क्या अब हम भारतीय शिक्षा से विज्ञान और गणित की ताकत को खत्म करने जा रहे हैं?

Edited By ,Updated: 05 Jun, 2023 04:17 AM

are we now going to eliminate power of science maths from indian education

जैसे ही नई संसद का उद्घाटन हो रहा था ऐसे में अखबारों के एक छोटे से कोने में छपी खबर आई कि अल्लामा इकबाल की नकाम ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा’ स्कूलों के सिलेबस से हटाई जा रही है।

जैसे ही नई संसद का उद्घाटन हो रहा था ऐसे में अखबारों के एक छोटे से कोने में छपी खबर आई कि अल्लामा इकबाल की नकाम ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा’ स्कूलों के सिलेबस से हटाई जा रही है। लेकिन उस समय किसी ने यह नहीं बताया कि भारतीय छात्रों के लिए अब विज्ञान का उल्टा दृष्टिकोण होगा। विज्ञान से बुनियादी और आवश्यक विषय को हटा दिया जाएगा। 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को स्कूल लौटने पर अब ‘पीरियॉडिक टेबल ऑफ एलीमैंट्स’ (तत्वों की आवर्त सारिणी) या भौतिकी से ‘ऊर्जा के स्रोतों’ के बारे में एक अध्याय भी पढ़ाया नहीं जाएगा।

पिछले महीने 15-16 साल के छात्रों के लिए बायोलॉजी (जीव विज्ञान) के सिलेबस से ‘थ्यूरी ऑफ एवोल्यूशन’ को निकाला गया था। अब इस महीने खुलासा किया गया है कि  युवा शिक्षार्थियों को अब कुछ प्रदूषण और जलवायु संबंधी विषय नहीं पढ़ाए जाएंगे तो वहीं उच्च श्रेणी के छात्रों के लिए जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भूगोल, गणित और भौतिकी विषयों में कटौती की जाएगी। 
19वीं सदी में बिजली और चुंबकीय तत्व की समझ में माइकल फेराडे के योगदान पर एक छोटा खंड भी कक्षा-10 के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है।

गैर-विज्ञान सामग्री में लोकतंत्र और विविधता पर अध्याय, राजनीतिक दल और लोकतंत्र की चुनौतियों को खत्म कर दिया गया है और इसके साथ-साथ बड़े छात्रों के लिए औद्योगिक क्रांति पर एक अध्याय हटा दिया गया है। कुल मिलाकर ऐसे परिवर्तन भारत के स्कूलों में लगभग 134 मिलियन, 11 से 18 वर्ष के बच्चों को प्रभावित करते हैं। ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों पर एक अध्याय-जीवाश्म ईंधन से नवीकरणीय ऊर्जा तक भी हटा दिया गया है। 

कैलिफोर्निया में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में विज्ञान-शिक्षा शोधकत्र्ता जोनाथन ओसबोर्न का कहना है कि, ‘‘आज पीरियॉडिक टेबल विज्ञान के लिए मूल आधार है। यह सभी ज्ञात तत्वों को समान गुणों वाले समूहों में रखता है। यह भौतिक रसायन विज्ञान, नैनो प्रौद्योगिकीविदों और अन्य वैज्ञानिकों के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है। आज की दुनिया में प्रासंगिकता को देखते हुए इसे हटाना थोड़ा अजीब है।’’ मुम्बई में टाटा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में विज्ञान शिक्षक प्रशिक्षक मैथिली रामचंद्र का कहना है कि, ‘‘जल, वायु प्रदूषण, संसाधन प्रबंधन से संबंधित सब कुछ हटा दिया गया है। मैं नहीं देखती कि कैसे जल और वायु (प्रदूषण) का संरक्षण हमारे लिए प्रासंगिक नहीं है। वर्तमान में यह और भी अधिक है।’’ 

हम सब जानते हैं कि हमारा विज्ञान और गणित भारतीय शिक्षा प्रणाली के दो मजबूत स्तंभ हैं। तो क्या अब इसे ऐसी अदूरदर्शी नीतियों से मिटाया या नष्ट कर दिया जाएगा? शायद एन.सी.ई.आर.टी. के सदस्यों को पता होगा कि यूरोपीय इतिहास में 5वीं से 14वीं सदी के काल को केवल इसलिए ‘अंधकार युग’ (डार्क एजिस) कहा गया क्योंकि विज्ञान पढऩे की उस समय अनुमति नहीं थी। इसीलिए प्रगति धीमी हो गई।

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