जीवन में उन्नति के लिए 4 बल

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2015 02:28 PM

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जीवन में सर्वांगीण उन्नति के लिए चार प्रकार के बल जरूरी हैं : (1) शारीरिक बल, (2) मानसिक बल, (3) बौद्धिक बल, (4) संगठन बल ।

जीवन में सर्वांगीण उन्नति के लिए चार प्रकार के बल जरूरी हैं : (1) शारीरिक बल, (2) मानसिक बल, (3) बौद्धिक बल, (4) संगठन बल । शारीरिक बल का अर्थ है शरीर दुरुस्त होना चाहिए । मोटा होना शारीरिक  बल नहीं है, वरन् शरीर स्वस्थ होना शारीरिक बल है ।

दूसरा बल है मानसिक बल । जरा-जरा सी बात में गुस्सा हो जाना, जरा-जरा बात में डर जाना, चिढ़ जाना-यह कमजोर मन की निशानी है । जरा-जरा बात में घबराना नहीं चाहिए, चिंतित-परेशान नहीं होना चाहिए, वरन् अपने मन को मजबूत बनाना चाहिए।

तीसरा बल है बुद्धि बल । शास्त्र का ज्ञान पाकर अपना, कुल का, समाज का, अपने राष्ट्र का एवं पूरी मानव जाति का कल्याण करने की जो बुद्धि है, वही बुद्धि बल है।

चौथा है संगठन बल। शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक बल तो हो किन्तु संगठन बल न हो तो व्यक्ति व्यापक कार्य नहीं कर सकता । अत: जीवन में संगठन बल का होना भी आवश्यक है । ये चारों प्रकार के बल कहां से आते हैं ? इन सब बलों का मूल केन्द्र है आत्मा । आत्मा-परमात्मा विश्व के सारे बलों का महा खजाना है । बलवानों का बल, बुद्धिमानों की बुद्धि, तेजस्वियों का तेज, योगियों का योग-सामथ्र्य सब वहीं से आते हैं । ये चारों बल जिस परमात्मा से प्राप्त होते हैं उस परमात्मा से प्रतिदिन प्रार्थना करनी चाहिए ।

‘हे भगवान! तुझमें सब शक्तियां हैं । हम तेरे हैं, तू हमारा है । तू पांच साल के ध्रुव के दिल में प्रकट हो सकता है, तू प्रह्लाद के आगे प्रकट हो सका है...हे परमेश्वर ! हे पाण्डुरंग! तू हमारे दिल में भी प्रकट हो ।’ इस प्रकार हृदयपूर्वक, प्रीतिपूर्वक व शांत भाव से प्रार्थना करते-करते प्रेम और शांति में सराबोर होते जाओ । प्रभुप्रीति और प्रभुशांति सामथ्र्य की जननी है । संयम और धर्मपूर्वक इन्द्रियों को नियंत्रित रखकर परमात्मशांति में अपनी स्थिति बढ़ाने वाले को इस आत्म-ईश्वर की सम्पदा मिलती जाती है ।
 

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