Edited By ,Updated: 24 Sep, 2021 04:00 AM
प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आजकल अपनी गृहस्थी बसने के बाद संतानें माता-पिता की ओर से आंखें फेर लेती हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है। इसी कारण अपने बच्चों के...
प्राचीन काल में माता-पिता के एक ही आदेश पर संतानें सब कुछ करने को तैयार रहती थीं परंतु आजकल अपनी गृहस्थी बसने के बाद संतानें माता-पिता की ओर से आंखें फेर लेती हैं और उनका एकमात्र उद्देश्य सम्पत्ति पर कब्जा करना ही रह जाता है। इसी कारण अपने बच्चों के पालन-पोषण में सारी जिंदगी लगा देने वाले बुजुर्ग माता-पिता को उन्हीं से गुजारा भत्ता पाने के लिए अदालत की शरण में जाना पड़ता है। देश की अदालतों में वरिष्ठ नागरिकों के लंबित 25.02 लाख केसों में से 3 लाख ऐसे हैं जिनमें बुजुर्ग माता-पिता ने अदालतों से उन्हें अपने ही बच्चों द्वारा की जाने वाली मारपीट से संरक्षण प्रदान करने, अपने ही घर में रहने देने तथा गुजारा भत्ता पाने के लिए गुहार लगाई है।
17 सितम्बर को बाम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी ने 90 वर्षीय पिता और 89 वर्षीय मां को परेशान करने वाले बेटे और उसके परिवार को माता-पिता के स्वामित्व वाला फ्लैट खाली करके घर से निकल जाने का आदेश जारी करते हुए कहा :
‘‘यह मामला अत्यंत दुखद है। एक बुजुर्ग माता-पिता को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए अदालत के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं। अत: यह कहना सच ही है कि बेटी सदा बेटी रहती है और बेटे सिर्फ शादी होने तक।’’ इसी प्रकार 22 सितम्बर को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस हरनरेश सिंह गिल ने एक बेटे और बहू की अपने पिता के विरुद्ध याचिका यह कहते हुए रद्द कर दी कि मात्र इस आधार पर वे अपने माता-पिता के मकान पर दावा नहीं कर सकते कि उन्होंने इसकी मुरम्मत में योगदान दिया है। जस्टिस गिल ने याचिकाकत्र्ता बेटे को मकान खाली करने का आदेश दिया और कहा कि इस मामले में बेटा और पुत्रवधू सिर्फ जायदाद और पैसे के पीछे भाग रहे हैं और यह भूल गए हैं कि उनके इस व्यवहार से बुजुर्ग परिजनों को कितनी परेशानी हो रही है।
उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में श्री गुरु रामदास जी की वाणी का हवाला दिया, ‘‘काहे पूत झगरत हओ संगि बाप/जिनके जने बडीरे तुम हओ तिन सिओ झगरत पाप।’’ अर्थात हे पुत्र तुम अपने पिता से क्यों झगड़ रहे हो, अपने जन्मदाता और पालन-पोषण करने वाले से झगडऩा पाप है। उक्त दोनों उदाहरण इस बात का मुंह बोलता प्रमाण हैं कि आज बुजुर्ग माता-पिता किस प्रकार अपनी संतानों के हाथों प्रताडि़त हो रहे हैं। ऐेसे में आवश्यकता है कि सरकार बुजुर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का अधिकतम प्रचार करे ताकि बुजुर्गों को इनकी जानकारी मिले और वे संतानों के उत्पीडऩ से बच सकें।-विजय कुमार