हिमाचल प्रदेश में लगातार बढ़ रहा ‘बंदरों का उत्पात’

Edited By ,Updated: 25 Sep, 2016 01:57 AM

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प्राचीनकाल में जो वानर मानव के सहयोगी, मित्र व रक्षक की भूमिका में होते थे वही आज मानव के शत्रु बन गए हैं। ये न सिर्फ लोगों को निशाना बना रहे हैं बल्कि ...

प्राचीनकाल में जो वानर मानव के सहयोगी, मित्र व रक्षक की भूमिका में होते थे वही आज मानव के शत्रु बन गए हैं। ये न सिर्फ लोगों को निशाना बना रहे हैं बल्कि लोगों के घरों से खाने-पीने का सामान, कपड़े व अन्य चीजें भी उठा कर तथा हाथों से छीन कर ले जाते हैं। पिछले काफी समय से देश के अनेक भागों हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश आदि में बंदरों के उत्पात ने लोगों का जीना दूभर कर रखा है।

ये कहीं छतों पर पहुंच कर लोगों को नुक्सान पहुंचा रहे हैं, कहीं घरों में घुस कर उन्हें काट रहे हैं और इस कदर हिंसक हो गए हैं कि लोग इनसे दूर रहने में ही भलाई समझते हैं। ये टोलियों के रूप में आते हैं और घरों में जहां चाहें जा घुसते हैं। इनके डर से अनेक स्थानों पर लोगों ने घरों के दरवाजे बंद रखने शुरू कर दिए हैं। 

यही नहीं, ये बंदर किसानों की फसलें तबाह करके उन्हें दीवालिएपन के कगार पर पहुंचा रहे हैं। ये मक्की की फसल तो पूरी की पूरी ही चट कर जाते हैं और अन्य फसलों तथा फलों को भी भारी हानि पहुंचाते हैं जिस कारण अनेक किसानों ने खेती का धंधा ही छोड़ दिया है या फिर अनाज वाली फसलों की बजाय चारे की बिजाई शुरू कर दी है। 

हिमाचल के 2300 गांवों व शहरी इलाकों में इनका कहर समान रूप से जारी है। हिंसक होते जा रहे बंदर लोगों के डराने पर भी नहीं भागते और उन्हें काट खाते हैं। ये पहले कुत्तों से डरते थे परंतु अब तो कुत्तों पर भी हमले करने लगे हैं।

प्रदेश में बंदरों की बढ़ती संख्या से कृषि और अर्थव्यवस्था को भारी क्षति पहुंच रही है। वन्य जीव विभाग के अनुसार 1990 से 2004 के बीच यहां बंदरों की संख्या में 5 गुणा वृद्धि हुई जो 61,000 से बढ़कर 3,17,000 हो गई है।  

शिमला जिले में ही कम से कम 40,000 बंदर हैं तथा वहां रोज लगभग 20 लोग इनके हमले के शिकार हो रहे हैं। मात्र पिछले 3 वर्षों में बंदरों ने हिमाचल प्रदेश में 674 से अधिक लोगों को काटा जिन्हें वन विभाग को क्षतिपूर्ति के रूप में लगभग 28 लाख रुपए देने पड़े। 

केंद्र सरकार ने इस वर्ष 14 मार्च को एक अधिसूचना द्वारा हिमाचल प्रदेश की 38 तहसीलों में बंदरों को ‘वर्मिन’ अर्थात ‘हिंसक’ घोषित करके एक वर्ष के लिए इन्हें मारने की अनुमति दी थी जबकि शिमला में बंदरों को छ: महीने की अवधि के लिए ‘हिंसक’ जीव घोषित किया था। 

‘हिंसक’ श्रेणी में उन बंदरों या जंगली जानवरों को रखा जाता है जिन्हें फसल, पालतू पशुओं आदि के लिए खतरनाक समझा जाता है और जिनसे रोग फैल सकते हैं परंतु बताया जाता है कि छ: महीनों में एक भी बंदर शिमला में नहीं मारा गया जिस कारण अब प्रदेश सरकार इस अधिसूचना की अवधि बढ़वाने की इच्छुक है। 

प्रदेश में एक के बाद एक आई सरकारों ने इन पर अंकुश लगाने के अनेक प्रयास किए जिनमें बंदरों की नसबंदी से लेकर उनके लिए बाड़े बनाने तक के उपाय शामिल हैं परंतु समस्या ज्यों की त्यों है क्योंकि बाड़ों से ये छलांग लगाकर भाग जाते हैं और जंगलों में छोडऩे पर वापस लौट आते हैं। हालांकि सरकार के बंध्याकरण कार्यक्रम से इनकी संख्या कुछ घटी है, परंतु अभी भी इनकी संख्या 2 लाख से अधिक है जो काफी ज्यादा है। 

एक बंदर की नसबंदी पर 2000 रुपए खर्च आते हैं। अभी तक प्रदेश सरकार 19.4 करोड़ रुपए खर्च करके 97,000 बंदरों की नसबंदी कर चुकी है। इस समय शिमला, गोपालपुर और ससतर में बंदरों के नसबंदी अभियान चलाए जा रहे हैं। लेकिन अभी तक इसका पता लगाने का कोई तरीका नहीं था कि इनकी नसबंदी हुई है या नहीं, अत: अब इनकी पहचान के लिए टैटू लगाने का सिलसिला शुरू किया जा रहा है।  

इन पर नियंत्रण पाने के एक उपाय के रूप में विभिन्न कृषक संगठनों द्वारा प्रदेश सरकार से इन्हें ‘कीटों’ की श्रेणी में शामिल करके इनकी संख्या पर नियंत्रण पाने के लिए इनको मारने की मांग की जा रही है। अत: दिनों-दिन गंभीर होती जा रही इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए यदि ठोस उपाय न किए गए तो एक दिन यह समस्या बेकाबू हो सकती है। 

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