BMC चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी- रिजर्वेशन ट्रेन का डिब्ब हो गया है...

Edited By Updated: 06 May, 2025 03:27 PM

reservation has become a train compartment supreme court

महाराष्ट्र में लंबे समय से अटके स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। बृहन्नमुंबई महानगरपालिका (BMC) समेत राज्य के कई शहरी निकायों के चुनाव अब जल्द होंगे।

नेशलन डेस्क: महाराष्ट्र में लंबे समय से अटके स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। बृहन्नमुंबई महानगरपालिका (BMC) समेत राज्य के कई शहरी निकायों के चुनाव अब जल्द होंगे। ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी विवाद के बीच अदालत ने यह साफ कर दिया है कि लोकतंत्र में चुने हुए प्रतिनिधियों की मौजूदगी जरूरी है, ना कि सरकारी अधिकारियों से काम चलाया जाए। साथ ही अदालत ने ओबीसी आरक्षण को लेकर एक बेहद तीखी और सोचने पर मजबूर कर देने वाली टिप्पणी भी की है— "आरक्षण एक ऐसा रेल का डब्बा हो गया है, जिसमें पहले से बैठे लोग किसी और को चढ़ने ही नहीं देना चाहते।"

सुप्रीम कोर्ट का आदेश: 4 सप्ताह में चुनाव की अधिसूचना जारी हो

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग को आदेश दिया है कि वह चार हफ्तों के भीतर चुनाव की अधिसूचना जारी करे और कोशिश की जाए कि चुनाव प्रक्रिया चार महीने के अंदर पूरी हो जाए। यह आदेश देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम माना जा रहा है।

2022 से अटके हैं चुनाव, ओबीसी आरक्षण बना था बाधा

दरअसल, साल 2022 से ही BMC समेत कई अन्य स्थानीय निकायों के चुनाव ओबीसी आरक्षण को लेकर जारी विवाद की वजह से टाले जाते रहे थे। इस दौरान कई बार राज्य सरकार, चुनाव आयोग और अदालतों के बीच मुद्दा उलझता रहा। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि लोकतंत्र में देरी की कोई जगह नहीं है।

पुरानी आरक्षण व्यवस्था के तहत होंगे चुनाव

ओबीसी आरक्षण को लेकर बंथिया कमेटी की रिपोर्ट जुलाई 2022 में आई थी, लेकिन अभी भी इस रिपोर्ट से जुड़ी याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। ऐसे में कोर्ट ने कहा है कि जब तक पूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक पुरानी व्यवस्था के तहत ही आरक्षण लागू किया जाए। इसका मतलब है कि ओबीसी को फिलहाल वैसा ही आरक्षण मिलेगा जैसा पहले मिलता रहा है।

'लोकतंत्र की नींव हैं स्थानीय चुनाव'

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव लोकतंत्र की बुनियाद हैं और इन्हें समय पर कराना बेहद जरूरी है। कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों की जगह राज्य में सरकारी अधिकारी काम कर रहे हैं, जो लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ है।

आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का तीखा कटाक्ष

ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसी टिप्पणी की है, जिसने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा— “आरक्षण अब ऐसा रेल का डब्बा बन गया है जिसमें पहले से बैठे लोग किसी और को चढ़ने ही नहीं देना चाहते।” कोर्ट का यह बयान उस सामाजिक असमानता को उजागर करता है जो कई बार आरक्षण के नाम पर पनप जाती है।

पिछड़ों की पहचान जरूरी, लेकिन कानून के दायरे में

कोर्ट ने यह भी माना कि सामाजिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान कर उन्हें मजबूत बनाना जरूरी है। लेकिन इसके लिए सरकार को पहले सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी। जब तक पूरा डेटा और कानूनी प्रक्रिया न हो, तब तक आरक्षण देना जल्दबाज़ी मानी जाएगी।

क्या है बंथिया कमेटी रिपोर्ट?

बंथिया कमेटी को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह ओबीसी समाज की जनसंख्या, उनकी राजनीतिक भागीदारी और सामाजिक स्थिति का आंकलन करे। रिपोर्ट जुलाई 2022 में आ गई थी, लेकिन इस पर अदालत में कई याचिकाएं लंबित हैं, जिनका निपटारा अभी तक नहीं हुआ है।

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