सेहत से खिलवाड़ करते मिलावटखोर

Edited By Updated: 16 Oct, 2025 05:25 AM

adulterers playing with health

मिलावट के इस दौर में असली-नकली में भेद करना बेहद मुश्किल जान पड़ता है फिर चाहे वे मानवीय संबंध हों या फिर दैनिक उपभोग में प्रयुक्त होने वाले खाद्य पदार्थ। सहायक धंधे के तौर पर आरम्भ हुई श्वेत क्रांति तक मुनाफाखोर की बदनीयती से काले धंधे में तबदील हो...

मिलावट के इस दौर में असली-नकली में भेद करना बेहद मुश्किल जान पड़ता है फिर चाहे वे मानवीय संबंध हों या फिर दैनिक उपभोग में प्रयुक्त होने वाले खाद्य पदार्थ। सहायक धंधे के तौर पर आरम्भ हुई श्वेत क्रांति तक मुनाफाखोर की बदनीयती से काले धंधे में तबदील हो चुकी है। विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, देश के 89.2 प्रतिशत दुुग्ध उत्पादों में किसी न किसी प्रकार की मिलावट पाई गई। 

राष्ट्रीय स्तर पर दुग्ध उत्पादन का आकलन करें तो देश में कुल 14 करोड़ लीटर दूध उत्पादित होता है, जबकि दैनिक खपत लगभग 65 करोड़ लीटर है। मांग व आपूॢत में स्थित यह भारी अंतर कैसे पाटा जाता होगा, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। त्यौहारों के दौरान मिठाइयों की बढ़ती मांग के दृष्टिगत पर्याप्त दूध कहां से आता है, यह भी किसी बड़े रहस्य से कम नहीं। जाहिर तौर पर नियमित आपूॢत की इस भरपाई में एक बड़ा अंश वास्तव में कृत्रिम दूध का है, जिसे नकली दूध कंपनियों द्वारा विविध प्रकार के रसायनों की सहायता से तैयार किया जाता है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण उत्पादित 68.7 प्रतिशत दूध के मानकों पर खरे न उतर पाने की बात पूर्व में ही बता चुका है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के तहत भारत में प्रतिदिन बिकने वाले 64 करोड़ लीटर दूध में से 50 करोड़ लीटर दूध नकली या मिलावटी होता है। भारत के 70 प्रतिशत से अधिक दुग्ध उत्पाद राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरते। समृद्ध प्रांतों की श्रेणी में शुमार होने वाला पंजाब प्रांत भी इस विषय में अपवाद नहीं कहा जा सकता। राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफ.डी.ए.) की एक रिपोर्ट बताती है कि शुद्धता जांचने हेतु लिए गए दूध के नमूनों में अधिकांश न केवल गुणवत्ता-परीक्षण में असफल पाए गए बल्कि 41 प्रतिशत में स्वास्थ्य के लिहाज से घातक तत्व भी मौजूद रहे।

बीते दिनों दूध व डेयरी उत्पादों में मिलावट के विरुद्ध की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार की ओर से स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग ने जवाब दायर करते हुए एक स्टेटस रिपोर्ट पेश की। सरकार की ओर से प्रदत्त जानकारी के अनुसार 2 जनवरी, 2019 से लेकर 31 दिसम्बर, 2024 तक राज्य में कुल 2,191 मामलों का निपटारा किया गया। इनमें लगभग 95 प्रतिशत मामलों में दंड लगाया गया। जुर्माने के रूप में वसूल की गई कुल राशि 3,04,75,720 आंकी गई।

आंकड़े अमृतसर, गुरदासपुर, संगरूर तथा फतेहगढ़ साहिब जैसे जिलों में सर्वाधिक मामले दर्र्ज होने का खुलासा करते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, मिलावट का यह क्रम न सिर्फ दूध उत्पादों तक ही सीमित रहा अपितु पनीर, दही, खोया, मक्खन, मिठाई, देसी घी आदि से लेकर आइसक्रीम, नमकीन, हल्दी एवं मिर्च पाऊडर, गुलाब शरबत, खाद्य तेलों तक में मिलावट देखने को मिली। पांच वर्षों में दर्ज 2,191 मामले स्वत: ही हालात की गंभीरता दर्शाते हैं। ऐसी अवस्था में व्यवस्थात्मक प्रबंधन पर सवालिया निशान उठना भी स्वाभाविक है। दोषियों की धर-पकड़ व भारी-भरकम जुर्माने के बावजूद यह धंधा क्यों और कैसे फल-फूल रहा है? या तो मुनाफाखोरों में कानून के प्रति भय ही नहीं अथवा तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार उन्हें मनमर्जी करने की इजाजत दे रहा है। 

दूध-दही बहाने वाले भारतवर्ष के इतिहास में एक ऐसा भी समय रहा, जब लगभग हर घर में ही पशुधन हुआ करता था। दूध से मुनाफा कमाना तत्कालीन समाज की दृष्टि में हेय था लेकिन आज समय पूर्णत: परिवर्तित हो चुका है। अब इस कारोबार में न केवल जमकर मुनाफाखोरी होती है बल्कि मिलावट की आशंका भी बराबर बनी रहती है। खासकर त्यौहार के दिनों में यह सिलसिला चरम पर पहुंच जाता है। मिलावटखोरी की यह प्रक्रिया लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव छोड़ेगी, इससे धंधेबाजों को भला क्या लेना-देना? उनका लक्ष्य तो मात्र पैसा बटोरना ही है, कोई जिए या मरे उनकी बला से! सम्पूर्ण आहार के रूप में लिया जाने वाला दूध शरीर के लिए अमृत समान है जोकि सभी आवश्यक तत्वों की पूर्ति करने में समर्थ माना गया है किंतु यदि दूध के नाम पर जहरीले तत्व शरीर में घुल जाएं तो इसका परिणाम भी तो सर्वथा विपरीत ही होगा न? मिलावट का यह गोरख धंधा शरीर पर अनेक दुष्प्रभाव छोड़ देता है।

धवलता में जहरीले तत्वों की कलुषता घोलती मिलावट न केवल सामूहिक रूप में समाज के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करके अनेकानेक व्याधियों को न्यौता देने का सबब बन रही है बल्कि मानवीय मूल्यों पर घात करते हुए सामाजिक व नैतिक माहौल भी अस्वस्थ बना रही है। मिलावट का धंधा करने वाले दगाबाज लोगों पर नकेल कसना अत्यावश्यक है। जनता की सेहत से खिलवाड़ करना कोई मामूली मुद्दा नहीं, इसे संजीदगी से लेना चाहिए। आवश्यक है कि विभिन्न माध्यमों से मिलावट जांचने संबंधी विधियों को लेकर पर्याप्त जन-जागरूकता फैलाई जाए। प्रशासनिक स्तर पर इस संदर्भ में युद्धस्तरीय जांच-पड़ताल होने के साथ दोषियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई भी अनिवार्य रूप से सुनिश्चित की जानी चाहिए अन्यथा जैसे कि विश्व संगठन की रिपोर्ट ने आशंका जताई है, मिलावट का यह सिलसिला 2025 में 87 प्रतिशत भारतीयों के स्वास्थ्य को घातक बीमारियों का शिकार बना सकता है।-दीपिका अरोड़ा

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!