राज्य सरकारों-राज्यपालों को महत्वपूर्ण संदेश

Edited By ,Updated: 01 May, 2023 04:51 AM

important message to state governments governors

किसी भी देश में लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए यह अत्यधिक अनिवार्य है कि वहां न्यायपालिका मजबूत, मुखर और संविधान में लिखित कानून को संरक्षण देने वाली हो। आजकल  न्यायपालिका जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारी कार्यप्रणाली को झिंझोडऩे के साथ-साथ...

किसी भी देश में लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए यह अत्यधिक अनिवार्य है कि वहां न्यायपालिका मजबूत, मुखर और संविधान में लिखित कानून को संरक्षण देने वाली हो। आजकल न्यायपालिका जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारी कार्यप्रणाली को झिंझोडऩे के साथ-साथ शिक्षाप्रद टिप्पणियां कर रही है। इसी संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट द्वारा हाल ही में की गई 2 जनहितकारी टिप्पणियां निम्न में दर्ज हैं : 

घृणा भाषणों (हेट स्पीच) की बुराई इन दिनों जोरों पर है जिसके कारण देश का माहौल अत्यंंत खराब हो सकता है। इसी पर स्वत: संज्ञान लेते हुए 28 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2022 के एक आदेश का दायरा 3 राज्यों से आगे बढ़ाते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को घृणा भाषण (हेट स्पीच) देने वालों के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करने का निर्देश दिया, भले ही कोई शिकायत न की गई हो। 

शीर्ष अदालत ने पहले उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड को निर्देश दिया था कि घृणा फैलाने वाले भाषण देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए। तब न्यायालय ने कहा था, ‘‘धर्म के नाम पर हम कहां पहुंच गए हैं?’’ 

न्यायमूर्ति के.एम. जोसफ और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने घृणा भाषणों को गंभीर अपराध बताते हुए चेतावनी दी कि, ‘‘ये देश के धार्मिक ताने-बाने को नुक्सान पहुंचा सकते हैं, अत: मामले दर्ज करने में किसी भी देरी को अदालत की अवमानना माना जाएगा।’’ इसी प्रकार कुछ समय से देश में विभिन्न राज्यों के राज्यपालों तथा राज्य सरकारों के बीच विभिन्न मुद्दों को लेकर टकराव की स्थिति बनी हुई है तथा  कुछ समय से गैर भाजपा शासित राज्यों में वहां के सत्तारूढ़ दलों तथा राज्यपालों के बीच टकराव काफी बढ़ रहा है जिनमें पश्चिम बंगाल, दिल्ली, तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना आदि शामिल हैं। 

इसी वर्ष 24 जनवरी को तमिलनाडु की द्रमुक सरकार के प्रवक्ता शिवाजी कृष्णमूर्ति ने राज्यपाल आर.एन. रवि के विरुद्ध अत्यंत तीखा बयान देते हुए कहा था कि‘‘हम तमिलनाडु के राज्यपाल को गोली मारने और हत्या करने के लिए आतंकवादी भेजेंगे।’’ 

नवीनतम मामला तेलंगाना की राज्यपाल ‘तमिलिसाई सुंदरराजन’ और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का है। गत वर्ष राज्यपाल ‘तमिलिसाई सुंदरराजन’ ने के. चंद्रशेखर राव की सरकार पर उनके फोन टैप करने का संदेह व्यक्त किया था तथा आरोप लगाया था कि वह राज्यपाल पद की गरिमा घटा रही है और ‘महिला राज्यपाल’ होने के कारण उनसे भेदभाव किया जा रहा है। दूसरी ओर तेलंगाना सरकार ने आरोप लगाया है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि अब राज्यपालों की दया पर निर्भर होकर रह गए हैं। इस संबंध में सुप्रीमकोर्ट में दायर याचिका में राज्य सरकार ने मांग की है कि विधानसभा द्वारा पारित 10 महत्वपूर्ण विधेयकों को राज्यपाल स्वीकृति दें जो उनके कार्यालय में अटके पड़े हैं। 

इससे पहले राज्य सरकार के वकील दुष्यंत दवे ने आरोप लगाया था कि भाजपा शासित राज्यों में विधेयकों को जल्द स्वीकृति मिल जाती है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश में राज्यपाल 7 दिनों के भीतर तथा गुजरात में एक महीने के भीतर विधेयकों को स्वीकृति दे देते हैं। इसी बारे 24 अप्रैल को तेलंगाना सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा ने राज्यपालों को उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी याद दिलाई। 

उन्होंने संविधान की धारा-200 का हवाला देते हुए कहा कि ‘‘राज्य सरकार की ओर से भेजे गए विधेयकों पर राज्यपालों को जितनी जल्दी संभव हो तुरंत फैसला लेना चाहिए। उन्हें या तो इन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए या असहमति की स्थिति में वापस भेज देना चाहिए। विधेयकों को रोक कर रखने का कोई कारण नहीं है।’’जहां तक राज्यपाल की शक्तियों का संबंध है, राज्यपाल केवल नाममात्र के मुखिया होते हैं और मंत्रिपरिषद ही वास्तविक कार्यपालिका होती है। 

राज्यपाल, जो मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करते हैं, उनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केंद्र में राष्ट्रपति की है। संविधान निर्माता डा. बी.आर. अम्बेडकर ने 31 मई, 1949 को कहा था कि‘‘राज्यपाल का पद सजावटी है तथा उनकी शक्तियां सीमित और नाममात्र हैं।’’ फाइनैंस बिल (वित्त विधेयक) के अलावा कोई अन्य बिल राज्यपाल के सामने उनकी स्वीकृति के लिए पेश करने पर वह या तो उसे अपनी स्वीकृति देते हैं या उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा दोबारा बिल राज्यपाल के पास भेजने पर उन्हें उसे पारित करना होता है। जो भी हो, सुप्रीम कोर्ट के उक्त दोनों फैसले राज्य सरकारों तथा राज्यपालों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश हैं। इनके पालन से जहां देश में घृणा भाषण पर अंकुश लगेगा और ऐसे भाषण देने वालों पर जवाबदेही तय होगी वहीं राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच टकराव समाप्त करने में भी कुछ सहायता अवश्य मिलेगी।

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