क्या राहुल गांधी के साथियों का कांग्रेस से मोह भंग हो गया

Edited By ,Updated: 23 Jan, 2024 05:39 AM

are rahul gandhi s colleagues disillusioned with congress

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी का फैसला जांच के दायरे में आ रहा है? आलोचकों को आश्चर्य है कि क्या उन्होंने उन सहयोगियों को बढ़ावा दिया जिन्होंने अंतत: उन्हें और कांग्रेस को धोखा दिया। पूर्व मंत्री मिलिंद देवड़ा के हालिया प्रस्थान ने उनके आंतरिक...

क्या कांग्रेस नेता राहुल गांधी का फैसला जांच के दायरे में आ रहा है? आलोचकों को आश्चर्य है कि क्या उन्होंने उन सहयोगियों को बढ़ावा दिया जिन्होंने अंतत: उन्हें और कांग्रेस को धोखा दिया। पूर्व मंत्री मिलिंद देवड़ा के हालिया प्रस्थान ने उनके आंतरिक दायरे को छोटा कर दिया है, केवल कुछ करीबी सहयोगी ही बचे हैं जो कांग्रेस के वफादार बने हुए हैं। यह ध्यान देने योग्य बात है कि भाजपा ने कांग्रेस छोडऩे वाले कई सहयोगियों का स्वागत किया है और कुछ को पार्टी से अलग होने के लिए प्रोत्साहित भी किया है। 

हाल ही में राहुल गांधी के दोस्त अन्य राजनीतिक दलों में क्यों शामिल हुए हैं? इसका सीधा सा उत्तर यह था कि उनका कांग्रेस और उसके नेताओं से मोहभंग हो गया था। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी नेता की सफलता के लिए बुद्धिमान सलाहकार अहम होते हैं। राजीव गांधी और राहुल के राजनीतिक और व्यक्तिगत अनुभव समान थे और दोनों ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत ऊंचे स्तर पर की थी। हालांकि, राजीव गांधी की राजनीतिक शिक्षा नौकरी पर सीखने से हुई। राजनीति में प्रवेश करने के 4 साल बाद, अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण राजीव प्रधानमंत्री बन गए। सत्ता से बाहर रहने के दौरान राजीव ने अपना राजनीतिक पाठ अच्छे से सीखा। राहुल अभी भी सीख रहे हैं। 

1989 में, राजीव गांधी को उनके राजनीतिक विरोधियों ने नकारात्मक प्रचार के माध्यम से निशाना बनाया, जिससे उनका राजनीतिक पतन हो गया। अरुण नेहरू, अरुण सिंह, वी.पी. सिंह सहित कई उल्लेखनीय सदस्य थे। इस अवधि के दौरान  अमिताभ बच्चन ने राजीव की टीम छोड़ दी। राजीव के भरोसेमंद दोस्त दून स्कूल से थे, जिन्हें सामूहिक रूप से डोस्को टीम के नाम से जाना जाता था। राहुल की छवि निर्माताओं की टीम ने उन्हें एक सक्षम नेता के रूप में प्रस्तुत करने का बहुत प्रयास किया। उन्हें धर्म, जाति और अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने और भारत को प्रगति की दिशा में एक साथ लाने के लिए रचनात्मक समाधान का श्रेय दिया जाता है।

हालांकि, भाजपा ने उन्हें एक अयोग्य नेता के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया, जिनके पास दूरदॢशता का अभाव था और जो देश को समृद्धि की ओर नहीं ले जा सके। इस नकारात्मक धारणा को पुष्ट करने के लिए वे अक्सर उन्हें ‘पप्पू’ कहते थे। लगातार चुनावी हार से निराश होकर, राहुल के अधिकांश अंदरूनी लोग हरियाली वाले रास्ते तलाश रहे थे। वे प्रभावशाली राजनीतिक राजवंशों से संबंधित थे और महत्वाकांक्षी थे। वे पुराने गार्ड से कार्यभार संभालने की जल्दी में थे। सत्ता का आनंद लेने के बाद उनकी चुनी हुई अधिकांश टीम चली गई। 

