PM Modi Cm Pension: पीएम मोदी के जन्मदिन पर बड़ा सवाल: क्या उन्हें मिलती है पूर्व सीएम की पेंशन?

Edited By Updated: 17 Sep, 2025 05:15 PM

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 75वां जन्मदिन मना रहे हैं। यह वही मोदी हैं जिन्होंने आरएसएस के एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर देश के प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। लेकिन उनके जन्मदिन पर एक सवाल लगातार चर्चा में...

नेशनल डेस्क:  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपना 75वां जन्मदिन मना रहे हैं। यह वही मोदी हैं जिन्होंने आरएसएस के एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर चार बार गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर देश के प्रधानमंत्री तक का सफर तय किया। लेकिन उनके जन्मदिन पर एक सवाल लगातार चर्चा में है—क्या उन्हें गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री के तौर पर कोई पेंशन मिलती है? जवाब है - नहीं। यह अफवाह है जिसने जनता को गुमराह किया है।

मोदी के राजनीतिक सफर की शुरुआत 1958 में RSS से हुई थी। वर्षों की तपस्या और संगठनात्मक कार्य के बाद उन्हें गुजरात की सत्ता संभालनी पड़ी, जब 2001 के भूकंप के बाद केशुभाई पटेल ने इस्तीफा दिया। तब से लेकर 2014 तक वे लगातार चार बार मुख्यमंत्री बने। इसके बाद उन्होंने दिल्ली कूच किया और प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाली। लेकिन पदों की यह ऊंचाई किसी विशेष पेंशन में नहीं बदलती।

लोग अक्सर सोचते हैं कि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री बनने का मतलब आजीवन सरकारी पेंशन है। इसके विपरीत, भारतीय कानून में इस पद के लिए कोई अलग पेंशन का प्रावधान ही नहीं है। प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में पेंशन नहीं दी जाती। हां, यदि वे सांसद या विधायक रहे हैं तो उसी हैसियत से उन्हें पेंशन मिल सकती है। लेकिन गुजरात का मामला बिल्कुल अलग है।

मोदी को मुख्यमंत्री कार्यकाल की कोई पेंशन नहीं मिलती
गुजरात देश का एकमात्र राज्य है जिसने 2001 में ही पूर्व विधायकों की पेंशन का प्रावधान समाप्त कर दिया था। यानी मोदी ही नहीं, गुजरात का कोई भी पूर्व विधायक पेंशन का हकदार नहीं है। यह पहले बनाम अब का स्पष्ट उदाहरण है - जहां पहले विधायक पेंशन के अधिकारी थे, वहीं अब इस अधिकार को छीन लिया गया है। यही वजह है कि मोदी को मुख्यमंत्री कार्यकाल की कोई पेंशन नहीं मिलती।

आज जबकि कई राज्यों में विधायक और सांसद भारी-भरकम पेंशन व सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं, गुजरात के जनप्रतिनिधियों को यह सुविधा नहीं है। यह जनता बनाम सत्ता का बड़ा अंतर है। गांधी के गुजरात में यह निर्णय लिया गया कि नेताओं को आजीवन पेंशन की बजाय सेवा करनी चाहिए। यही नैतिकता है।

इस पर राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, “नेता सेवा के लिए चुनकर आते हैं, जीवनभर की कमाई के लिए नहीं।” यह कथन गुजरात विधानसभा के उस फैसले को मजबूत करता है जिसने नेताओं की पेंशन व्यवस्था समाप्त कर दी। लोकतंत्र में यह संदेश साफ है कि पद सम्मान का प्रतीक है, निजी लाभ का साधन नहीं।

यदि आज देश की सभी विधानसभाएं और संसद गुजरात की तरह पेंशन बंद कर दें, तो नेताओं के लिए राजनीति धंधा नहीं, सेवा का माध्यम बन जाएगी। लेकिन इसके विपरीत कई राज्यों में नेता कई-कई बार की पेंशन उठा रहे हैं और जनता पर बोझ डाल रहे हैं। यही असली बर्बादी है। मोदी आज केवल प्रधानमंत्री की सैलरी और उससे जुड़ी सुविधाएं प्राप्त करते हैं। न तो उन्हें गुजरात से पेंशन मिलती है, न ही कोई अतिरिक्त लाभ। अफवाहें और सोशल मीडिया की झूठी कहानियाँ जनता को बहकाने का काम करती हैं। सच्चाई यही है कि मोदी की आय सिर्फ प्रधानमंत्री पद की है, कुछ और नहीं।

 

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