‘टू प्लस टू’ वार्ता से बढ़ेगा भारत का कद

Edited By vasudha,Updated: 04 Sep, 2018 12:32 PM

india height will increase with two plus two talks

भारत-अमरीका के बीच दिल्ली में 6 सितम्बर को होने वाली ‘टू प्लस टू’ मंत्री स्तरीय वार्ता दोनों देशों की सामरिक सुरक्षा और रक्षा सहयोग आदि रिश्तों को सुदृढ़ किए जाने की दृष्टि से दिशा निर्धारण में महत्वपूर्ण होगी ही, इससे क्षेत्र में भारत का कद भी...

वाशिंगटन(नवोदय टाइम्स): भारत-अमरीका के बीच दिल्ली में 6 सितम्बर को होने वाली ‘टू प्लस टू’ मंत्री स्तरीय वार्ता दोनों देशों की सामरिक सुरक्षा और रक्षा सहयोग आदि रिश्तों को सुदृढ़ किए जाने की दृष्टि से दिशा निर्धारण में महत्वपूर्ण होगी ही, इससे क्षेत्र में भारत का कद भी बढ़ेगा। 

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इस वार्ता में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तथा अमरीका से विदेश मंत्री माइक पोंपियो और रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस भाग लेंगे। इस वार्ता की रचना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गत 25 जून की अमरीकी यात्रा के दौरान हुई थी। यह वार्ता पहले अप्रैल में होनी थी। विदेश मंत्री टेक्स टिलरसन के अपदस्थ किए जाने और फिर माइक पोंपियो के अकस्मात उत्तरी कोरिया जाने के कारण वार्ता को स्थगित करना पड़ा था। इस पर पोंपियो ने खुद फोन कर सुषमा स्वराज को सफाई दी थी और दिल्ली में ही वार्ता का सुझाव दिया था।

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पाकिस्तान में नई सरकार के गठन के बाद होने वाली इस बैठक से पहले एक अ‘छा संकेत यह आ रहा है कि अमरीका के कड़े रुख के बाद आईएमएफ ने 90  अरब डॉलर के बकाया ऋण में 8 से 10 अरब डॉलर की अदायगी के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान ने पिछले दिनों करंट अकाउंट में रिजर्व फंड की कमी के कारण चीन से कमॢशयल ब्याज दरों पर एक अरब डॉलर का कर्ज लिया है, जबकि उसे पाकिस्तान-चीन गलियारे के लिए 62 अरब डॉलर की ऋण अदायगी के रूप में दो साल बाद साढ़े तीन से चार अरब डॉलर की मय ब्याज अदायगी करना जरूरी होगा। अभी तक तीन सौ अरब डॉलर की जीडीपी के बलबूते पर टिकी पाकिस्तान सरकार को अमरीका की आर्थिक और मिलिट्री सहायता पर भरोसा था।  
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अफगानिस्तान में हिंसात्मक घटनाओं में लगातार वृद्धि और तालिबान से शांति प्रस्ताव को लेकर अमरीका के रुख में आए बदलाव से भारत में चिंताएं बढ़ी हैं, तो रूस और ईरान पर अमरीकी प्रतिबंधों को लेकर भारत के दीर्घकालिक सामरिक हितों को चोट पहुंच रही है। भारत चाहबार बंदरगाह के रास्ते ईरान से अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया में अपने कारोबार को लेकर चिंतित है। अफगानिस्तान के साथ भारत ने सामरिक हितों को ध्यान में रखते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा और हेल्थ में दो अरब डॉलर निवेश किए हैं। 

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हिंद महासागर प्रशांत क्षेत्र में भारत को साझीदार बनाए जाने के लिए क्षेत्र में शांति और स्थिरता का मुद्दा विचारणीय रहेगा। बेशक, गत 20 जनवरी को अमरीकी सुरक्षा रणनीति के तहत भारत को एक बड़ा रक्षा साझीदार बनाया गया है, लेकिन इस संदर्भ में भारत की भूमिका को समझना जरूरी है। अमरीका से रक्षा साजोसामान हासिल करना और अमरीकी कायदे कानून की शर्तों को स्वीकार करना, एक अन्य मुख्य मुद्दा है, जो अड़चन पैदा कर सकता है। फिर कामकोसा कानून के तहत अमरीका को भारत औचक निरीक्षण की अनुमति देगा, बड़ा प्रश्न होगा। बदलती परिस्थितियों में भारत के लिए निसंदेह यह अ‘छा मौका है कि ‘काउंटरिंग अमरीका एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शन एक्ट’ के बावजूद भारत रूस के साथ रक्षा साजोसामान में लेनदेन करता रहे लेकिन इस एक्ट की पेचीदगियों को समझना जरूरी होगा

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