‘सज्जाद गनी लोन का’ जम्मू-कश्मीर के ‘अलगाववादियों को सही संदेश’

Edited By ,Updated: 28 Jun, 2015 01:40 AM

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वर्षों से अलगाववाद और आतंकवाद की मार झेलते-झेलते ‘धरती का स्वर्ग’ कश्मीर लहूलुहान हो चुका है। वहां 2002 और 2008 में छिटपुट हिंसा के बीच सम्पन्न विधानसभा के चुनावों के बाद बड़ी मुश्किल से हालात सामान्य होते दिखाई

वर्षों से अलगाववाद और आतंकवाद की मार झेलते-झेलते ‘धरती का स्वर्ग’ कश्मीर लहूलुहान हो चुका है। वहां 2002 और 2008 में छिटपुट हिंसा के बीच सम्पन्न विधानसभा के चुनावों के बाद बड़ी मुश्किल से हालात सामान्य होते दिखाई दिए और गर्मदलीय तथा पृथकतावादी तत्व कमजोर हुए।

परंतु तभी से ही सईद अली शाह गिलानी व अन्य गर्मदलीय नेता प्रदेश का वातावरण खराब करने के लिए गरीब परिवारों के बच्चों को डेढ़-डेढ़ सौ रुपए दिहाड़ी देकर पत्थरबाजी के लिए उकसाते आ रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप लगभग 200 युवा मारे जा चुके हैं जबकि अलगाववादी और आतंकवादी हिंसा में मारे गए निर्दोष लोगों का तो कोई हिसाब ही नहीं है। 
 
इन गर्मपंथियों और अलगाववादियों को दूसरे देशों से पैसे आते हैं जिनके बल पर ये स्वयं तो विलासितापूर्ण जीवन बिताते हैं पर कश्मीर में अफरा-तफरी फैलाते हैं। यहां तक कि ये अपना और अपने बच्चों का इलाज, उनकी पढ़ाई-लिखाई और विवाह-शादियां तक दूसरे देशों में करवाते हैं। 
 
4 जनवरी, 2011 को नर्मपंथी हुरयत कांफ्रैंस के चेयरमैन अब्दुल गनी बट ने कहा था, ‘‘(2002 में श्रीनगर में एक रैली में मारे गए) मीरवाइज मौलवी फारूक व अब्दुल गनी लोन अपनों की ही गोलियों के शिकार हुए।’’
 
11 जनवरी, 2011 को स्व. लोन के बेटों बिलाल और सज्जाद लोन ने भी इसकी पुष्टि करते हुए कहा, ‘‘...दुष्ट तत्व हमारे बीच ही मौजूद हैं।’’ 
 
बहरहाल, 2009 तक ‘अग्रणी’ अलगाववादी रहे सज्जाद गनी लोन अपने पिता की हत्या के बाद पीपुल्स कांफ्रैंस के चेयरमैन बने और उन्होंने 2009 में बारामूला से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा लेकिन हार गए।
 
उन्होंने उसी वर्ष संसद का चुनाव भी लड़ा और कहा था ‘‘मैं संसद में जाकर प्रधानमंत्री से कहूंगा कि वह हमारी तकलीफें सुनें। मैं भारतीय संविधान के मंच से लोगों को बताना चाहता हूं कि कश्मीर में क्या हो रहा है।’’ 
 
श्री लोन 2014 में हंदवाड़ा से विधानसभा का चुनाव जीत गए। इस बीच उन्होंने 10 वर्षों से चला आ रहा अलगाववादियों का ‘नियम’ तोड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भेंट की जिसके लिए अलगाववादियों ने उनकी कड़ी आलोचना की थी क्योंकि 2006 के बाद से किसी भी अलगाववादी नेता ने भारत के प्रधानमंत्री से भेंट नहीं की थी। इसके बाद जब पी.डी.पी. व भाजपा ने सरकार बनाई तो सज्जाद लोन को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। 
 
प्रदेश में पी.डी.पी.-भाजपा सरकार बनने के बाद भी पाक समर्थित अलगाववादी-आतंकवादी हालात बिगाडऩे की कोशिशें जारी रखे हुए हैं और घाटी में ‘बंद’ तथा पत्थरबाजी आदि की घटनाओं के साथ-साथ पाकिस्तान के झंडे बार-बार लहराने का सिलसिला भी लगातार जारी है। 
 
ऐसी स्थिति में श्री सज्जाद लोन ने साफ शब्दों में पाकिस्तान समर्थक तत्वों को चुनौती देते हुए 26 जून को कहा है, ‘‘यदि कोई कश्मीर में पाकिस्तानी झंडे फहराना चाहता है तो वह पाकिस्तान चला जाए। हम पाकिस्तान भेजने में उसकी पूरी मदद करेंगे। जब मैं अलगाववादी था तब भी मैंने कभी पाकिस्तानी झंडा नहीं फहराया।’’
 
‘‘एक बुजुर्ग के नाते मैं सैयद अली शाह गिलानी का सम्मान करता हूं लेकिन वह खुदा नहीं हैं। राजनीतिक तौर पर मेरा उनसे कोई संबंध नहीं।’’ 
 
उन्होंने आगे कहा, ‘‘प्रदेश में पी.डी.पी.-भाजपा गठबंधन सरकार चंद माह पुरानी है। कुछ लोगों ने इसके बनने से पहले ही इसे विफल करार दे दिया था। मैं दावा करता हूं कि यह सरकार अपना कार्यकाल आसानी से पूरा करेगी और फिल्म ‘शोले’ की भांति सर्वकालीन ‘हिट’ सिद्ध होगी। लोग बदलाव चाहते हैं और मैं बदलाव ला रहा हूं।’’ 
 
सर्वविदित है कि जम्मू-कश्मीर की सारी अर्थव्यवस्था केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली आर्थिक सहायता और पर्यटन पर ही निर्भर है। ऐसे में सज्जाद लोन ने प्रदेश में सक्रिय आतंकवादियों और अलगाववादियों को एक संदेश दिया है कि वे ङ्क्षहसा का रास्ता छोड़ें और राष्ट्रीय मुख्य धारा में शामिल होकर प्रदेश की शांति और समृद्धि में हिस्सेदार बनें। 
 
अलगाववादी और आतंकवादी यह भूल रहे हैं कि रक्तपात, हिंसा, हड़तालों, प्रदर्शनों और बंद आदि से वे अपने ही भाइयों और उनके कामकाज का ही नुक्सान कर रहे हैं।  

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