धर्मशाला में ‘साइलेंट अलार्म’ – कभी भी आ सकता है विनाशकारी भूकंप... मैक्लोडगंज बना खतरे का केंद्र?

Edited By Updated: 19 Aug, 2025 04:22 PM

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हिमाचल की शांत वादियों में बसे धर्मशाला और मैक्लोडगंज इन दिनों एक अदृश्य खतरे की चपेट में हैं। हाल ही में आए भूकंप के हल्के झटकों ने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ एक चेतावनी है — एक ऐसा साइलेंट अलार्म, जो...

नेशनल डेस्क:  हिमाचल की शांत वादियों में बसे धर्मशाला और मैक्लोडगंज इन दिनों एक अदृश्य खतरे की चपेट में हैं। हाल ही में आए भूकंप के हल्के झटकों ने वैज्ञानिकों को चिंता में डाल दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ एक चेतावनी है -- एक ऐसा साइलेंट अलार्म, जो संकेत दे रहा है कि भविष्य में यहां एक बड़ा और विनाशकारी भूकंप दस्तक दे सकता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि धर्मशाला और मैक्लोडगंज के नीचे ज़मीन के भीतर बीते दशकों से टेक्टोनिक दबाव लगातार बढ़ रहा है। साथ ही इस क्षेत्र में बेतरतीब बहुमंज़िला निर्माण, कमजोर सीवरेज और ड्रेनेज सिस्टम इस संकट को और गहरा कर रहे हैं। अगर समय रहते चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह क्षेत्र एक बड़ी प्राकृतिक आपदा का शिकार बन सकता है।

तो शहर में भारी तबाही हो सकती थी?
बता दें कि धर्मशाला और उसके आसपास के इलाके सोमवार रात अचानक कांप उठे।  भूकंप का केंद्र मैक्लोडगंज और खनियारा के बीच रहा, जो कि धर्मशाला का बेहद संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के भूविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अंबरीश महाजन ने इस भूकंप को 'एक चेतावनी संकेत' बताया है। उनका कहना है कि अगर यह झटका 4 की बजाय 5 मैग्नीट्यूड का होता, तो शहर में भारी तबाही हो सकती थी।

इतिहास दोहराने को तैयार?
धर्मशाला और कांगड़ा भूकंप के लिहाज से पहले भी संवेदनशील रहे हैं। 1968, 1970 और 1986 में इस क्षेत्र में 5.0 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंप आ चुके हैं। लेकिन 1986 के बाद कोई बड़ा झटका नहीं आया, जिससे ज़मीन के भीतर बड़ी मात्रा में ऊर्जा जमा हो रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह ऊर्जा किसी भी समय विस्फोटक रूप में बाहर आ सकती है।

अंधाधुंध निर्माण बना रहा जोखिम
प्रो. महाजन ने चेताया कि मैक्लोडगंज क्षेत्र में कैरिंग कैपेसिटी से कहीं अधिक बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो चुकी हैं, जिनका न तो सही तरीके से मूल्यांकन हुआ है और न ही संरचनात्मक सुरक्षा का ध्यान रखा गया है। ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम की भारी कमी के चलते बारिश का पानी जमीन के अंदर जाकर उसे कमजोर कर रहा है। इससे जमीन धंसने और भूस्खलन की घटनाएं आम हो गई हैं।

जोशीमठ और धराली से लें सबक
महाजन ने उत्तराखंड के जोशीमठ और धराली जैसी जगहों का हवाला देते हुए कहा कि इन इलाकों में भी जब तक आपदा नहीं आई, तब तक लोग लापरवाह रहे। जोशीमठ में बिना सीवरेज सिस्टम के भवनों की नींव कमजोर हो गई थी। धराली में संकरी नदी के किनारे अतिक्रमण ने 1978 और फिर 2023 में भारी तबाही मचाई।

बादल फटने की आशंका भी गंभीर
धर्मशाला की मनूणी खड्ड को वैज्ञानिकों ने बादल फटने के लिए उपयुक्त क्षेत्र माना है। ऐसे में यदि अगले कुछ वर्षों में वहां तेज बारिश और बादल फटने की घटना होती है, तो नीचे के इलाके भारी नुकसान झेल सकते हैं। डॉक्टर महाजन ने यह भी कहा कि आज की तुलना में 1960-70 के दशक में लगातार दो-दो महीने बारिश होती थी, लेकिन अब पैटर्न बदल गया है — कम समय में ज़्यादा पानी गिर रहा है, जो ज़्यादा तबाही लाता है।

 महाजन ने बताया कि जब मनीषा श्रीधर कांगड़ा की डीसी थीं, तब हर निर्माण को भूगर्भ विशेषज्ञ की अनुमति के बाद ही मंजूरी मिलती थी। उन्होंने बताया, “1998 तक मैंने बहुमंजिला निर्माण की इजाजत नहीं दी जब तक वह भूगर्भीय मापदंडों पर खरे न उतरें।” लेकिन अब निर्माण कार्य बेकाबू हो चुका है। न ही नगर नियोजन बोर्ड ध्यान दे रहा है और न ही वैज्ञानिक सलाह ली जा रही है।

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