क्या हमने ऐसे भारत की ‘कल्पना और कामना’ की थी

Edited By ,Updated: 03 May, 2016 01:50 AM

of india that we imagination and desire was

भारत के कई भागों में गर्मियों का मौसम बहुत ही तनावपूर्ण और भयावह बनता जा रहा है। लगातार 2 मानसूनों के विफल रहने के कारण लोग पड़ोस के शहरों में जाकर अस्थायी मजदूर बनने को मजबूर हो गए हैं।

(किरण बेदी): भारत के कई भागों में गर्मियों का मौसम बहुत ही तनावपूर्ण और भयावह बनता जा रहा है। लगातार 2 मानसूनों के विफल रहने के कारण लोग पड़ोस के शहरों में जाकर अस्थायी मजदूर बनने को मजबूर हो गए हैं। हमने सूख चुके कुओं तथा सिर पर खाली घड़े उठाए सर्प की तरह बल खाती पगडंडियों पर पानी की उम्मीद में जाती औरतों की लम्बी कतारें देखी हैं। किसी भी कीमत पर उन्हें पानी चाहिए बेशक यह गंदा ही क्यों न हो।

 
महिलाओं और बच्चों को भून देने वाली गर्मी का सबसे अधिक शिकार होना पड़ता है, फिर भी वे अपनी जरूरत के लिए पानी हासिल नहीं कर पाते। कई बच्चे तो पानी का इंतजार करते ही दम तोड़ गए। कई अन्य बच्चे इसलिए अनाथ हो गए क्योंकि उनके पिताओं ने आत्महत्याएं कर लीं। ऐसे दृश्य किसी भी आदमी को रोने के लिए मजबूर कर देते हैं। उनके जीवन की वास्तविकताएं देखकर पानी का गिलास पीना भी मुश्किल है। उनकी दुर्दशा देखकर हमारे मन में क्रोध के साथ-साथ अपराधबोध की भावना भी पैदा होती है। क्या हमने ऐसे भारत की कल्पना और कामना की थी?
 
जो लोग दृढ़ इरादे वाले होते हैं वे कभी भी निराश नहीं होते और हमेशा मानवीय जिम्मेदारी निभाते हुए जो भी सम्भव होता है उसे करने से पीछे नहीं हटते। जो हम लोगों ने किया, मेरा मानना है कि अच्छे मानसून का इंतजार करते-करते पानी की किल्लत से पैदा हुई गम्भीर स्थिति से निपटने के लिए हर जगह पर वैसा किया जा सकता है। ‘हम लोग’ से मेरा तात्पर्य समर्पण भाव रखने वाली वे 6 स्वयंसेवी टोलियां जो पानी की समस्या के क्रांतिकारी हल यानी कि ‘जल क्रांति’ की परिकल्पना के गिर्द एकजुट हुई हैं।
 
हमने अपनी-अपनी शक्तियों को एकजुट करने और सामूहिक रूप में समस्या को सम्बोधित होते हुए ‘जल क्रांति’ का आंदोलन सृजित करने का फैसला लिया। हम जानते थे कि एकजुट होने से ही कोई नतीजे निकलेंगे न कि अकेले-अकेले ठोकरें खाने से।‘नवज्योति’ एन.जी.ओ. के माध्यम से हम लोगों को एकजुट कर सकते हैं क्योंकि यह फाऊंडेशन ग्रामीण समुदायों में गत 20 वर्षों से शिक्षा, स्वसहायता समूह, वाटर हार्वैसिं्टग, कौशल प्रशिक्षण के क्षेत्रों में काम कर रही है। 
 
इसी तरह के.आई.आई.टी. ग्रुप ऑफ कालेजिज सोहना में ग्रामीण अकादमिक विशेषज्ञता उपलब्ध करवाने के साथ-साथ गोष्ठियों के लिए अपना हाल उपलब्ध करवाता आ रहा है और इनमें हिस्सा लेने वालों के लिए जल-पान की व्यवस्था करता है। इस समारोह की दस्तावेजी फिल्म बनाने के लिए वीडियोग्राफर भी उन्हीं के द्वारा उपलब्ध करवाया जाता है।
 
