भारत और पाकिस्तान की महिलाओं से भारी भेदभाव और पक्षपात

Edited By ,Updated: 29 May, 2016 02:54 AM

india and pakistan s massive discrimination and prejudice against women

भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों को कुछ मामलों में एक जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है जिनमें घरेलू जीवन में टूटन और महिलाओं पर अत्याचार शामिल हैं।

भारत तथा पाकिस्तान दोनों देशों को कुछ मामलों में एक जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है जिनमें घरेलू जीवन में टूटन और महिलाओं पर अत्याचार शामिल हैं। जहां तक भारत का संबंध है, दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘दिल्ली में वैवाहिक विवाद तेजी से बढ़ रहे हैं जिनसे परिवार टूट रहे हैं तथा इन विवादों से निकलने वाली लपटें दोनों ओर के परिवारों को प्रभावित कर रही हैं।’’

 
अकेले दिल्ली ही नहीं समूचे देश की भी यही स्थिति है। पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में टूटन आने के अनेक कारण हैं जिनमें मां, मोबाइल, चंद टी.वी. सीरियल, उसी शहर में विवाह, पति-पत्नी के बौद्धिक स्तर में अंतर आदि मुख्य कारण हैं। 
 
गुजरे जमाने में लड़की का विवाह ‘पत्तनों पार’ अर्थात दरिया के पार स्थित दूर के गांव या शहर में किया जाता था ताकि लड़की का अपने मायके में आना-जाना कम रहे और उसे शिक्षा भी यही दी जाती थी कि इस घर से उसकी डोली जा रही है और अब ससुराल से ही उसकी अर्थी निकले। 
 
यही नहीं, पुरातन काल में बेटी के माता-पिता उसके ससुराल कम जाते थे और वहां पानी तक नहीं पीते थे। इसका उद्देश्य यह था कि बेटी के ससुराल में वे कम से कम समय ठहरें ताकि किसी को भी कोई उलटी-सीधी बात करने का अवसर ही न मिले।
 
आज स्थिति बदल गई है तथा पढ़े-लिखे लोगों की संतानें 2 या 3 तक सिमट कर रह गई हैं। लाडली बेटी जरा-जरा सी बात पर अपनी मां को मोबाइल लगा देती है तथा माताएं भी मोहवश ऐसी सलाह दे देती हैं जिससे समस्या सुलझने की बजाय आमतौर पर उलझ जाती है। 
 
इसी प्रकार आजकल टी.वी. पर दिखाए जाने वाले अधिकांश सास-बहू के टकराव वाले सीरियल भी ससुराल में बहुओं के ‘विद्रोह’ का कारण बनते जा रहे हैं। लड़की का मायका उसी शहर में हो तो जरा-सी बात पर रूठ कर मायके आ जाना तथा पति-पत्नी के बौद्धिक स्तर में अंतर व पत्नी का पति से अधिक शिक्षित होना भी उनमें अहं के टकराव का कारण बन रहा है और नौबत अदालत तक पहुंच जाती है। 
 
पाकिस्तान में तो उपरोक्त कारणों के अलावा धर्मांधता और पति द्वारा तीन बार तलाक कह कर अलगाव का नियम महिलाओं की स्थिति को कमजोर करता है और इन सबसे बढ़कर पाकिस्तान की राजनीति और शासनतंत्र में धर्म के हस्तक्षेप से महिलाओं की स्थिति और भी खराब हो रही है। 
 
इसका उदाहरण वहां संवैधानिक दर्जा प्राप्त ‘द काऊंसिल आफ इस्लामिक आइडियालोजी (सी.आई.आई.)’  ने पेश किया है जो देश की संसद को इस्लाम के अनुसार कानून बनाने के लिए प्रस्ताव देती है। 
 
पाकिस्तानी पंजाब की विधानसभा द्वारा पारित ‘महिलाओं के संरक्षण सम्बन्धी विधेयक’ को गैर-इस्लामी बताकर  खारिज करते हुए काऊंसिल ने एक विवादास्पद वैकल्पिक विधेयक तैयार किया है जिसके अनुसार :
 
‘‘यदि पत्नी अपने पति की बात नहीं मानती, उसकी इच्छा के अनुसार कपड़े नहीं पहनती और शारीरिक संबंध बनाने को तैयार नहीं होती तो पति को अपनी पत्नी की थोड़ी-सी पिटाई करने की अनुमति मिलनी चाहिए।’’
 
हिजाब नहीं पहनने, अजनबियों से बात करने, तेज आवाज में बोलने और अपने पति की सहमति के बगैर लोगों की वित्तीय मदद करने पर भी पत्नी की पिटाई करने की अनुमति देने की सिफारिश की गई है।
 
सह-शिक्षा वाले स्कूलों में लड़कियों के पढऩे, किसी सैनिक अभियान में हिस्सा लेने, पुरुषों से घुलने-मिलने, अजनबियों के साथ घूमने व महिला नर्सों द्वारा पुरुष रोगियों की देखभाल पर भी रोक की सिफारिश की गई है। 
 
काऊंसिल अब अपना प्रस्तावित विधेयक पंजाब विधानसभा (पाक) को भेजेगी और यदि इसे स्वीकार कर लिया जाता है तो निश्चित रूप से पाकिस्तान में महिलाओं की स्थिति पहले से भी अधिक खराब हो जाएगी। 
 
कुल मिलाकर भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों में महिलाएं उपेक्षा और उत्पीड़ऩ़ की शिकार हो रही हैं जिसके निवारण के लिए दोनों ही देशों में उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने तथा महिलाओं के प्रति सकारात्मक वातावरण कायम करने की आवश्यकता है।
 
भारतीय महिलाओं को भी नए घर और नए माहौल में आ कर स्वयं को उसके अनुरूप ढालने की कोशिश करनी चाहिए ताकि अदालती मामलों में पड़ कर दोनों पक्ष संकट में न पड़ें।
 

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