Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Mar, 2018 12:56 PM
सन् 1965 में अमरीका ने भारत को गेहूं का निर्यात बंद कर दिया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित एक विशाल रैली की। रैली में वह बोले, ‘मेरे प्रिय भारत वासियों, एक तरफ पड़ोसी देश से सीमा पर युद्ध चल रहा है...
सन् 1965 में अमरीका ने भारत को गेहूं का निर्यात बंद कर दिया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित एक विशाल रैली की। रैली में वह बोले, ‘मेरे प्रिय भारत वासियों, एक तरफ पड़ोसी देश से सीमा पर युद्ध चल रहा है व दूसरी ओर अमरीका ने दबाव बनाने के लिए हमें गेहूं भेजना बंद कर दिया है। हमने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए इस चुनौती को स्वीकार किया है। मैं देश के प्रत्येक नागरिक से निवेदन करता हूं कि वह फिजूलखर्ची बंद कर दे और देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए सप्ताह में एक दिन उपवास रखे।’
फिर क्या था, लोगों ने सप्ताह में एक दिन उपवास रखना शुरू कर दिया। शास्त्री जी भी हर सोमवार व्रत रखते थे। शास्त्री जी की पत्नी ललिता देवी प्राय: बीमार रहती थीं इसलिए उनके घरेलू कार्य काम वाली बाई करती थी। शास्त्री जी ने देश हित की खातिर बाई को सेवामुक्त कर दिया और घर का काम खुद करने लगे। शास्त्री जी अपने कपड़े स्वयं धोते थे। उनके पास केवल 2 जोड़ी धोती-कुर्ता ही थे।
एक दिन शास्त्री जी की धोती कपड़े धोते समय फट गई। पत्नी बोली, ‘आप नई धोती खरीद लाइए।’ शास्त्री जी ने कहा, ‘मैं नई धोती खरीद कर लाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। बेहतर होगा कि आप सूई-धागा लेकर इसे सिल दें।’ उनके घर पर बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने एक ट्यूटर भी आया करता था। शास्त्री जी ने जब उससे भी ट्यूशन हटाने के लिए कहा तो वह कहने लगा, ‘बच्चे अंग्रेजी में फेल हो जाएंगे।’
शास्त्री जी ने उसे समझाया, ‘देश के हजारों बच्चे अंग्रेजी में फेल होते हैं, अगर मेरे बच्चे भी फेल हो जाएंगे तो क्या। अंग्रेजी में फेल होना स्वाभाविक है क्योंकि यह हमारी मातृभाषा भी नहीं है।’ आज शास्त्री जी हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनके मूल्य व आदर्श सदैव साथ रहेंगे।