दिनभर चाहे कितना भी भजन कर लो... अगर इस पहर में परमात्मा को नहीं किया याद तो सब बेकार, प्रेमानंद जी जानें सच्ची उपासना का क्या है समय?

Edited By Updated: 18 Nov, 2025 12:19 PM

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वृंदावन के विख्यात संत और राधा रानी के परम भक्त प्रेमानंद महाराज ने एक बार फिर अपने अनुयायियों को जीवन में अनुशासन और आध्यात्मिक सफलता का मार्ग दिखाया। अपने सरल और प्रभावशाली उपदेशों के लिए प्रसिद्ध महाराज ने इस बार ब्रह्म मुहूर्त में जागने के महत्व...

नेशनल डेस्क: वृंदावन के विख्यात संत और राधा रानी के परम भक्त प्रेमानंद महाराज ने एक बार फिर अपने अनुयायियों को जीवन में अनुशासन और आध्यात्मिक सफलता का मार्ग दिखाया। अपने सरल और प्रभावशाली उपदेशों के लिए प्रसिद्ध महाराज ने इस बार ब्रह्म मुहूर्त में जागने के महत्व पर जोर दिया और बताया कि क्यों यह समय साधना और आत्मचिंतन के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

सुबह जल्दी उठने का आध्यात्मिक महत्व
प्रेमानंद महाराज के अनुसार, जो व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठता, वह न केवल अनुशासन और ब्रह्मचर्य के मार्ग से पीछे रह जाता है, बल्कि जीवन में वास्तविक आध्यात्मिक लाभ भी नहीं प्राप्त कर पाता। उन्होंने बताया कि सुबह 4 से 6 बजे का समय शांत, ऊर्जावान और दिव्यता से भरा होता है, और इस दौरान किया गया मंत्रजाप और स्मरण कई गुना फलदायी होता है।

ब्रह्म मुहूर्त में सोना क्यों नहीं
महाराज ने स्पष्ट किया कि जो साधक इस समय सोता है, वह अपने आलस्य को बढ़ावा देता है और आध्यात्मिक उन्नति में बाधा डालता है। यह केवल सोने का समय नहीं, बल्कि मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध करने का समय है। उनका कहना है कि रात में देर तक भजन या साधना करने वालों के लिए थोड़ी देर सोना उचित है, लेकिन बिना कारण देर तक सोना अनुशासन और साधना दोनों को प्रभावित करता है।

सच्ची उपासना ब्रह्म मुहूर्त में
प्रेमानंद महाराज ने बताया कि ब्रह्म मुहूर्त में जागकर अपने ईष्ट का स्मरण करना भगवान की विशेष कृपा को आकर्षित करता है। इस समय की शांति और ऊर्जावान वातावरण साधना के प्रभाव को बढ़ा देता है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

ब्रह्म मुहूर्त का सनातन धर्म में स्थान
सनातन परंपरा में ब्रह्म मुहूर्त को “भगवान का समय” या अक्षय मुहूर्त कहा जाता है। महाराज के अनुसार, इस समय उठकर स्नान करना, आंखें बंद करके मंत्र जप करना और ध्यान लगाना अत्यंत शुभ माना जाता है। इससे न केवल आध्यात्मिक विकास होता है, बल्कि व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रूप से भी स्वस्थ और ऊर्जावान बनता है।

 

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