अफगानिस्तान से अमरीका की वापसी, ताईवान को चीन से मिलने लगी गीदड़ भभकियां

Edited By ,Updated: 02 Sep, 2021 06:04 AM

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पिछले कुछ सप्ताहों से अफगानिस्तान के हालात तेजी से बदल रहे हैं और ऐसे में साफ दिखाई देने लगा है कि दुनिया 2 खेमों में बंटी है, जिसमें रूस, चीन और पाकिस्तान मिलकर अफगानिस्तान के बारे में कुछ बड़ा करने की फिराक में नजर आ रहे हैं। इसीलिए इन देशों में...

पिछले कुछ सप्ताहों से अफगानिस्तान के हालात तेजी से बदल रहे हैं और ऐसे में साफ दिखाई देने लगा है कि दुनिया 2 खेमों में बंटी है, जिसमें रूस, चीन और पाकिस्तान मिलकर अफगानिस्तान के बारे में कुछ बड़ा करने की फिराक में नजर आ रहे हैं। इसीलिए इन देशों में आपसी बैठकों का दौर जारी है। ऐसे में चीन ने अपने पड़ोसी देश ताईवान को अमरीका का उदाहरण देकर धमकाना शुरू कर दिया है। दरअसल चीन ताईवान को अपने देश का हिस्सा मानता है जिसे जल्दी ही चीन की मुख्य भूमि से मिलना होगा। 

चीन ने ताईवान को धमकी भरे अंदाज में कहा है कि अमरीका अब कमजोर होती हुई ताकत है और जो भरोसे के लायक भी नहीं है। वह अफगानिस्तान को मंझधार में छोड़ कर भाग गया है और तालिबान की बढ़ती ताकत के आगे अमरीका ने घुटने टेक दिए हैं। इसलिए अमरीका के भरोसे अगर कोई देश चीन को आंखें दिखाता है तो यह उस देश के लिए अच्छा नहीं होगा। ठीक इस बयान के समय चीन ने ताईवान के समुद्री इलाके के बहुत नजदीक अपना सैन्याभ्यास भी किया।

चीन ने ताईवान को अपने सरकारी मुखपत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में छपे एक लेख के माध्यम से कहा कि अमरीकी फौजों के अफगानिस्तान से निकलते ही अफगान सरकार तालिबान के हाथों हार गई। पेइचिंग ने कहा कि जब चीन ताईवान पर आक्रमण करेगा, अमरीका ताईवान की रक्षा नहीं करेगा। इसके साथ ही पेइचिंग ने ताईवान को अफगानिस्तान जैसी स्थिति से गुजरने की बात भी कही लेकिन चीन यह भूल गया कि वह ताईवान की तुलना किससे कर रहा है। 

चीन के बयान पर अमरीकी सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि दोनों देशों की तुलना नहीं की जा सकती। अमरीका अफगानिस्तान में 9/11 हमलों के आतंकियों पर हमला करने के लिए गया था, वहीं ताईवान में हम शांति और स्थायित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ताकि पूरे ताईवानी जलडमरू मध्य क्षेत्र को स्थायित्व मिले। पेइचिंग ने कभी भी ताईवान पर शासन नहीं किया लेकिन सत्ताधारी सी.पी.सी. ने हाल के दिनों में ताईवान पर राजनयिक और सैन्य दबाव बनाना शुरू कर दिया, ताकि ताईवान पेइङ्क्षचग की सत्ता को स्वीकार कर ले। 

इसके जवाब में ताईवान ने भी चीन की भाषा में जवाब देते हुए कहा कि कहीं ऐसा न हो कि चीन, जो अफगानिस्तान में तालिबान का साथ दे रहा है, की यह हरकत उसके ताबूत में आखिरी कील साबित हो क्योंकि चीन एक तरफ अपने उईगर मुसलमानों पर अत्याचार कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान में वह आतंकियों के साथ गठजोड़ कर रहा है और आतंकी तालिबान आज नहीं तो कल अपने उईगर मुस्लिम भाइयों की मदद के लिए आगे आएगा क्योंकि तालिबान शरिया का कानून मानता है जो इन्हें मुस्लिम ब्रदरहुड की तरफ ले जाता है। इसका सीधा मतलब यह है कि दुनिया में जहां पर भी मुसलमानों पर अत्याचार होगा, वहां तालिबान पहुंचेगा। 

ताईवान और अफगानिस्तान में कोई मेल नहीं है। एक तरफ अराजक, बदहाल और आतंकियों का गढ़ अफगानिस्तान है, जहां कानून का मतलब बंदूक की गोली है, वहीं दूसरी तरफ ताईवान है, जहां पर मजबूत लोकतंत्र है। ताईवान विज्ञान और तकनीक में दुनिया के शीर्ष देशों में गिना जाता है, जहां सैमीकंडक्टर्स और माइक्रो चिप बनती हैं, जिनका इस्तेमाल हर इलैक्ट्रॉनिक सामान में होता है, चाहे वह छोटा-सा मोबाइल फोन हो या फिर बड़ी चार पहियों वाली गाड़ी। सारी दुनिया के सैमीकंडक्टर उत्पादन का 50 फीसदी से ज्यादा ताईवान में होता है। अगर ताईवान आज सैमीकंडक्टर बनाना बंद कर दे तो इससे चीन, जापान, जर्मनी, फ्रांस, अमरीका और ब्रिटेन समेत भारत के इलैक्ट्रॉनिक और इलैक्ट्रिकल उद्योगों को भी भारी नुक्सान होगा। यह एक बड़ी वजह है कि चीन ताईवान को धमकियां तो देता है लेकिन कभी उस पर हमला नहीं करता। 

हाल ही में जापान की टोयोटा कार  कंपनी ने अपनी कारों के उत्पादन को 40 फीसदी तक घटा दिया क्योंकि उसे जरूरत के अनुसार माइक्रो चिप नहीं मिल रही, जिससे जापान के कार उद्योग को भारी नुक्सान हो रहा है। जहां तक ताईवान के अंदरूनी मामलों की बात है तो चीन के खिलाफ लोगों की भावनाएं जरूर जागृत हैं, खासकर युवाओं में, जो जापान और अमरीका को अपने मित्र देश और चीन को अपना कट्टर शत्रु मानते हैं लेकिन इस मुद्दे पर ताईवान के अंदर बहस नहीं होती। इसके उलट लोग अपने आम जनजीवन की बातों में ज्यादा व्यस्त दिखाई देते हैं। वहीं चीन की घुड़कियों से रक्षा के लिए अमरीका हमेशा ताईवान के साथ खड़ा है। 39.6 फीसदी ताईवानी यह मानते हैं कि पेइङ्क्षचग के साथ उनका सैन्य संघर्ष तय है लेकिन निकट भविष्य में वे इसकी आशंका कम देखते हैं क्योंकि अमरीका समेत जी-7 देशों का गठजोड़ चीन की आक्रामकता पर लगाम लगाने के लिए तैयार बैठा है। 

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