खास दिन न खाएं अन्न, मरणोपरांत मिलेगा नरक के कष्टों से छुटकारा

Edited By ,Updated: 29 Jun, 2016 07:48 AM

hell paradise

पद्मा पुराण में वर्णित है जब इस भौतिक संसार की संरचना हुई तो उस समय श्री भगवान् ने पापियों को सजा देने के लिए पाप का मूर्तिमान रूप लिए पापपुरुष की रचना की। पापपुरुष के चारों हाथों पैरों की रचना बहुत से पाप कर्मों के द्वारा की गई थी। पापपुरुष को...

पद्मा पुराण में वर्णित है जब इस भौतिक संसार की संरचना हुई तो उस समय श्री भगवान् ने पापियों को सजा देने के लिए पाप का मूर्तिमान रूप लिए पापपुरुष की रचना की। पापपुरुष के चारों हाथों पैरों की रचना बहुत से पाप कर्मों के द्वारा की गई थी। पापपुरुष को नियंत्रण में रखने के लिए यमराज का अवतरण अनेकों नरकीय ग्रह प्रणालियों के संयोजन के साथ हुआ। जो जीव जीवन भर अनेक पाप कर्म करता है उसे मरणोपरांत यमराज के पास यमपुरी में निवास करना पड़ता है। यमराज जीव के जीवन भर का लेखा-जोखा देख कर उसे उसके पापों के अनुरूप भोग भोगने के लिए नरक में विभिन्न स्थानों में पीड़ित होने के लिए भेज देते हैं।
 
इस तरह जीवात्माएं संसार में किए गए अपने कर्मों के अनुरूप सुख और दुःख के भोग भोगने लगी। अनेकों जीवात्माएं नरक में कष्ट भोगती हैं। उनकी इस दयनिय स्थिती को देख श्री भगवान को उन पर बहुत दया आई। उनको इस दयनिय अवस्था से उबारने के लिए श्री भगवान ने अपने स्वयं की ही प्रतिरूप एकादशी को उत्पन्न किया। एकादशी और श्री भगवान में कोई भेद नहीं है।
 
एकादशी व्रत का संबंध केवल पाप मुक्ति और मोक्ष प्राप्ति से नहीं है। एकादशी व्रत भौतिक सुख और धन देने वाली भी मानी जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि परनिंदा, झूठ, ठगी, छल ऐसे पाप हैं जिनके कारण व्यक्ति को नर्क में जाना पड़ता है। एकादशी के व्रत से इन पापों के प्रभाव में कमी आती है और व्यक्ति नर्क की यातना भोगने से बच जाता है। पापों से युक्त प्राणी एकादशी व्रत के नियमों का पालन करे तो उन्हें वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।
 
जब एकादशी का प्रचार एवं प्रसार बढ़ने लगा तो पापपुरुष का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा। वह श्री भगवान् के समक्ष विनती करते हुए पहुंचा और बोला, “हे श्री भगवान, मैं आपकी ही रचना हूं और मेरे द्वारा ही आप पापी जीवों को दण्डित करते हैं परन्तु जब से अपने श्री एकादशी को उत्पन्न किया है। उनके शुभ प्रभाव से मेरा अस्तित्व ही खतरे में आ गया है। आप कृपा करके मेरी रक्षा श्री एकादशी जी से करें। संसार का ऐसा कोई भी पुण्य कर्म नहीं हैं। जो मेरे अधीन न हो परन्तु आपका स्वरुप एकादशी मुझे भयभीत कर रही है। मुझे कोई ऐसा स्थान दे जहां मैं भय मुक्त होकर निवास कर सकूं।”
 
श्री भगवान ने कहा, “हे पापपुरुष! दुखी मत हो। एकादशी के दिन तुम अन्न में निवास करो।”
 
श्री भगवान के निर्देश अनुसार,“ संसार भर में जितने भी पाप कर्म पाए जाते हैं वे सब एकादशी के दिन अन्न में निवास करते हैं।”
 
एकादशी व्रत की मर्यादा की रक्षा करने के लिए, वैष्णव लोग एकादशी के दिन महाप्रसाद को सम्मान के साथ शिरोधार्य करके व उसे प्रणाम करके रख लेते हैं तथा अगले दिन ग्रहण करते हैं।
 

संसार में आकर मनुष्य केवल प्रारब्ध का भोग ही नहीं भोगता अपितु वर्तमान को भक्ति और आराधना से जोड़कर सुखद भविष्य का निर्माण भी करता है। एकादशी व्रत का महात्म्य भी हमें इसी बात की ओर संकेत करता है। 

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