चुनावी फायदे के लिए जनहित याचिका का दुरुपयोग

Edited By ,Updated: 27 Feb, 2024 05:41 AM

abuse of public interest litigation for electoral gains

प्रधानमंत्री मोदी ने तंज कसते हुए कहा कि सुदामा अगर आज के युग में श्रीकृष्ण को चावल की भेंट देते तो पी.आई.एल. में भ्रष्टाचार का मामला बन जाता, दूसरी तरफ  चंडीगढ़ मेयर मामले में फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि ऐसा लगा कि जज...

प्रधानमंत्री मोदी ने तंज कसते हुए कहा कि सुदामा अगर आज के युग में श्रीकृष्ण को चावल की भेंट देते तो पी.आई.एल. में भ्रष्टाचार का मामला बन जाता, दूसरी तरफ  चंडीगढ़ मेयर मामले में फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि ऐसा लगा कि जज के रूप में साक्षात भगवान ही सुप्रीमकोर्ट में अवतरित हो गए थे। सुदूर दक्षिण में तमिलनाडु में अवैध खनन में ई.डी. की कार्रवाई के खिलाफ मामले पर सख्ती दिखाते हुए जजों ने कहा कि सुप्रीमकोर्ट में यह याचिका सरकार ने किस कानून के तहत दायर की है। आम चुनावों के पहले पश्चिम बंगाल में तो टी.एम.सी. और भाजपा की लड़ाई में पुलिस और सी.बी.आई. के साथ हाईकोर्ट के जज भी पक्षकार बन गए हैं। 

चंडीगढ़ में मेयर चुनाव में सुप्रीमकोर्ट के फैसले पर हर्षोल्लास के साथ यह जानना जरूरी है कि गलत तरीके से चुने गए मेयर के कार्यभार पर रोक लगाने से इंकार करने के साथ हाईकोर्ट ने लम्बी तारीख दी थी। उसके बाद सुप्रीमकोर्ट ने ताबड़तोड़ सुनवाई और फैसला करके सम्पूर्ण न्याय किया। संविधान के अनुच्छेद 14 में सभी की बराबरी का कानून है परंतु आम लोगों से जुड़े लाखों-करोड़ों मामलों में तारीख पे तारीख और वी.आई.पी. मामलों में बड़े वकीलों के हस्तक्षेप से त्वरित न्याय का बढ़ता चलन अनैतिक होने के साथ असंवैधानिक भी है। नेताओं के भाषणों और सोशल मीडिया पोस्ट पर भावनाएं आहत होने के नाम पर मनमानी गिरफ्तारी से जुड़े मामलों पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई तो अब आम बात हो गई है। संविधान के संरक्षक के नाते हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के फैसलों से भ्रष्टाचार पर रोकथाम के साथ सरकारों की  निरंकुशता पर अंकुश भी लगता है लेकिन जजों का रसूख बनाए रखने के लिए पी.आई.एल. के बढ़ते सियासी इस्तेमाल पर अंकुश भी जरूरी है। 

मणिपुर में सियासी याचिका के बाद हिंसा का दौर  शुरू हुआ। सत्तारूढ़ दल से जुड़े नेताओं की याचिका पर मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई आबादी को जनजातीय सूची में शामिल करने का फैसला दिया था। पिछले साल सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकीलों की चुप्पी भी रहस्यमय और आश्चर्यजनक थी। पूरी तरह से असंवैधानिक उस फैसले की वजह से सीमावर्ती राज्य में ङ्क्षहसा बढऩे के साथ अर्थव्यवस्था को हजारों करोड़ का नुकसान हुआ। सुप्रीमकोर्ट में लम्बी सुनवाई के बावजूद हाईकोर्ट का फैसला नहीं बदला, लेकिन अब आश्चर्यजनक तरीके से रिव्यू याचिका में हाईकोर्ट के नए जज ने पुराने फैसले को बदल दिया। मणिपुर के हिंसाग्रस्त इलाकों में अशांति को बढऩे से रोकने के लिए पत्रकारों और नेताओं के दौरों पर अनेक प्रतिबंध लागू हैं। 

केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में भी धारा-144 के नाम पर नेताओं की यात्राओं,  रैलियों और भाषणों पर प्रतिबंध लग रहे हैं। ऐसे संवेदनशील मामलों में प्रशासनिक स्तर पर समाधान की बजाय नेता लोग पी.आई.एल. से अदालतों का बहुमूल्य समय बर्बाद करते हैं। दिल्ली में धारा-144 के कारण प्रदर्शन की इजाजत नहीं मिलने पर आम आदमी पार्टी की याचिका के मकसद पर हाईकोर्ट के जज ने सवाल उठाए हैं। अदालतें राजनीति का अखाड़ा नहीं बनें इसके लिए पी.आई.एल. से जुड़े नियमों को सभी हाईकोर्टों और सुप्रीमकोर्ट में लागू करने की जरूरत है। 

जानवरों के नामकरण पर विवाद : सबसे रोचक मामला पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी नैशनल पार्क में जानवरों के नामकरण से जुड़ा है। शेर का नाम अकबर और शेरनी का नाम सीता  रखने के खिलाफ विश्व हिन्दू परिषद ने कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इस नामकरण को सनातन धर्म से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं का अपमान बताते हुए वी.एच.पी. ने ईशनिंदा कानून के तहत कारवाई की मांग की है। इंसानों के नामकरण के लिए जन्म प्रमाणपत्र और आधार के दस्तावेजों की कानूनी वैधता है लेकिन जानवरों के नामकरण या उनकी शादी का कोई कानूनी आधार नहीं है। ऐसे मामलों मे किसी की भावनाएं आहत होती हैं तो उसे सरकार को प्रतिवेदन देने के बाद निचली अदालत में आपराधिक मामला दर्ज कराना चाहिए। 

वी.एच.पी. ने सीता नामकरण पर ही आपत्ति जाहिर की थी लेकिन जज ने अकबर नाम पर टिप्पणियों और निर्देशों से पूरे मामले को पेचीदा बना दिया। उनके अनुसार भगवान, देवी-देवताओं के साथ अकबर जैसे इतिहास के महानायकों के नाम पर जानवरों का नाम नहीं रखना चाहिए। जज ने सरकारी वकील से उनके पालतू कुत्तों का नाम भी पूछा। ऐसे मामलों में मौलिक अधिकारों के हनन के बगैर पी.आई.एल. एडमिट होने पर भी संदेह है। मामले में सियासी सुर्खियां बनीं, लेकिन हाईकोर्ट और अफसरशाही का बहुमूल्य समय नष्ट होने पर चर्चा नहीं हुई। राष्ट्रनायक, बड़े नेता, भारत रत्न, पद्म सम्मानों की हस्तियां, वैज्ञानिक, उद्योगपति, डॉक्टर, वकील, प्रोफैसर, पत्रकार और जज सभी देश की शान हैं फिर किसी भी बड़ी शख्सियत के नाम पर जानवरों का नाम नहीं होना चाहिए। जानवरों के नामकरण के बारे में अदालती दिशा-निर्देश आने लगे तो बेवजह की मुकद्दमेबाजी, पूरे देश के लिए नया सिरदर्द साबित हो सकती है। 

सुप्रीमकोर्ट में संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत और हाईकोर्ट में 226 के तहत पी.आई.एल. और रिट दायर होती है। नियमों के अनुसार व्यक्तिगत लाभ या सियासी मकसद के लिए पी.आई.एल. दायर करना असंवैधानिक है इसलिए सभी हाईकोर्टों और सुप्रीमकोर्ट में नेताओं की सियासी पी.आई.एल. पर सख्त प्रतिबंध लागू होना चाहिए। राज्यों में पुलिस का और केंद्र में सी.बी.आई., ई.डी. का दुरुपयोग जगजाहिर है लेकिन सियासी स्कोर सैटल करने के लिए न्यायिक व्यवस्था के इस्तेमाल का बढ़ता चलन लोकतंत्र के साथ-साथ संवैधानिक व्यवस्था के लिए भी खतरनाक है।-विराग गुप्ता(एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट) 
 

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