Edited By ,Updated: 26 Mar, 2015 02:01 PM
जो असहाय की रक्षा नहीं करता, वह पाप का भागी बनता है : कृष्ण विज
जो असहाय की रक्षा नहीं करता, वह पाप का भागी बनता है। जो रक्षा करे, वही राजा कहलाता है। उक्त शब्द श्री रामशरणम् आश्रम द्वारा श्री रामनवमी शोभायात्रा के उपलक्ष्य में आयोजित रामायण...
जो असहाय की रक्षा नहीं करता, वह पाप का भागी बनता है : कृष्ण विज
जो असहाय की रक्षा नहीं करता, वह पाप का भागी बनता है। जो रक्षा करे, वही राजा कहलाता है। उक्त शब्द श्री रामशरणम् आश्रम द्वारा श्री रामनवमी शोभायात्रा के उपलक्ष्य में आयोजित रामायण ज्ञान यज्ञ के दौरान श्री कृष्ण विज ने अपने प्रवचनों में कहे।
उन्होंने कहा कि जब प्रभु श्री राम शरभंग ऋषि के आश्रम में पहुंचते हैं तो शरभंग ऋषि उनके दर्शन कर अपने प्राण त्याग देते हैं और ऋषि-मुनियों की सुरक्षा प्रभु श्री राम पर आ जाती है। इसके पश्चात सभी ऋषि-मुनि राम के पास आते हैं तथा प्रभु राम को असुरों द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के बारे में बताते हैं। इसी बीच प्रभु श्री राम की मुलाकात सुतीक्ष्ण ऋषि से हुई। सुतीक्ष्ण ऋषि भी उन्हें जंगल में असुरों द्वारा किए जा रहे भीषण अत्याचारों के बारे में बताते हैं तथा इधर-उधर बिखरी हुई हड्डियों को दिखाते हैं। तब श्री राम उन्हें रक्षा का वचन देते हैं।
कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण विज ने कहा कि श्री राम जी ऋषि-मुनियों की रक्षा के लिए तैयार हो जाते हैं तो सीता के मन में डर पैदा हो जाता है। श्री राम के पूछने पर सीता जी बताती हैं कि जब क्षत्रिय के हाथ में हथियार आता है तो उसमें 3 दोष उपजते हैं-पहला पर स्त्री गमन, दूसार मिथ्या भाषण व तीसरा अकारण हिंसा करना।
सीता माता ने कहा कि इन तीनों में से एक ही बात से डर लगता है, वह अकारण हिंसा है जिसे आप न कर बैठें। तब श्री राम उन्हें बताते हैं कि मेरा कार्य रक्षा करना है, मैं रक्षा ही करूंगा। कथा प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए श्री कृष्ण विज ने कहा कि 10 वर्ष सुतीक्ष्मण ऋषि के पास रहने के पश्चात श्री राम जी की मुलाकात अगस्त्य मुनि से हुई। कथा का विश्राम ‘सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम:’ से हुआ।