गेहूं निर्यात पर बैन या किसानों से बैर

Edited By Updated: 17 May, 2022 04:41 AM

ban on export of wheat or enmity with farmers

केंद्र सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर अचानक बैन लगा देने का फैसला एक बार फिर दर्शाता है कि इस सरकार की नीतियां किस तरह मूलत: किसान विरोधी हैं। हमारे देश में कृषि आयात-निर्यात की

केंद्र सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर अचानक बैन लगा देने का फैसला एक बार फिर दर्शाता है कि इस सरकार की नीतियां किस तरह मूलत: किसान विरोधी हैं। हमारे देश में कृषि आयात-निर्यात की नीति या तो व्यापारियों के मुनाफे के लिए बनाई जाती है या फिर गरीब उपभोक्ता का वोट लेने के लिए। इस फैसले में उत्पादक यानी किसान के नफे-नुक्सान की कोई ङ्क्षचता नहीं रही। यही पुराना खेल इस वर्ष गेहूं के निर्यात (एक्सपोर्ट) को लेकर खेला गया। 

यूक्रेन युद्ध की आपदा  इस वर्ष भारत के गेहूं उत्पादकों के लिए एक विशेष अवसर लेकर आई थी। देश में गेहूं का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2015-16 में अकाल के झटके के बाद से यह उत्पादन 95 करोड़ क्विंटल से बढ़ कर इस वर्ष रिकॉर्ड 111 करोड़ क्विंटल होने की आशा थी। उधर एफ.सी.आई. के पास जरूरत से ज्यादा स्टॉक रखा था। जाहिर है ऐसे में देश और दुनिया दोनों को उम्मीद थी कि यूक्रेन की कमी को भारत पूरा करेगा। इस साल भारत से 10 से लेकर 14 करोड़ क्विंटल तक निर्यात की उम्मीद थी। सरकार समझदारी से काम लेती तो निर्यातकों और स्टॉकिस्ट के मुनाफे के साथ-साथ किसानों को भी बेहतर दाम मिलने की गुंजाइश थी। 

अगर सरकार की नीयत किसानों का भला करने की होती तो इस साल की विशेष परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए सरकार एम.एस.पी. पर 250 रुपए से 300 रुपए का बोनस देकर सरकारी खरीद कर सकती थी। लेकिन जैसे ही मंडी में किसान को एम.एस.पी. (2015 रुपए प्रति क्विंटल) के बराबर या कुछ ज्यादा रेट मिलना शुरू हुआ, वैसे ही सरकारी खरीद कम हो गई। सरकार गेहूं की खरीदी के झंझट से बचना चाहती थी। उधर रिलायंस और आदित्य बिड़ला जैसी प्राइवेट कंपनियां स्टॉक बना रही थीं, लेकिन सरकार आंख मूंद कर बैठी थी। 

अचानक यह गुब्बारा फूट गया। मार्च के मध्य से अप्रैल में गेहूं की फसल कटाई तक देश में भीषण गर्मी पड़ी। नतीजा यह हुआ कि गेहूं का दाना सिकुड़ गया, फसल की झड़ाई घट गई, यानी उसका वजन घट गया। अप्रैल के पहले सप्ताह में कृषि विशेषज्ञ और किसान संगठन गेहूं के उत्पादन में भारी गिरावट की चेतावनी दे रहे थे, लेकिन सरकार ने पहले इसे अनसुना किया, फिर माना कि शायद उत्पादन 105 करोड़ क्विंटल रहेगा। अब अनुमान है कि उत्पादन 100 करोड़ क्विंटल से भी कम रह जाएगा। 

उधर सरकारी खरीद में कोताही और उत्पादन में कमी के चलते इस वर्ष गेहूं की सरकारी खरीद में भारी गिरावट आ गई। पिछले साल सरकार ने 44 करोड़ क्विंटल गेहूं खरीदा था, जो इस साल घट कर सिर्फ 18 करोड़ क्विंटल रह गया। एफ.सी.आई. के गोदाम में पहले से पड़े 19 करोड़ किं्वटल गेहूं को जोड़ देने पर भी यह स्टॉक सरकार की जरूरत के लिए पर्याप्त नहीं था। 

