भैरव अष्टमी: कालभैरव का आशीर्वाद मिला है या नहीं, इस विधि से करें मालुम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Nov, 2017 09:08 AM

kaal bhairav ashtami on 10th november

शिव पुराण की शतरूद्र संहिता के अनुसार, भगवान भोले नाथ भंडारी ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव रूप में अवतार लिया था, अत: काल भैरवाष्टमी के दिन भगवान शंकर को भैरव रूप में पूजने की प्रथा का आरंभ हुआ। इस वर्ष 10 नवंबर शुक्रवार को श्री...

शिव पुराण की शतरूद्र संहिता के अनुसार, भगवान भोले नाथ भंडारी ने मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव रूप में अवतार लिया था, अत: काल भैरवाष्टमी के दिन भगवान शंकर को भैरव रूप में पूजने की प्रथा का आरंभ हुआ। इस वर्ष 10 नवंबर शुक्रवार को श्री महाकाल भैरव अष्टमी, श्री महाकाल भैरव जी की जयंती (भैरव जी की उत्पत्ति), काल अष्टमी (भैरव अष्टमी) का पर्व मनाया जाएगा। भगवान भोले नाथ भंडारी के दो रूप हैं- भक्तों को अभयदान देने वाला विश्वेश्वर स्वरूप और दूसरा दुष्टों को दंड देने वाला काल भैरव स्वरूप। सृष्टि की रचना, पालन तथा संहार के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश जिम्मेदार हैं। जहां विश्वेश्वर स्वरूप अत्यंत सौम्य, शांत, अभय प्रदान करने वाला है, वहीं भैरव स्वरूप अत्यंत रौद्र, विकराल, प्रचंड है।


भोले शंकर भगवान शिव ने भैरव बाबा को काशीपुर का आधिपत्य सौंप दिया और कहा कि मेरी जो मुक्तिदायिनी काशी नगरी है, वह सभी नगरियों से श्रेष्ठ है। हे कलराज, वहां तुम्हारा सदैव आधिपत्य होगा। भैरव औघड़ बाबा कमर में लाल वस्त्र धारण करते हैं। आप भगवान शिव के अनुसार ही भस्म लपेटे हैं। परंतु आपकी मूर्तियों पर लाल सिंदूर का चोला चढ़ाया जाता है। काल भैरव के पूजन का काशी नगरी में काफी महत्व है। वहां उनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। इसी प्रकार उज्जैन एवं मेहंदीपुर बालाजी (राजस्थान) में भैरव जी का प्रसिद्ध मंदिर है।


भैरव अष्टमी के दिन गंगा जी का स्नान उत्तम होता है। शिव मंदिर में भगवान शिवजी के प्रतीक महाकाल भैरव की पूजा-जप-दान आदि करने का विशेष महात्यम एवं पुण्य होता है। इनको दूध या हलवा अत्यंत प्रिय है इसीलिए भक्तजन इन्हें यह प्रसाद चढ़ाते हैं। जिस दिन भैरव जी का व्रत रखा जाता है, उनके वाहन को कुछ न कुछ मीठा भोजन अवश्य देना चाहिए। भैरव बाबा का दिन रविवार तथा मंगलवार माना जाता है। इन दोनों दिनों में औघड़ बाबा भैरव की पूजा-अर्चना करने से भूत-प्रेत इत्यादि अन्य प्रत्येक प्रकार की त्रासदी से मुक्ति मिलती है। 


भैरव अष्टमी के दिन एक रोटी लेकर उस पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी दो रंग वाले कुत्ते को खाने के लिए दें। यदि कुत्ता रोटी खा ले तो समझिए कि कालभैरव जी का आशीर्वाद मिल गया है। अगर कुत्ता रोटी को सूंघ कर आगे चला जाए ये क्रम जारी रखें। लेकिन सप्ताह में रविवार, बुधवार व गुरुवार को ही ये उपाय करें क्योंकि ये तीन दिन भगवान कालभैरव के माने गए हैं।

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