जस्टिस यशवंत वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से झटका, कैश कांड मामलें में हुई याचिका खारिज

Edited By Updated: 07 Aug, 2025 02:27 PM

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सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने उनके द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट के उनके सरकारी आवास से जली हुई नकदी मिलने के मामले में गठित जांच समिति की...

नेशनल डेस्क : सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा को बड़ा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने उनके द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने हाईकोर्ट के उनके सरकारी आवास से जली हुई नकदी मिलने के मामले में गठित जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य ठहराने की मांग की थी। इसके अलावा उन्होंने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई उनके पद से हटाने की सिफारिश को भी चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जस्टिस वर्मा की याचिका विचार योग्य नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि जांच समिति की प्रक्रिया और तत्कालीन CJI द्वारा अपनाई गई कार्यवाही पूरी तरह कानूनी और संवैधानिक है। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि जब जस्टिस वर्मा खुद जांच प्रक्रिया में शामिल हुए थे, तो अब वह उसकी वैधता पर सवाल नहीं उठा सकते।

क्या है पूरा मामला?
यह मामला 14 मार्च 2025 की रात का है, जब दिल्ली के तुगलक रोड स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई थी। उस समय वे दिल्ली से बाहर थे। आग बुझाने के लिए पहुंची दमकल और पुलिस की टीम को घर के स्टोर रूम में बोरियों में भरे जले और अधजले ₹500 के नोटों के ढेर मिले थे।

इस घटना के सामने आने के बाद न्यायपालिका की छवि पर गंभीर सवाल खड़े हुए। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने स्वतः संज्ञान लेते हुए एक आंतरिक जांच समिति का गठन किया। समिति में तीन वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल थे।

जांच समिति की रिपोर्ट में क्या कहा गया?
जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि जिस स्टोर रूम में नकदी मिली, उस पर जस्टिस वर्मा और उनके परिवार का नियंत्रण था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जस्टिस वर्मा नकदी के स्रोत की संतोषजनक जानकारी नहीं दे सके, जिसे गंभीर कदाचार (misconduct) माना गया। समिति ने महाभियोग की सिफारिश करते हुए यह रिपोर्ट तत्कालीन सीजेआई को सौंपी।

रिपोर्ट आने के बाद संसद के मानसून सत्र में सत्ता और विपक्ष के 200 से अधिक सांसदों ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर उसे लोकसभा अध्यक्ष को सौंपा। इसी बीच जस्टिस वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जांच प्रक्रिया और रिपोर्ट की वैधता को चुनौती दी थी।

अंततः सुप्रीम कोर्ट का फैसला
अब सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि जांच में कोई प्रक्रिया दोष नहीं था और समिति की सिफारिशें पूरी तरह उचित थी। इस फैसले के साथ ही जस्टिस वर्मा को न्यायिक लड़ाई में एक बड़ा झटका लगा है।

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