Exclusive Interview: किसी का भी स्ट्रगल 'एक्सक्लूसिव' नहीं होता- जयदीप अहलावत

Edited By Updated: 16 May, 2020 12:13 PM

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फिल्म ''गैंग्स ऑफ वासेपुर'' के शाहिद खान के रूप में हो या फिर फिल्म ''राजी'' के खालिद मीर के रूप में, जयदीप अहलावत ने हमेशा से अपनी दमदार अदाकारी से लोगों का दिल जीता है। एक बार फिर से अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाने जयदीप आ गए हैं अमेजन प्राइम वीडियो...

नई दिल्ली। कोई भी किरदार बड़ा नहीं होता बल्कि उसे बड़ा बनाता है उसमें जान फूंकने वाला एक अभिनेता। एक ऐसे ही अभिनेता हैं जो अपनी अदाकारी से किसी भी किरदार को यादगार बना देते हैं फिर चाहे हम बात करें फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के शाहिद खान की या फिर फिल्म 'राजी' के खालिद मीर की।

जी हां, हम बात कर रहे हैं जयदीप अहलावत की जो अपने नई वेब सीरीज के साथ एक बार फिर से दर्शकों का मनोरंजन कर रहे हैं। अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई अपनी नई वेब सीरीज 'पाताल लोक' को लेकर जयदीप ने पंजाब केसरी/नवोदय टाइम्स से खास बातचीत की। पेश है प्रमुख अंश...

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'पाताल लोक' की इस खास बात के कारण हुआ जुड़ाव
मेरे लिए किसी भी प्रोजेक्ट की जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है वो है उसकी राइटिंग। 'पाताल लोक' से भी जुड़ने की यही वजह थी कि उसे बहुत ही बेहतरीन तरीके से लिखा गया है। किसी भी प्रोजेक्ट में आप सबसे पहले उसकी कहानी से जुड़ते हैं और मेरा इस कहानी के साथ जुड़ाव इतनी जल्दी हो गया कि वो अपने आप में बहुत ही खास था। किसी भी किरदार को करने का मतलब होता है कि आपको उसे लंबे वक्त तक जीना पड़ता है और पाताल लोक के किरदार जो लिखे गए वो काबिले तारीफ है। इसकी टीम भी बहुत ही अच्छी है जिससे जुड़ना एक अलग एक्सपीरियंस था।

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बचपन में बनना चाहता था आर्मी ऑफिसर
हर कोई बचपन में करियर को लेकर कोई न कोई गोल बनाता है और मैं हरियाणा का हूं जहां इंडियन आर्मी को लेकर ज्यादा ही क्रेज रहता है, तो मैं भी बचपन में आर्मी ऑफिसर बनना चाहता था। इसके साथ ही मुझे हमेशा से साहित्य से बहुत ही लगाव रहा है, मैं काफी पढ़ता रहा हूं, समय के साथ ये जुड़ाव बढ़ता गया और यही वजह थी कि मैंने थिएटर का रुख किया। थिएटर से शुरू हुआ ये सफर फिर मुझे बॉलीवुड तक ले आया और फिर यही मेरी पूरी दुनिया बन गया।

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मैं स्ट्रगल को स्ट्रगल नहीं बल्कि एक जर्नी मानता हूं
फिल्म इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉडफादर नहीं है और हां मैंने स्ट्रगल किया है लेकिन मैं इसे कोई एक्सक्लूसिव स्ट्रगल नहीं मानता हूं। हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी तरह का स्ट्रगल होता है, कुछ का ज्यादा होता है तो कुछ का कम और हर कोई उसे अपने तरीके से करता है। यही वजह है कि मैं कभी इसे स्ट्रगल का नाम ही नहीं देता हूं, ये एक जर्नी होती है जहां कुछ पाने से पहले हम बहुत कुछ सीख रहे होते हैं। मेरी भी जिंदगी में बिना किसी गॉडफादर के खुद को इस्टैबलिश करने की जर्नी थी जो मैंने पूरी मेहनत के साथ तय की और अभी भी कर रहा हूं क्योंकि काम करने की और दर्शकों को बेहतरीन काम देने की भूख समय के साथ बढ़ती ही जाती है।

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मुंबई शहर ने सिखाया मेहनत करना 
बॉलीवुड इंडस्ट्री में मुझे 10 साल पूरे हो गए हैं और ये बहुत ही अच्छा एक्सपीरियंस रहा है। ये सफर कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादों से भरा हुआ है। बहुत ही मेहनत से काम किया और अच्छा लगा कि लोगों ने उसे सराहा। मुंबई शहर ने मुझे यही सिखाया है कि हर स्थिति में आपको मेहनत करनी ही होगी। भले ही आपकी पर्सनल लाइफ में कुछ भी चल रहा हो लेकिन आपको अपना काम करना होगा।

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'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और 'राजी' बनी टर्निंग प्वाइंट
मेरे करियर के लिए दो फिल्में बहुत ही महत्वपूर्ण रहीं जिसे मैं अपने लिए एक टर्निंग प्वाइंट भी कह सकता हूं। पहली थी 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' और दूसरी 'राजी'। दोनों ही फिल्मों ने मुझे बतौर एक्टर ज्यादा इस्टैबलिश किया और अगर बात करूं फिल्म 'राजी' की तो इस फिल्म ने मेरे लिए बहुत से दरवाजे खोल दिए, इससे मेरा काम ज्यादा लोगों तक पहुंचे लगा और मुझे ज्यादा मौके मिलने लगे। इस फिल्म को करने के बाद से इंडस्ट्री में भी अप्रोच पहले से बेहतर हुई है।

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