किफायती स्वास्थ्य सेवा लोगों का अधिकार है

Edited By ,Updated: 13 Jan, 2024 05:44 AM

affordable healthcare is the right of the people

क्रिटिकल हैल्थकेयर न केवल बड़े पैमाने पर जनता के लिए गैर-किफायती होती जा रही है, बल्कि विशेष रूप से कुछ कॉर्पोरेट अस्पतालों द्वारा की जा रही गलत प्रैक्टिस भी बड़े पैमाने पर जनता के जीवन को नर्क बना रही है।

क्रिटिकल हैल्थकेयर न केवल बड़े पैमाने पर जनता के लिए गैर-किफायती होती जा रही है, बल्कि विशेष रूप से कुछ कॉर्पोरेट अस्पतालों द्वारा की जा रही गलत प्रैक्टिस भी बड़े पैमाने पर जनता के जीवन को नर्क बना रही है। मैडीकल इंश्योरैंस, सी.जी.एच.एस., आयुष्मान के बावजूद हमारे देश में जेब से खर्च (आऊट ऑफ पॉकेट) लगभग 60 प्रतिशत है। बीमा दावों का भुगतान करवाना भी दांत निकालने जैसा है। आमतौर पर बीमा कंपनियां क्लेम न चुकाने के लिए कारण ढूंढती हैं। एक बार भर्ती होने के बाद मरीज अस्पतालों और डॉक्टरों की दया पर निर्भर होते हैं। अधिकांश गंभीर रोगियों का इलाज कॉर्पोरेट/निजी अस्पतालों में किया जाता है क्योंकि सरकारी अस्पतालों में ऐसे रोगियों के लिए उपचार सुविधाओं की कमी होती है।

दिल्ली-एन.सी.आर. क्षेत्र के एक कॉर्पोरेट अस्पताल में कार्यरत प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ डा. अमरिन्द्र बजाज को हाल ही में ‘मूव ऑन’ करने के लिए बाध्य होना पड़ा क्योंकि वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच सकीं। अपने लिखे एक लेख में उन्होंने अपनी शिकायतें जाहिर की हैं।  उनके लेख के कुछ अंश इस प्रकार हैं : ‘‘मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि कॉर्पोरेट की कोई भावना नहीं है। वे केवल एक भाषा समझते हैं, वास्तव में केवल एक शब्द ‘राजस्व’, और मेरा राजस्व ग्राफ उनकी पसंद के अनुसार नहीं था उस दिन तक। विशेषज्ञता, अनुभव, निष्ठा कोई मायने नहीं रखती। मैं उस पीढ़ी से हूं जो इस तरह की चीजों से बहुत कुछ स्थापित करती है, लेकिन युवा पीढ़ी अपना खेल खेलती है।

एक ओर रह कर मैंने उनके द्वारा भर्ती की गई उज्जवल नई ‘राजस्व पैदा करने वाली मशीनों’ को देखा, जिन के सामने जब  अधिक आकर्षक प्रस्ताव आया तो उन्होंने बिना किसी मलाल के तार के उस ओर छलांग लगा दी। कॉर्पोरेट ने जो दिया वही पाया और हालांकि मैं खेल को समझती थी, फिर भी मैं इसे खेलने के लिए खुद को कभी तैयार नहीं कर सकी।’’ राज्यसभा सदस्य के रूप में अपने 20 महीने के कार्यकाल में मैंने किफायती स्वास्थ्य देखभाल का मामला 3 बार उठाया है। उम्मीद है, इससे कुछ फर्क पड़ेगा।  सबसे पहले मैंने इस मामले को दिसंबर 2022 में उठाया था, जिसमें अस्पतालों में सस्ती स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की आवश्यकता पर विशेष उल्लेख किया गया था, मैंने उन लोगों पर ध्यान आकर्षित किया था जो उपलब्ध स्वास्थ्य देखभाल की गैर-मौजूदगी के कारण मर रहे हैं।

कार्पोरेट अस्पतालों और तथाकथित धर्मार्थ ट्रस्टों द्वारा संचालित संस्थानों में, जहां तक लागत का सवाल है, इलाज वर्जित है। हमें यथासंभव अधिक से अधिक चिकित्सा शुल्कों की सीमा निर्धारित करने की आवश्यकता है, विशेषकर ओ.पी.डी. रोगियों के लिए। हमें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि चिकित्सा सुविधाओं की लागत सी.जी.एच.एस. दरों के करीब हो, यदि समान न हो। विशेष रूप से, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सरकार से आयकर छूट प्राप्त करने वाले संस्थानों/अस्पतालों को ऐसा मुनाफा नहीं कमाना चाहिए जो उच्च मध्यम वर्ग की आबादी के लिए भी जबरन वसूली हो, मध्यम वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग और उनसे नीचे के लोगों के बारे में तो भूल ही जाइए।

मैंने सरकार से आग्रह किया था कि स्वास्थ्य देखभाल को सभी के लिए किफायती बनाने के लिए जितना संभव हो उतने अधिक चिकित्सा शुल्कों की सीमा तय की जाए।फिर मैंने दिसंबर 2023 में मामला उठाया जहां मैंने आयुष्मान योजना में कमियों का उल्लेख किया और उन्हें ठीक करने के सुझाव भी दिए। मैंने आयुष्मान योजना पर उपलब्ध आधिकारिक आंकड़ों से एक सुराग लिया। आयुष्मान योजना के तहत सूचीबद्ध अस्पतालों का औसत बैड साइज 48 है।

इसका अर्थ यह है कि केवल छोटे अस्पताल ही सूचीबद्ध हैं और बड़े अस्पताल, जो गंभीर बीमारियों की देखभाल कर सकते हैं, सूचीबद्ध नहीं हैं। इसलिए, सरकार से मेरा अनुरोध है कि बड़े अस्पतालों को पैनल में शामिल करना अनिवार्य किया जाए या कम से कम सरकार से लाभ लेने वाले उन अस्पतालों को शामिल किया जाए जिनके पास मैडीकल कॉलेज हैं और जो आयकर में छूट लेते हैं। इसलिए, मेरा सरकार से अनुरोध है कि अस्पतालों को सूचीबद्ध करना अनिवार्य बनाया जाए। -संजीव अरोड़ा (राज्यसभा सांसद)

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