Air India Accident: लंदन से IVF के लिए आए थे भारत, मौत के बाद अब सेंटर में इंतज़ार कर रहा ‘अनाथ भ्रूण’, जानें क्या होगा?

Edited By Updated: 14 Oct, 2025 11:18 AM

couple who had come from london for ivf treatment died waiting for birth

12 जून 2025 का दिन भारत और ब्रिटेन के लिए एक मनहूस दिन था जब अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरते ही एयर इंडिया एक्सप्रेस का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर (टेल नंबर VT-ANB) दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में 241...

नेशनल डेस्क। 12 जून 2025 का दिन भारत और ब्रिटेन के लिए एक मनहूस दिन था जब अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरते ही एयर इंडिया एक्सप्रेस का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर (टेल नंबर VT-ANB) दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में 241 यात्रियों की जान चली गई लेकिन मलबे के बीच से एक ऐसी दिल तोड़ देने वाली कहानी सामने आई है जिसने कानूनी और नैतिक सवालों का एक नया मोर्चा खोल दिया है।

यह कहानी लंदन के एक जोड़े की है जो भारत सिर्फ एक सपना पूरा करने आए थे माता-पिता बनने का। सात साल के लंबे इंतजार और असफल कोशिशों के बाद जब उन्हें उम्मीद की किरण मिली तभी इस विमान हादसे ने उनके सारे सपने छीन लिए। अब उनके न रहने के बाद भी उनका भ्रूण (Embryo) भारत के एक IVF क्लिनिक में सुरक्षित और संरक्षित है।

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सात साल का इंतजार, एक अधूरी उड़ान

लंदन का यह जोड़ा शादी के सात साल बाद भी संतान सुख से वंचित था। विदेश में IVF प्रक्रिया बेहद महंगी होने के कारण उन्होंने उम्मीद के साथ अहमदाबाद के एक प्रतिष्ठित IVF केंद्र का रुख किया।
रिपोर्ट के अनुसार कई महीनों के इलाज, जांच और सर्जरी के बाद डॉक्टरों ने आखिरकार उनका भ्रूण सफलतापूर्वक फ्रीज (Frozen) कर लिया। जुलाई में भ्रूण स्थानांतरण (Embryo Transfer) होना था। कपल नई जिंदगी की शुरुआत के सपनों में खोया हुआ था लेकिन एयर इंडिया हादसे ने उनकी उम्मीदों और भविष्य को राख में बदल दिया।

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अनाथ भ्रूण का कानूनी उलझाव

हादसे के बाद से यह भ्रूण अहमदाबाद के IVF केंद्र में तरल नाइट्रोजन (Liquid Nitrogen) में संरक्षित है। अब सबसे बड़ा और जटिल सवाल यह है कि क्या उस भ्रूण का कोई भविष्य है? क्या किसी और के गर्भ से यह जीवन जन्म ले सकेगा?

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IVF विशेषज्ञों के अनुसार यह मामला बेहद दुर्लभ है। भारतीय कानून के तहत किसी भी "अनाथ भ्रूण" (Orphaned Embryo) को दान (Donate) नहीं किया जा सकता और माता-पिता की मृत्यु के बाद सरोगेसी (Surrogacy) पूरी तरह से वर्जित है। चूंकि यह जोड़ा ब्रिटिश नागरिक था इसलिए एक कानूनी रास्ता मौजूद है। भारत के राष्ट्रीय सहायक प्रजनन तकनीक (ART) और सरोगेसी बोर्ड की विशेष अनुमति से इस भ्रूण को विदेश भेजा जा सकता है। विदेश में मृत माता-पिता के परिजन सरोगेसी का विकल्प चुन सकते हैं। वर्तमान ART कानून के तहत भ्रूण को 10 साल तक संरक्षित रखा जा सकता है जिसे विशेष अनुमति मिलने पर 20 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

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नियति और तकनीक की सीमा पर खड़ी कहानी

यह कहानी सिर्फ एक विमान दुर्घटना की त्रासदी नहीं है बल्कि मानवता, अत्याधुनिक तकनीक और नियति की सीमाओं को छूती है। एक ऐसा भ्रूण जिसके माता-पिता अब नहीं रहे फिर भी वह एक ठंडी प्रयोगशाला में जीवित है अपने जन्म का इंतजार करते हुए। क्या कानूनी उलझनों के बीच यह नन्ही सी उम्मीद कभी जन्म ले पाएगी या हमेशा एक अधूरी कहानी बनकर रह जाएगी? यह जवाब शायद आने वाला वक्त ही देगा।

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