‘आप पार्टी’ का संकट ‘फिलहाल टला’

Edited By ,Updated: 05 Mar, 2015 03:27 AM

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सामाजिक कार्यकत्र्ता अन्ना हजारे से जुड़े अरविंद केजरीवाल व उनके सहयोगियों मनीष सिसौदिया, शांतिभूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव आदि ने 2 अक्तूबर 2012 को आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया था।

सामाजिक कार्यकत्र्ता अन्ना हजारे से जुड़े अरविंद केजरीवाल व उनके  सहयोगियों मनीष सिसौदिया, शांतिभूषण, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव आदि ने 2 अक्तूबर 2012 को आम आदमी पार्टी (आप) का गठन किया था। पार्टी दिसम्बर 2013 में दिल्ली विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरी। इसने 28 दिसम्बर 2013 को कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई लेकिन 49 दिनों के बाद ही जनलोकपाल विधेयक पेश करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण उनकी सरकार ने त्यागपत्र दे दिया।

पार्टी में इस के बाद भी सब कुछ ठीक चल रहा था परंतु कुछ नेताओं द्वारा पार्टी के विस्तार की योजना बनाने तथा अरविंद केजरीवाल द्वारा इसका विरोध करने पर पार्टी में पहली बार फूट के संकेत नजर आए। 
 
इस बीच जहां पार्टी ने दिल्ली विधानसभा के इस वर्ष हुए चुनावों में प्रचंड सफलता प्राप्त करके इतिहास रच दिया और अरविंद केजरीवाल पुन: मुख्यमंत्री बने, वहीं पार्टी के भीतर से ही उनके विरुद्ध आवाजें तेज होने लगीं। 
 
सबसे पहले शांतिभूषण ने टिकट बंटवारे में गड़बड़ी और चंदे लेने पर सवाल उठाया और उसके बाद उन्होंने ही केजरीवाल द्वारा संयोजक पद छोडऩे और संगठन के पुनर्गठन की मांग की। फिर प्रशांत भूषण और पार्टी के प्रवक्ता योगेंद्र यादव ने भी यही सवाल उठाए।
 
पार्टी के ‘आंतरिक लोकपाल’ राम दास ने भी इस पर सवाल उठाए और फिर प्रशांत भूषण ने पार्टी को मिलने वाले चंदों में पारदॢशता का प्रश्र उठा दिया। यादव पार्टी का दूसरे राज्यों में विस्तार चाहते हैं। उन्होंने 4 राज्यों में पार्टी के विस्तार की बात कही जिसे केजरीवाल ने खारिज कर दिया। 
 
‘आप’ के एक वरिष्ठ नेता संजय सिंह का कहना है कि प्रशांत, शांति और योगेंद्र यादव ने पार्टी के भीतर रहते हुए इसे कमजोर करने व फिर केजरीवाल के नेतृत्व को चुनौती देकर यादव को राष्ट्रीय संयोजक बनाने के षड्यंत्र रचे। 
 
यही नहीं इस तिकड़ी ने ‘अवाम’ नामक पार्टी विरोधी मंच खड़ा किया। दिल्ली के 2015 के चुनावों में प्रशांत भूषण ने कई मौकों पर पार्टी को बदनाम करने की धमकी दी और कुछ क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए गए भी नहीं। 
 
इस बीच जहां 3 मार्च को केजरी समर्थक आशीष खेतान ने ट्वीट किया कि शांतिभूषण, उनकी बेटी शालिनी व बेटा प्रशांत भूषण ‘आप’ को ‘फैमिली पार्टी’ बना देना चाहते हैं वहीं अरविंद केजरीवाल ने 3 मार्च को कहा कि पार्टी के घटनाक्रम से वह आहत और व्यथित हैं तथा 4 मार्च को राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में शामिल नहीं होंगे। 
 
‘आप’ में जारी इस घमासान के बीच पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में 4 मार्च को जहां योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण के विरुद्ध कार्रवाई किए जाने और उन दोनों को पार्टी से बाहर का रास्ता तक दिखाए जाने की चर्चा सुनाई दे रही थी वहीं 3 मार्च को अचानक यू-टर्न लेते हुए शांतिभूषण ने यह कह दिया कि केजरीवाल को संयोजक बने रहना चाहिए तथा यादव और प्रशांत को उनकी सहायता करनी चाहिए। दूसरी ओर आशीष खेतान ने भी शांतिभूषण के विरुद्ध किए अपने ट्वीट पर यह कहते हुए खेद व्यक्त कर दिया कि ‘‘आज नया दिन, नई सुबह और नई शुरूआत है।’’
 
इसी नाटकीय बदलाव के कारण 4 मार्च दोपहर 2 बजे पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पूर्व ही सुलह के संकेत मिलने लगे थे। यहां तक कि योगेंद्र यादव ने भी बुधवार को एक साक्षात्कार में यह स्वीकार किया कि ‘‘यह चंद लोगों की पार्टी नहीं, लाखों देशवासियों की पार्टी है जिन्होंने इसे अपने खून-पसीने से बनाया है। मतभेद दूर हो रहे हैं। हम इसे न तोड़ेंगे, न छोड़ेंगे, सुधारने की कोशिश करेंगे। यदि जरूरत पड़ी तो स्वयं भी सुधरेंगे।’’
 
आशा के अनुरूप ही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की अरविंद केजरीवाल की अनुपस्थिति में हुई बैठक से पहले ही  ‘आप’ के संयोजक पद से अपने त्यागपत्र की पेशकश कर दी जिसे अस्वीकार कर दिया गया और इसके साथ ही योगेंद्र यादव को ‘आप’ की राजनीतिक मामलों की समिति तथा पार्टी के प्रवक्ता पद से तथा प्रशांत भूषण को राजनीतिक मामलों की समिति से हटा दिया गया। पार्टी के अधिकांश नेताओं का कहना था कि केजरीवाल मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ संयोजक भी बने रहें।
 
पार्टी में बार-बार झगड़े होना ठीक नहीं। दिल्ली की जनता ने भारी बहुमत से ‘आप’ को सत्ता सौंपी है, यदि यह क्लेश जारी रहा तो यह उतनी ही बुरी तरह सत्ता से हटा भी देगी और फिर ‘आप’ के लिए उठ कर संभलना कठिन हो जाएगा, अत: अपने निजी स्वार्थों और अहं को त्याग कर ‘आप’ के नेता जितना संगठित होकर चलेंगे उतना ही ‘आप’ पार्टी व देश के हित में होगा।

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