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Supreme Court का सख्त रुख, संजीव भट्ट को जेल में ही रहना होगा, जमानत याचिका की खारिज

Edited By Rohini Oberoi,Updated: 29 Apr, 2025 12:08 PM

supreme court says sanjeev bhatt will have to remain in jail bail plea rejected

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कोई राहत नहीं दी है। कोर्ट ने 1990 के एक हिरासत में मौत के मामले में उनकी उम्रकैद की सजा पर रोक लगाने और उन्हें जमानत देने की याचिका को खारिज कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि उनकी...

नेशनल डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को कोई राहत नहीं दी है। कोर्ट ने 1990 के एक हिरासत में मौत के मामले में उनकी उम्रकैद की सजा पर रोक लगाने और उन्हें जमानत देने की याचिका को खारिज कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने यह जरूर कहा है कि उनकी अपील पर तेजी से सुनवाई की जाएगी।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की बेंच ने मंगलवार को खुले कोर्ट में अपना फैसला सुनाते हुए स्पष्ट कहा, "हम संजीव भट्ट को जमानत देने के इच्छुक नहीं हैं। जमानत की अर्जी खारिज की जाती है। इस फैसले का अपील की सुनवाई पर कोई असर नहीं पड़ेगा और अपील पर जल्द सुनवाई की जाएगी।"

क्या है 1990 का मामला?

यह मामला अक्टूबर 1990 का है जब संजीव भट्ट गुजरात के जामनगर जिले में एडिशनल एसपी के पद पर तैनात थे। उस दौरान बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की अयोध्या रथयात्रा की गिरफ्तारी के विरोध में बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद ने भारत बंद बुलाया था जिसके बाद सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे। भट्ट ने तब आतंकवादी और विध्वंसक गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (TADA) के तहत 133 लोगों को हिरासत में लिया था।

इनमें से एक व्यक्ति प्रभुदास वैष्णानी जमानत पर रिहा होने के कुछ ही दिनों बाद उनके परिवार ने आरोप लगाया था कि हिरासत में उनके साथ बहुत बुरा बर्ताव किया गया था जिसके कारण उनकी मौत हुई। कहा गया कि नौ दिन हिरासत में रहने के बाद रिहा होने पर प्रभुदास की मौत गुर्दा फेल होने से हुई थी।

इस मामले में 1995 में पहली एफआईआर दर्ज हुई और मजिस्ट्रेट ने आरोप तय किए। भट्ट समेत सात पुलिसकर्मियों - दो उपनिरीक्षकों और तीन सिपाहियों को आरोपी बनाया गया।

जामनगर के सत्र न्यायालय ने संजीव भट्ट और एक अन्य अधिकारी को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके बाद भट्ट ने गुजरात हाईकोर्ट में अपील की जिसे जनवरी 2024 में खारिज कर दिया गया। फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां अगस्त 2024 में गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया गया था।

अपील पर जल्द सुनवाई, अन्य मामलों में भी उलझे

सुप्रीम कोर्ट ने भले ही संजीव भट्ट को अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया हो लेकिन उसने उनकी अपील पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करने का निर्देश दिया है।

इसके अलावा संजीव भट्ट दो और कानूनी मामलों में भी फंसे हुए हैं। 1996 के एक ड्रग्स के फर्जीवाड़े के मामले में उन्हें सत्र न्यायालय ने 20 साल की सजा सुनाई थी जिसकी अपील गुजरात हाईकोर्ट में अभी लंबित है। वहीं 1997 के हिरासत में यातना के एक अन्य मामले में उन्हें दिसंबर 2024 में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने बरी कर दिया था।

विवादों से रहा है पुराना नाता

2015 में सेवा से बर्खास्त किए गए संजीव भट्ट लंबे समय से विवादों के केंद्र में रहे हैं। उनकी उम्रकैद की सजा खासकर 1990 के दंगों के सांप्रदायिक और राजनीतिक माहौल को देखते हुए पूरे देश में मीडिया और लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी हुई है।

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