4 चरण आगे और 4 चरण पीछे तक वह भाव होता है अर्थात जन्म नक्षत्र 23 चरण व्यतीत होने पर 24 चरण में जो राशि और नक्षत्र आए और उसमें शनि संचरण करे तब शनि की ढैया (पहली) आरंभ होती है और 32वां चरण जो राशि या नक्षत्र हो, उसमें शनि जब तक रहे तब तक पहली ढैया रहती है। इसी प्रकार जन्म नक्षत्र से 62वें चरण में जो राशि या नक्षत्र हो उसमें शनि के जाने पर दूसरी ढैया आरंभ होगी और 69 चरण तक जो राशि या नक्षत्र हो उसमें शनि  जब तक रहेगा तब तक उसकी दूसरी ढैया रहेगी। अस्तु पाठकों को भयभीत नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त भी अनेक कारण हैं जब साढ़ेसाती या ढैया का प्रभाव या तो पड़ता ही नहीं या पड़ता भी है तो वह नहीं के बराबर होता है। यथा-

 

1. मान लीजिए चंद्र राशि से आपके लिए शनि की साढ़ेसाती चल रही है लेकिन जन्म लग्न से इस प्रकार का योग नहीं हो रहा है तब शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण अशुभ फल आपको नहीं प्राप्त होगा।

 

2. शनि की साढ़ेसाती चल रही है किन्तु गोचर में शनि जिस राशि में है, वह शनि की निज, स्वमूल त्रिकोण उच्च या मित्र राशि है तो शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव अशुभ न होकर शुभ फलदायक होगा।

 

3. जन्म कुंडली में शनि योग कारक हो किसी ग्रह से युक्त या दुष्ट हो, शुभ भावों का अधिपति होकर शुभ भावों में विराजमान हो और जिस घर में बैठने से साढ़ेसाती आरंभ हो रही हो वह राशि भी उच्च या स्वमूल त्रिकोण राशियों में से हो तो साढ़ेसाती शुभफलदायक होगी।

 

4. यदि कालखंड के अनुसार शनि का निवास दाहिनी भुजा, पेट, मस्तक, नेत्र में हो तो शनि की साढ़ेसाती विजय, लाभ, राजसुख और सुख प्रदान करने वाली होगी।

 

5. यदि शनि जन्मकालिक आश्रित राशि से तीसरे, छठे या ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो भी शनि की साढ़ेसाती का पूर्ण अशुभ प्रभाव नहीं पड़ेगा।

 

6. शनि की साढ़ेसाती या ढैया का पूर्ण अशुभ प्रभाव तभी होगा जब चंद्र लग्न और जन्म लग्न दोनों से ही ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई हो और शनि अपनी नीच, शत्रु राशि में स्थित हो, पाप ग्रहों से युक्त या दुष्ट हो और किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो। जीवन की प्रथम साढ़ेसाती का प्रभाव भी जीवन में नहीं के बराबर ही होता है। अत: केवल शनि की साढ़ेसाती या ढैया से हताश होने की कोई जरूरत नहीं है।

 

मान लिया उपरोक्त सभी दृष्टि से शनि की साढ़ेसाती अशुभ फल प्रदायक है किन्तु महादशा, अंतरदशा और प्रत्यंतर दशा किन्हीं ऐसे ग्रहों की है जो जन्म कुंडली में योग कारक, शुभभावों के स्वामी या शुभग्रह या कारक ग्रहों के साथ या उनसे दुष्ट हो तो भीशनि की साढ़ेसाती के प्रभाव को क्षीण कर देंगे।

  —रविंद्र नाथ सिंह ‘उदय’

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!