राशन की दुकान में वितरण, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, मिड-डे मील स्कीम तथा आड़े वक्त के लिए बचा कर रखे जाने वाले बफर स्टॉक के लिए कुल मिला कर सरकार को 39 करोड़ क्विंटल गेहूं की जरूरत थी। इसके अलावा सरकार आटे का दाम कम रखने के लिए हर साल बाजार में 3 से 7 करोड़ क्विंटल गेहूं सस्ते दाम पर बेचती है। सरकारी नीति के कारण इस साल उसके लिए कुछ भी नहीं बचा। इस मौके का फायदा उठा कर स्टॉकिस्ट ने गोदाम भरने शुरू किए और आटे का दाम बढऩा शुरू हो गया। 

केंद्र सरकार के पास यह सब खबर अप्रैल के मध्य तक पहुंच चुकी थी, हर अर्थशास्त्री, किसान संगठन और अखबार इस पूर्वानुमान को छाप रहे थे। फिर भी सरकार निर्यात बढ़ाओ अभियान में जुटी हुई थी। वाणिज्य मंत्री व्यापारियों और निर्यातकों का हौसला बढ़ा रहे थे। प्रधानमंत्री ने 13 अप्रैल को ही नहीं, 5 मई को भी सारी दुनिया का अन्नदाता होने का आश्वासन दिया। यहां तक कि 12 मई को वाणिज्य मंत्रालय ने 7 देशों में गेहूं निर्यात के लिए डैलिगेशन भेजने की घोषणा की। तब अचानक आटे का दाम बढऩे, महंगाई का गुस्सा चढऩे और गरीब का वोट जाने का डर सताया और सरकार ने  14 मई को गेहूं के निर्यात पर पाबंदी की घोषणा कर दी। 

जाहिर है ऐसी हड़बड़ी में की गई घोषणा से दुनिया में भारत की छवि को धक्का लगा है। जो स्टॉकिस्ट और व्यापारी निर्यात के लिए तैयार बैठे थे उन्हें भी झटका लगेगा। वे तो फिर भी सीधी या टेढ़ी उंगली से घी निकाल लेंगे, लेकिन किसान को हुए नुक्सान की भरपाई कौन करेगा? इस साल गेहूं के किसान को तिहरी मार पड़ी है।  बेमौसमी गर्मी के चलते उत्पादन में 20 प्रतिशत तक गिरावट हुई। निर्यात बैन की घोषणा के अगले ही दिन मंडियों में गेहूं के दाम 100 रुपए गिर गए। जो किसान बेहतर दाम की उम्मीद में गेहूं रोक कर बैठे थे, उनको सरकारी नीति से फसल के दाम का घाटा होगा। 

भविष्य में भारत से गेहूं लेने में कोई भी देश हिचकेगा, जिससे अंतत: हमारे गेहूं उत्पादक किसान को ही घाटा होगा। इस तिहरे नुक्सान की भरपाई कौन करेगा? गरीब को सस्ता आटा उपलब्ध करवाने की चिंता बिल्कुल जायज है, लेकिन उसका बोझ गरीब किसान के कंधे पर डालना कहां तक उचित है? 

अगर अब भी सरकार को किसान की चिंता है तो 2 कदम तुरंत उठाए जाने चाहिएं। पहला, केंद्र सरकार राष्ट्रीय आपदा फंड से बेमौसमी गर्मी के चलते गेहूं के किसान को हुए नुक्सान की भरपाई के लिए प्रति एकड़ 5000 रुपए का मुआवजा घोषित कर सकती है। दूसरा, गेहूं की खुली खरीद को देशभर में दोबारा शुरू कर किसान को प्रति किं्वटल 250 रुपए बोनस (यानी 2265 रुपए प्रति क्विंटल का भाव) देकर सरकारी खरीद कर सकती है। इससे किसान को भी चार पैसे मिलेंगे और गरीब को सस्ता अनाज देने के लिए सरकार के पास स्टॉक भी रहेगा। देखना है सरकार अब भी अपनी गलती से सीखती है या नहीं।-योगेन्द्र यादव 
 

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