सुख और यश प्राप्त करने के लिए इन्हें बनाएं अपना मित्र

Edited By ,Updated: 04 Jul, 2016 12:16 PM

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मित्र शब्द अपने आप में अत्यंत व्यापक, आनंदमय और गंभीर है। ईश्वर को भी मित्र कहा गया है। स्वयं व्यक्ति अपना मित्र होता है, इसका अपना

मित्र शब्द अपने आप में अत्यंत व्यापक, आनंदमय और गंभीर है। ईश्वर को भी मित्र कहा गया है। स्वयं व्यक्ति अपना मित्र होता है, इसका अपना अलग ही दर्शन है। विचारकों के अनुसार जो व्यक्ति खुद का सच्चा मित्र होता है और जिसकी स्वयं से विश्वसनीय मैत्री होती है, उसी का जीवन सुखमय और शांतिमय होता है। आत्म-साक्षात्कार से बढ़कर दूसरी कोई भक्ति और कार्य नहीं होता। यही सच्ची मैत्री है। 

 

अपनी आत्मा का मित्र बनना और आत्मा की कही बातों को मानना ही सबसे बड़ा जीवन आदर्श और लक्ष्य है। आत्मा हमेशा सत्य, प्रेम, अहिंसा, करुणा, दया और सद्भावना की सीख देती है। गलत कार्यों, नकारात्मक प्रवृत्तियों और हिंसा के कर्मों से दूर रहने की प्रेरणा संकेतों में आत्मा हमेशा देती है। कभी भी आत्मारूपी मित्र धोखा नहीं देता। सच्चे रास्ते पर चलने की प्रेरणा के साथ परोपकार के लिए भी आत्मा हमें प्रेरित करती है। हम उसकी प्रेरणा को मानते और अमल में लाते नहीं हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि हम सच्चे सुख से हमेशा दूर रहते हैं। मन के वशीभूत न होकर हम आत्मा की आवाज सुनकर कार्य करें तो जीवन कभी असफल नहीं हो सकता।

 

ईश्वर और आत्मा ऐसे मित्र हैं, जिनकी मित्रता का आधार स्वार्थ नहीं, बल्कि जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इसीलिए ईश्वर को सच्चा मित्र कहा गया है। धर्म और सद्साहित्य को भी सच्चा मित्र बताया गया है। धर्म ही अंतिम समय में साथ देता है, इसलिए इसे सच्चा मित्र और भ्राता कहा गया है। सद्गुण भी श्रेष्ठ मित्र कहे गए हैं। ये ऐसे मित्र हैं, जिससे हमारा जीवन कुंदन बन जाता है। इसलिए सद्गुण रूपी मित्रों को कभी नहीं छोडऩा चाहिए। सद्गुणों से जिसकी मैत्री हो जाती है, वह जीवन में सभी सुखों और यश को प्राप्त कर लेता है।

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