वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर क्यों कहलाता है दक्षिण का काशी, एकादशी पर क्यों उमड़ता है भक्तों का हुजूम?

Edited By Updated: 01 Nov, 2025 07:38 PM

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आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर को ‘पूर्व का तिरुपति’ कहा जाता है। 11वीं-12वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार वेंकटेश्वर को समर्पित है। वैकुंठ एकादशी पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़...

नेशनल डेस्क : आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में स्थित काशीबुग्गा वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व का प्रमुख केंद्र है। स्थानीय स्तर पर इसे ‘पूर्व का तिरुपति’ कहा जाता है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से भक्तों को तिरुपति बालाजी के समान पुण्य प्राप्त होता है। मंदिर तिरुपति की पूजा पद्धति और परंपराओं का पूर्ण पालन करता है। भगवान विष्णु के अवतार श्री वेंकटेश्वर स्वामी को समर्पित यह मंदिर भक्तों की सच्ची मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए प्रसिद्ध है।

11वीं-12वीं शताब्दी में हुआ निर्माण
इतिहासकारों के अनुसार, मंदिर का निर्माण 11वीं से 12वीं शताब्दी के बीच चोल वंश या पूर्वी गंगा राजाओं के शासनकाल में हुआ। उस समय दक्षिण भारत में विष्णु भक्ति चरम पर थी। कथा है कि एक ऋषि ने यहां कठोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने वेंकटेश्वर रूप में दर्शन दिए और वरदान दिया कि वे यहां सदैव भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करेंगे।

बाद में राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया। मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का उत्कृष्ट नमूना है। ऊंचा गोपुरम, सुंदर पत्थर नक्काशी और विष्णु के दशावतारों की मूर्तियां इसकी भव्यता बढ़ाती हैं। गर्भगृह में शुद्ध शिलाखंड से बनी भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति विराजमान है। परिसर में देवी लक्ष्मी, भगवान गरुड़ और अन्य वैष्णव देवताओं के छोटे मंदिर भी हैं।

कलियुग का दाता: वैकुंठ एकादशी पर उमड़ती भीड़
वेंकटेश्वर स्वामी को कलियुग का दाता माना जाता है। यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है। मंदिर को ‘दक्षिण का वैकुंठ’ भी कहा जाता है। एकादशी, कार्तिक मास और विशेषकर वैकुंठ एकादशी पर भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ब्रह्मोत्सव, वैष्णव एकादशी और रथोत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। देशभर से हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

क्या है पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, भगवान विष्णु काशी (वाराणसी) जाने के इच्छुक थे। यहां पहुंचकर उन्होंने महसूस किया कि यह स्थान उत्तर के काशी जितना ही पवित्र है। इसलिए इसका नाम काशीबुग्गा पड़ा, यानी दक्षिण का काशी। भगवान ने वेंकटेश्वर रूप में प्रकट होकर वरदान दिया कि सच्चे भक्तों के सभी संकट दूर होंगे और उन्हें मोक्ष प्राप्त होगा। मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि द्रविड़ संस्कृति और इतिहास का जीवंत प्रमाण भी है। वैकुंठ एकादशी के अवसर पर श्रद्धालुओं की संख्या में भारी इजाफा होने की संभावना है।

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