Edited By Mehak,Updated: 17 Oct, 2025 12:19 PM

धनतेरस और दिवाली पर सोना-चांदी खरीदने का रिवाज रहा है, लेकिन हाल में सोने और चांदी की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गई हैं। ज्वेलरी महंगी होने के कारण निवेशक अब चांदी के बर्तन और सिक्कों की ओर रुख कर रहे हैं। बर्तनों और सिक्कों पर कम GST और मेकिंग...
नेशनल डेस्क : भारत में दिवाली और धनतेरस के मौके पर सोना और चांदी खरीदना एक पुराना रिवाज रहा है। लोग ज्यादातर ज्वेलरी खरीदते हैं, लेकिन कुछ लोग बर्तन या सिक्कों में भी निवेश करते हैं। हालांकि, हाल में सोने और चांदी की कीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी होने की वजह से ज्वेलरी खरीदना पहले जैसी आम बात नहीं रही।
रिटेल मार्केट में चांदी की कीमत अब 2 लाख रुपये प्रति किलो और सोने की कीमत 1.30 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच चुकी है। दिवाली और धनतेरस के दिन इनकी डिमांड बढ़ने की वजह से कीमतों में और उछाल आने की संभावना रहती है, जिससे ज्वेलरी खरीदना और महंगा पड़ सकता है।
ऐसे में चांदी के बर्तन और सिक्के खरीदना कई मामलों में सही विकल्प साबित हो सकता है। सबसे बड़ा फायदा यह है कि बर्तनों और सिक्कों पर ज्वेलरी की तुलना में कम टैक्स और मेकिंग चार्ज लगता है।
पहला फायदा – कम GST
चांदी के बर्तन और सिक्कों पर सिर्फ 3% GST लगता है। अगर इनकी मेकिंग चार्ज शामिल हो, तो यह चार्ज लगभग 5% तक हो सकता है। वहीं, ज्वेलरी में डिजाइन और ब्रांड की वजह से मेकिंग चार्ज 20% या उससे ज्यादा भी हो सकता है।
दूसरा फायदा – कम मेकिंग चार्ज
ज्वेलरी में नाजुक डिजाइन और मेहनत शामिल होने की वजह से इसकी कीमत बढ़ जाती है। बर्तनों और सिक्कों में डिजाइन साधारण होता है या कभी-कभी बिल्कुल भी नहीं होता, इसलिए इन पर मेकिंग चार्ज बहुत कम रहता है।
डिजाइन और फैशन वैल्यू
ज्वेलरी की कीमत इसके फैशन और डिजाइन वैल्यू पर भी निर्भर करती है, जबकि बर्तन और सिक्कों को सिर्फ यूटिलिटी और निवेश के नजरिए से खरीदा जाता है। इसका मतलब है कि बर्तन और सिक्के ज्वेलरी के मुकाबले सस्ते होते हैं।
शुद्धता का फर्क
ज्वेलरी आमतौर पर 92.5% शुद्ध होती है, जबकि बर्तन 80%-90% शुद्धता में बनाए जाते हैं। इसका मतलब है कि बर्तनों में थोड़ी और धातु मिलाई जाती है। हालांकि, निवेश के लिहाज से बर्तन और सिक्के अभी भी फायदेमंद विकल्प बने हुए हैं।