Edited By Mansa Devi,Updated: 24 Jul, 2025 02:49 PM

अगर आप भी इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि सदी का सबसे लंबा सूर्य ग्रहण 2 अगस्त को लगेगा या 21 सितंबर को, तो हम यह स्पष्ट कर दें कि इस साल यानी 2025 में सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को ही लगेगा।
नेशनल डेस्क: अगर आप भी इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि सदी का सबसे लंबा सूर्य ग्रहण 2 अगस्त को लगेगा या 21 सितंबर को, तो हम यह स्पष्ट कर दें कि इस साल यानी 2025 में सूर्य ग्रहण 21 सितंबर को ही लगेगा।
दरअसल, 2 अगस्त को लगने वाले जिस 'सदी के सबसे लंबे' ग्रहण की चर्चा हो रही है, वह वर्ष 2027 का एक विशेष पूर्ण सूर्य ग्रहण है, जो 6 मिनट से अधिक समय तक दिखाई देगा। लेकिन अगर 2025 की बात करें, तो पितृ पक्ष की अमावस्या तिथि पर 21 सितंबर को आंशिक सूर्य ग्रहण लगेगा। यह इस साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण होगा।
भारत में दिखाई नहीं देगा ग्रहण, सूतक काल मान्य नहीं
हालांकि, यह जानना ज़रूरी है कि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। इस वजह से इसका कोई भी धार्मिक प्रभाव भारत में मान्य नहीं होगा। ऐसे में, ग्रहण का सूतक काल भी लागू नहीं होगा और लोगों को किसी भी तरह के धार्मिक नियमों का पालन करने की आवश्यकता नहीं होगी।
वैदिक पंचांग और ज्योतिष के अनुसार महत्व
वैदिक पंचांग के अनुसार, यह ग्रहण 21 सितंबर की रात 11 बजे शुरू होगा और 22 सितंबर की सुबह 3:24 बजे खत्म होगा। इस ग्रहण को मुख्य रूप से अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फिजी, न्यूजीलैंड और अटलांटिक महासागर के कुछ हिस्सों में ही देखा जा सकेगा।
खास बात यह है कि यह सूर्य ग्रहण सर्व पितृ अमावस्या के दिन लगेगा। हिंदू धर्म में पितृ अमावस्या को बहुत खास माना जाता है, जब लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं। चूंकि यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए यहाँ ग्रहणकाल से जुड़ी कोई पूजा या नियम मान्य नहीं होंगे।
ज्योतिष के अनुसार, यह ग्रहण कन्या राशि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में लगेगा। इसका असर राशियों पर ज़रूर होगा, लेकिन चूंकि यह भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए कोई विशेष ग्रहण दोष नहीं माना जाएगा। ऐसे में लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर ग्रहण दिखाई न दे, तो उसका सूतक और पूजा-पाठ से जुड़ा प्रभाव मान्य नहीं होता। फिर भी, पितृ अमावस्या के दिन दान और पितरों के लिए श्रद्धा भाव से कार्य करने की परंपरा जारी रह सकती है।