भारत-मालदीव रिश्तों में नया अध्याय, PM मोदी की यात्रा से बढ़ा भारत का दक्षिण एशिया में प्रभाव

Edited By Updated: 29 Jul, 2025 03:24 PM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की दो दिवसीय मालदीव यात्रा (25-26 जुलाई 2025) ने सिर्फ भारत-मालदीव संबंधों को नई ऊर्जा दी बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक तस्वीर में भी बदलाव की बुनियाद रखी। प्रधानमंत्री की इस सफल यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया कि...

नेशनल डेस्क: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की दो दिवसीय मालदीव यात्रा (25-26 जुलाई 2025) ने सिर्फ भारत-मालदीव संबंधों को नई ऊर्जा दी बल्कि दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक तस्वीर में भी बदलाव की बुनियाद रखी। प्रधानमंत्री की इस सफल यात्रा ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अपने निकटतम पड़ोसियों के साथ सहयोग और स्थायित्व के पथ पर मजबूती से आगे बढ़ रहा है। इस यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि मालदीव की जनता और सरकार दोनों को यह भरोसा दिलाया गया कि भारत उनकी प्रगति और सुरक्षा में हमेशा साथ रहेगा सरकार चाहे जो भी हो।

रिश्तों में आई दूरियाँ और फिर बनी नई दोस्ती

साल 2013 से 2018 तक के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में भारत और मालदीव के रिश्तों में खटास आ गई थी। उनके उत्तराधिकारी मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भी शुरू में चीन और तुर्की को प्राथमिकता देने और भारत विरोधी 'इंडिया आउट' अभियान चलाने की नीति अपनाई। भारत में इससे नाराजगी फैली और मालदीव में भारत समर्थक धारा कमजोर लगने लगी। हालाँकि अगस्त 2024 में विदेश मंत्री एस जयशंकर की माले यात्रा ने रिश्तों में जमी बर्फ को पिघलाया। उसके बाद अक्टूबर 2024 में राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने भारत आकर नया अध्याय शुरू किया। तब से ही दोनों देशों के बीच रिश्तों में मजबूती आती गई है।

मालदीव में मोदी की गर्मजोशी से भरी स्वागत यात्रा

प्रधानमंत्री मोदी की जुलाई यात्रा मुइज़्ज़ू के कार्यकाल की पहली भारतीय प्रधानमंत्री यात्रा थी। इस यात्रा का उद्देश्य स्पष्ट था - मालदीव की जनता और सरकार को यह दिखाना कि भारत उनके साथ बिना शर्त खड़ा है। राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू और उनके मंत्रिमंडल ने एयरपोर्ट पर खुद मोदी का स्वागत किया। यह एक स्पष्ट संदेश था कि अब दोनों देशों के संबंधों में नया दौर शुरू हो चुका है। मालदीव की स्वतंत्रता की 60वीं वर्षगांठ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रधानमंत्री की भागीदारी भी इसी सशक्त रिश्ते का प्रतीक बनी।

महत्वपूर्ण समझौतों और सहयोग की नई शुरुआत

इस यात्रा के दौरान कोई नया संयुक्त बयान जारी नहीं किया गया क्योंकि अक्टूबर 2024 में घोषित "व्यापक आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी के दृष्टिकोण" को अभी भी मान्य और प्रासंगिक माना गया है। इसके बावजूद, भारत और मालदीव के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते और घोषणाएँ हुईं। आर्थिक सहयोग के तहत, भारत ने मालदीव को 4,850 करोड़ रुपये की नई ऋण सीमा (Line of Credit) प्रदान की, साथ ही पिछली ऋणों की वापसी की शर्तों को भी आसान बनाया गया। इसके अलावा, दोनों देशों ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर बातचीत शुरू करने पर सहमति जताई। विकास परियोजनाओं के क्षेत्र में छह नई परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया या उन्हें मालदीव को सौंपा गया, जिनमें सामाजिक आवास और सामुदायिक विकास से जुड़ी योजनाएँ शामिल हैं। विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को और बढ़ावा देते हुए, मत्स्य पालन, मौसम विज्ञान, डिजिटल तकनीक और फार्मा उद्योग में आठ समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए। साथ ही, भारत और मालदीव के कूटनीतिक संबंधों की 60वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक स्मारक डाक टिकट भी संयुक्त रूप से जारी किया गया।

भारत-मालदीव रिश्तों में नया युग

प्रधानमंत्री मोदी ने सरकारी प्रतिनिधियों के अलावा मालदीव के विपक्षी नेताओं, व्यापारियों, भारतीय प्रवासियों और छात्रों से भी मुलाकात की। इससे यह संकेत गया कि भारत केवल सरकारों के साथ नहीं बल्कि मालदीव की जनता के साथ खड़ा है। सोशल मीडिया पर इस यात्रा को व्यापक समर्थन मिला। खासतौर पर X (पूर्व में ट्विटर) पर कई लोगों ने इसे भारत-मालदीव संबंधों के लिए नया युग बताया।

भारत की मजबूत नेतृत्व और रणनीतिक साझेदारी

इस यात्रा ने द्विपक्षीय संबंधों में नई ऊर्जा का संचार किया है। पिछले साल से चल रहे संवादों को इस दौर ने नई गति दी, जिसमें भारत ने न केवल एक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया बल्कि संयम और व्यावहारिकता के साथ मालदीव की जनता की भावनाओं को भी गहराई से समझा और सम्मान दिया। दक्षिण एशिया में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका और मजबूत हुई है, क्योंकि मालदीव के साथ-साथ श्रीलंका, नेपाल, भूटान और अफगानिस्तान के साथ स्थिर और निरंतर संबंध बनाए रखना भारत की प्राथमिकता बनी हुई है। हालांकि, बांग्लादेश और पाकिस्तान के साथ चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ बनी हुई हैं, जिन पर साउथ ब्लॉक को विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसके अलावा, दक्षिण एशिया में चीन की सक्रियता को देखते हुए भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे मजबूत साझेदारों से कूटनीतिक और रणनीतिक समर्थन जुटाए। खासकर द्वीपीय देशों जैसे मालदीव और श्रीलंका में यह सहयोग क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

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