आधार, पैन और वोटर आईडी नागरिकता के प्रमाण नहीं...बॉम्बे हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पिणी

Edited By Updated: 13 Aug, 2025 05:31 AM

aadhaar pan and voter id are not proof of citizenship  big comment by bombay h

12 अगस्त 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की एकल पीठ, न्यायमूर्ति अमित बोरकर की अध्यक्षता में, कथित बांग्लादेशी नागरिक बाबू अब्दुल रऊफ सरदार को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने यह निर्णय लेते हुए कहा कि केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी होने मात्र...

नेशनल डेस्कः 12 अगस्त 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की एकल पीठ, न्यायमूर्ति अमित बोरकर की अध्यक्षता में, कथित बांग्लादेशी नागरिक बाबू अब्दुल रऊफ सरदार को जमानत देने से इनकार कर दिया। अदालत ने यह निर्णय लेते हुए कहा कि केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी होने मात्र से कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं बन जाता। यह दस्तावेज पहचान या सेवाओं के लिए होते हैं, पर नागरिकता अधिनियम, 1955 की कानूनी आवश्यकताओं को ओवरराइड नहीं करते।

नागरिकता अधिनियम का महत्व

अदालत ने जोर देकर कहा कि नागरिकता अधिनियम, 1955 ही भारत में नागरिकता संबंधी सभी प्रश्नों का मुख्य नियंत्रक कानून है—यह निर्धारित करता है कि कौन नागरिक हो सकता है, नागरिकता कैसे हासिल की जा सकती है और किन परिस्थितियों में इसे खोया जा सकता है। यही कारण है कि केवल पार पहचान दस्तावेजों पर भरोसा करना—बशर्ते उनकी प्राप्ति प्रक्रिया की विश्वसनीयता जांचे बिना विचारण योग्य नहीं माना जा सकता ।

मामले की संवेदनशीलता—अवैध प्रवेश व धोखाधड़ी की संभावना

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि सरदार ने बिना वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के भारत में प्रवेश किया और भारतीय पहचान दस्तावेज प्राप्त किए जिनमें आधार, पैन, वोटर आईडी और पासपोर्ट शामिल हैं। अदालत ने यह भी कहा कि इस प्रकार की धोखाधड़ी स्पष्ट करती है कि वह भविष्य में और भी झूठी पहचान बना सकता था। सरदार के फोन से डिजिटल रूप में उसके और उसकी मां के बांग्लादेशी जन्म प्रमाणपत्र भी बरामद हुए, जिससे उसकी विदेशी पहचान की संभावना और मजबूत हो जाती है ।

सत्यापन प्रक्रिया अभी चल रही है

UIDAI और अन्य संबंधित विभागों द्वारा सरदार के दस्तावेजों की सत्यता की जांच अभी जारी है। इस स्तर पर अदालत ने स्पष्ट किया कि दस्तावेज सही हैं या झूठे—इसका फैसला अभी मुकदमे की प्रक्रिया में किया जाएगा।

न्यायालय का डर—फरार होने, सबूत मिटाने या नए दस्तावेज बनाने का जोखिम

अदालत ने माना कि अगर इस स्तर पर जमानत दे दी जाती है, तो आरोपी स्थान छोड़ सकता है, सबूत नष्ट कर सकता है या नए गलत दस्तावेज बनाकर पहचान छिपा सकता है। इसलिए, जमानत नामंजूर करने का निर्णय सुपुर्दगी और न्याय की रक्षा के मद्देनजर उचित था।

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