उदाहरण के लिए, राहुल गांधी के करीबी दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया उस समय निराश हो गए जब 2018 विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री नियुक्त नहीं किया। परिणामस्वरूप, उन्होंने मध्य प्रदेश सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे अंतत: 2 साल पहले भाजपा सरकार की स्थापना हुई। सिंधिया को उनके समर्थन के लिए केंद्र में मंत्री पद की पेशकश की गई थी। हाल ही में जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में शामिल हुए हैं। वहीं, कपिल सिब्बल, अल्पेश ठाकुर और आर.पी.एन. सिंह सभी अलग-अलग पाॢटयों में चले गए हैं। इसके अलावा गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी के नेतृत्व से असंतुष्ट होकर कांग्रेस से अपना रिश्ता खत्म कर लिया है। 

कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने पंजाब में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और बाद में भाजपा में शामिल हो गए। कांग्रेस के एक और बड़े नेता सुनील जाखड़ भी चले गए हैं। 2019 के आम चुनावों के बाद जब पार्टी हार गई तो 23 नेताओं ने कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व को चुनौती दी। राहुल के कुछ करीबियों के जाने से असंतोष बढ़ रहा है। राहुल ने पहले उन्हें मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री के रूप में पदोन्नत किया था। बाद में उन्होंने उन्हें पार्टी में उच्च पद दिए। कुछ ने कांग्रेस कार्य समिति में भी पद संभाला, जिसके लिए आमतौर पर वर्षों के समर्पण की आवश्यकता होती है। 

2014 और 2019 के चुनावों में कांग्रेस ने सत्ता खो दी, और वह आगामी 2024 के चुनावों में अधिकतम 100 सीटें ही सुरक्षित कर पाएगी? अपने भविष्य के डर से, वे सत्ता में रहे बिना अगले 5 साल बिताने का जोखिम नहीं उठा सकते। राहुल के अंदरूनी घेरे ने दूसरे विकल्प तलाशने शुरू कर दिए। भाजपा की ओर से लुभावने ऑफर मिलने से वे निराश नहीं हुए। हालांकि राजीव गांधी और राहुल ने समान राजनीतिक और व्यक्तिगत अनुभव सांझा किए और राजनीति में अच्छी शुरुआत की। राजनीति में प्रवेश के 4 वर्ष बाद दुखद परिस्थितियों ने राजीव को प्रधानमंत्री बना दिया। उनके गुमराह सलाहकारों और राजनीतिक अनुभवहीनता ने राजीव के अच्छे इरादों पर पानी फेर दिया। श्रीलंका शांति समझौता विफल हो गया और आई.पी.के.एफ. भेजने का निर्णय विनाशकारी था। परिणामस्वरूप तमिलनाडु में उनकी हत्या कर दी गई। 

पिछले 20 सालों में राहुल की ग्रोथ और भी शानदार हो सकती है। उन्हें बिना मांगे शक्तिशाली पद सौंपे गए हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे महज एक प्रमुख व्यक्ति हैं और राहुल की मां सोनिया गांधी पीछे की सीट पर हैं, राहुल के पास कांग्रेस के भीतर महत्वपूर्ण पदों पर महत्वपूर्ण कर्मियों की नियुक्ति पर पूरा नियंत्रण है। 2024 का चुनाव जीतने के लिए राहुल गांधी को अपनी रणनीति की समीक्षा करने, काम करने के लिए सही लोगों का चयन करने और प्रत्येक राज्य में मजबूत नेता बनाने की जरूरत है। उनकी चल रही ‘भारत न्याय यात्रा’ मतदाताओं से जुडऩे का एक प्रभावी तरीका है, जैसा कि उनकी पिछली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने किया था।  सबसे अहम है वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाना। राहुल को पिछले अनुभवों से सीखना चाहिए, तुरंत आवश्यक बदलाव करने चाहिएं, कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं और गठबंधन सहयोगियों का विश्वास अर्जित करना चाहिए और सबसे बढ़कर, एक नई कहानी ढूंढनी चाहिए।-कल्याणी शंकर

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