समय रैना को सुप्रीम कोर्ट से मिला ये काम करने का खास आदेश, जानें क्या है पूरा मामला

Edited By Updated: 27 Nov, 2025 07:45 PM

supreme court orders comedians to host disability awareness programmes

सुप्रीम कोर्ट ने कॉमेडियन समय रैना समेत चार हास्य कलाकारों को निर्देश दिया है कि वे हर महीने दिव्यांगजनों की प्रेरक कहानियों पर आधारित कार्यक्रम आयोजित करें और उससे जुटी धनराशि दिव्यांगों के उपचार कोष में जमा करें। कोर्ट ने कहा कि उद्देश्य दंड देना...

नेशनल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 26 नवंबर को कॉमेडियन और यूट्यूबर समय रैना सहित तीन अन्य कॉमेडियनों को महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए। अदालत ने कहा कि ये सभी कलाकार अपने-अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिव्यांगजनों की प्रेरणादायक सफलता की कहानियों पर आधारित विशेष कार्यक्रम आयोजित करें। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इन कार्यक्रमों से जुटाई गई धनराशि का उपयोग दिव्यांग व्यक्तियों के समय पर और प्रभावी उपचार के लिए किया जाना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान कहा कि न्यायालय इन कलाकारों पर दंडात्मक आदेश नहीं लगा रहा, बल्कि सामाजिक ज़िम्मेदारी सौंप रहा है। उन्होंने कहा, “हमें उम्मीद है कि अगली सुनवाई से पहले कुछ यादगार और प्रभावशाली कार्यक्रम सामने आएंगे। आप सभी समाज में अच्छी स्थिति में हैं। अगर आप लोकप्रिय हुए हैं, तो इसका लाभ समाज के अन्य लोगों को देना चाहिए।”

दिव्यांगजनों पर आपत्तिजनक टिप्पणी का मामला
ये निर्देश क्योर एसएमए फाउंडेशन द्वारा दायर याचिका के आधार पर जारी किए गए हैं। याचिका में इन कलाकारों पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने दिव्यांगजनों के बारे में अपमानजनक और असंवेदनशील टिप्पणियाँ कीं, जिससे उनकी भावनाएं आहत हुईं।सुप्रीम कोर्ट इस साल की शुरुआत से ही ऐसे मामलों की सुनवाई कर रहा है, जिसमें “इंडियाज़ गॉट लेटेंट” जैसे कार्यक्रमों और विकलांगता पर आधारित आपत्तिजनक चुटकुलों पर सवाल उठाए गए थे। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध नहीं करती, लेकिन डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर कुछ आपत्तिजनक और विकृत सामग्री गंभीर चिंता का विषय है।

उन्होंने कहा, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूल्यवान है, लेकिन विकृत सामग्री की अनुमति किसी भी हाल में नहीं दी जा सकती।” मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने डिजिटल माध्यमों पर जवाबदेही की कमी पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “अगर मैं एक चैनल शुरू कर दूं तो क्या मैं किसी के प्रति जवाबदेह नहीं? किसी भी वयस्क या संवेदनशील सामग्री के पहले उचित चेतावनी होनी चाहिए और यह चेतावनी स्वायत्त संस्था द्वारा जारी होनी चाहिए, न कि मनमाने तरीके से।”

न्यायालय का डिजिटल कंटेंट पर रुख
CJI ने कहा कि न्यायालय किसी भी प्रकार का सेंसर या निगरानी प्राधिकरण नहीं बनना चाहता, लेकिन जब पहले से मौजूद नियमन तंत्र प्रभावी नहीं है, तो ऐसी शिकायतें लगातार बढ़ती रहती हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों और आम दर्शकों की सुरक्षा आवश्यक है और डिजिटल सामग्री निर्माताओं को एक निश्चित जवाबदेही स्वीकार करनी होगी। सुनवाई में बताया गया कि डिजिटल आचार संहिता इस समय न्यायिक समीक्षा के अधीन है और दिल्ली हाईकोर्ट 8 जनवरी, 2026 को इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा। वहीं प्रसारक संस्थान ने तर्क दिया कि उद्योग में पहले से ही जस्टिस गीता मित्तल की अध्यक्षता में एक शिकायत निवारण तंत्र मौजूद है।

न्यायमूर्ति बागची ने वायरल कंटेंट पर समय रहते कार्रवाई करने की चुनौतियों का भी ज़िक्र किया। उन्होंने कहा कि अक्सर कोई वीडियो अधिकारियों की कार्रवाई से पहले ही लाखों लोगों तक पहुंच जाता है, जिससे नुकसान हो चुका होता है। उन्होंने देश-विरोधी या गलत सीमांकन जैसे मामलों में कंटेंट क्रिएटर्स को जवाबदेह ठहराने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि कई युवा कंटेंट क्रिएटर्स बिना किसी सोचे-समझे संवेदनशील विषयों पर मज़ाक कर देते हैं, जो समाज में गलत संदेश देता है। उन्होंने कहा कि अदालत दंड देने के बजाय उन्हें सामाजिक रूप से जागरूक बनाने की दिशा में काम कर रही है।

समय रैना और अन्य कॉमेडियनों के लिए अंतिम निर्देश
अदालत ने समय रैना और अन्य हास्य कलाकारों को यह निर्देश दिया कि वे हर महीने कम से कम दो कार्यक्रम आयोजित करें, जिनका उद्देश्य दिव्यांगजनों के अधिकारों, सम्मान और प्रेरक कहानियों को बढ़ावा देना होना चाहिए।इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इन कार्यक्रमों से जुटाई गई राशि विशेष कोष में जमा की जाए, ताकि दिव्यांग व्यक्तियों के उपचार और पुनर्वास में उसका उपयोग हो सके।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि उद्देश्य दंड देना नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी को बढ़ावा देना है। कोर्ट ने कहा, “ये कार्यक्रम केवल औपचारिकता न हों, बल्कि इनसे वास्तव में जागरूकता बढ़े और समाज में दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति सम्मान का सशक्त संदेश जाए।”

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