3 सरकारी अफसरों, पंचायत अफसरों एवं जिला अफसरों के पास इस प्रकार के काम करने की जिम्मेदारी तो होती है लेकिन उनके पास संसाधनों की काफी कमी होती है जिनके चलते चुनौतियों का सही ढंग से मुकाबला नहीं हो पाता। इनके अलावा सहगल फाऊंडेशन ऐसा संस्थान है जो इस इलाके में काफी तकनीकी विशेषज्ञता रखता है। हमारी टोली का पांचवां सदस्य एक प्रोफैशनल प्रोजैक्ट मैनेजर है, जो आक्सफोर्ड से संबंधित अकादमिशन है। छठे नम्बर पर हमें दिल्ली यूनिवॢसटी के ‘क्लस्टर इनोवेशन सैंटर’ से समर्थन और विशेषज्ञता हासिल हुई जिन्होंने जमीनी वास्तविकताओं को समझने हेतु डाटा विश्लेषण के लिए प्रश्रावली तैयार करने में सहायता दी।
 
इस प्रश्रावली में से एक यह है कि ग्रामीण नेतृत्व को सरकार द्वारा घोषित स्कीमों के बारे में कितनी जानकारी है। क्या वह प्रधानमंत्री द्वारा सीधे तौर पर दिए जाते अपने भाषण और रेडियो में उद्घोषित योजनाओं के बारे में जानते हैं? यदि जानते हैं तो उनकी जानकारी का स्रोत क्या है?
 
हमारे आमंत्रण पर सोहना क्षेत्र के 70 से भी अधिक गांवों से आए हुए सरपंचों व पंचों ने आगामी मानसून के दौरान वाटर हार्वैसिंटग के संबंध में अपनी योजनाएं सांझा कीं। हमने बेहतरीन योजना प्रस्तुत करने वालों के लिए कुछ नकद पुरस्कारों की भी व्यवस्था कर रखी थी। एक के बाद एक ग्राम प्रधान के विचार हमने सुने और इससे हमें यह स्पष्ट हो गया कि गांवों की पंचायतें और परिषदें अभी इस जिम्मेदारी को हल करने में पर्याप्त रूप में तैयार नहीं हैं। 
 
बेशक पूरे देश पर जल संकट मंडरा रहा है तो भी इन्होंने सामूहिक रूप में बैठकर कोई अग्रिम योजना तैयार नहीं की थी। यह स्पष्ट था कि समुदाय के भरोसे किसी समुचित प्रयास करने की अभी कोई गुंजाइश नहीं। वे लोग केवल असंगठित व्यक्तियों के रूप में इसी आस में बैठे थे कि हम पता नहीं उनकी समस्याएं हल करने के लिए कौन-सा जादू चला देंगे। पंचायतों के पंचों और सरपंचों को अभी तक ‘श्रमदान’ की परिकल्पना नहीं है। वे तो बस मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं पर ही उम्मीद लगाए हुए हैं। उनमें से किसी के पास पौधारोपण जैसी योजना भी नहीं थी।
 
गांवों में लोग एकजुट होकर बैठते हैं लेकिन एक-दूसरे की सेवा करने के लिए नहीं। वे जाति, पंथ और मजहब के आधार पर बुरी तरह विभाजित हैं। पूरे गांव के रूप में कहीं भी लोग एकजुट नहीं हैं। जरूरत इस बात की है कि पूरे गांव के लोग एक ‘ग्रामीण इकाई’ के रूप में एकजुट हों और ग्रामीण युवा खासतौर पर प्रोफैशनलों की सहायता से काम करें। इस काम में प्रोफैशनल शिक्षण संस्थाएं भी बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकती हैं। यदि ऐसा भागीरथ प्रयास किया जाता है तो भूमि के अन्दर बह रही जलधाराओं को सूखे की स्थिति में भी चालू रखा जा सकता है। शायद ऐसा प्रयास होने पर ही हरियाणा के सोहना इलाके के गांव समुदायिक एकजुटता का आदर्श बनकर उभरें।   
 
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