Edited By Mehak,Updated: 22 Dec, 2025 04:33 PM

भारत में परमाणु हथियार पूरी तरह सुरक्षित और जिम्मेदार कमांड सिस्टम के तहत रखे गए हैं। प्रधानमंत्री अकेले परमाणु हमला नहीं कर सकते। सभी फैसले ‘न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी’ के तहत लिए जाते हैं, जिसमें राजनीतिक परिषद और कार्यकारी परिषद शामिल हैं। नो...
नेशनल डेस्क : परमाणु हथियारों को लेकर आम लोगों के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं। सबसे बड़ा सवाल यही होता है कि भारत में परमाणु हथियारों पर असल नियंत्रण किसके हाथ में है। क्या प्रधानमंत्री अकेले परमाणु हमले का आदेश दे सकते हैं या फिर इसके लिए तय नियम, संस्थाएं और प्रक्रियाएं होती हैं। इन सवालों का जवाब भारत की परमाणु नीति और कमांड सिस्टम को समझे बिना नहीं मिल सकता।
भारत दुनिया के उन गिने-चुने देशों में शामिल है जिनके पास परमाणु हथियार हैं। अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार भारत के पास लगभग 180 परमाणु हथियार हैं। हालांकि भारत ने हमेशा साफ किया है कि ये हथियार आक्रामक मंशा से नहीं रखे गए हैं। भारत का रुख शुरू से यही रहा है कि परमाणु ताकत का मकसद डर फैलाना नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और शांति बनाए रखना है। इसी सोच के चलते भारत की परमाणु नीति को जिम्मेदार और संतुलित माना जाता है।
'No First Use' नीति का मतलब
भारत की परमाणु नीति की सबसे अहम बात 'No First Use' सिद्धांत है। इसका अर्थ है कि भारत कभी भी पहले परमाणु हमला नहीं करेगा। जब तक किसी देश द्वारा भारत पर परमाणु हमला नहीं किया जाता, तब तक भारत इन हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा। यह नीति भारत की रक्षात्मक सोच को दिखाती है और दुनिया को यह भरोसा दिलाती है कि भारत परमाणु हथियारों को आखिरी विकल्प के तौर पर ही देखता है।
क्या परमाणु हमला सिर्फ एक आदेश से हो सकता है?
फिल्मों में अक्सर दिखाया जाता है कि कोई नेता एक बटन दबाता है और परमाणु हमला हो जाता है। लेकिन असल जिंदगी में ऐसा बिल्कुल नहीं होता। परमाणु हथियारों का इस्तेमाल बेहद जटिल प्रक्रिया है। इसमें कई स्तरों पर जानकारी की पुष्टि, तकनीकी जांच, सैन्य तैयारी और कानूनी मंजूरी शामिल होती है। किसी एक व्यक्ति के कहने या एक फैसले से परमाणु हमला संभव नहीं होता।
भारत में परमाणु हथियारों का नियंत्रण किसके पास है?
भारत में परमाणु हथियारों से जुड़े सभी फैसले 'Nuclear Command Authority' के तहत लिए जाते हैं। यह देश की सर्वोच्च संस्था है जो परमाणु नीति और हथियारों के उपयोग पर अंतिम फैसला करती है। न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी के दो मुख्य हिस्से होते हैं। पहला राजनीतिक परिषद, जिसके अध्यक्ष प्रधानमंत्री होते हैं। यह परिषद राजनीतिक स्तर पर अंतिम मंजूरी देती है। दूसरा कार्यकारी परिषद होती है, जिसकी अगुवाई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार करते हैं। यह परिषद तकनीकी, सैन्य और रणनीतिक पहलुओं की समीक्षा करती है। दोनों परिषदों की सहमति और तय प्रक्रिया के बिना परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
क्या प्रधानमंत्री अकेले फैसला ले सकते हैं?
प्रधानमंत्री देश के सर्वोच्च कार्यकारी प्रमुख होते हैं, लेकिन परमाणु हथियारों के मामले में वे अकेले निर्णय नहीं लेते। उन्हें पूरी न्यूक्लियर कमांड अथॉरिटी और निर्धारित संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना होता है। यह व्यवस्था जानबूझकर बनाई गई है ताकि किसी भी तरह की जल्दबाजी, भावनात्मक प्रतिक्रिया या एकतरफा फैसला न लिया जा सके।
भारत की परमाणु व्यवस्था क्यों मानी जाती है खास?
भारत की परमाणु नीति को दुनिया में इसलिए अलग माना जाता है क्योंकि इसमें ताकत के साथ जिम्मेदारी को भी बराबर महत्व दिया गया है। पहले हमला न करने की नीति, सामूहिक निर्णय प्रणाली और मजबूत कमांड स्ट्रक्चर भारत को एक भरोसेमंद परमाणु राष्ट्र बनाते हैं। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को एक संतुलित और जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में देखा जाता है, जो परमाणु हथियारों का इस्तेमाल केवल आखिरी विकल्प के तौर पर ही करता है।