अंतर्कलह से जूझती भाजपा की खराब होती दशा

Edited By ,Updated: 03 Aug, 2024 05:17 AM

bjp s condition worsening as it grapples with internal conflict

बीते लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल शुरू हुई। यह लगातार बढ़ रही है। आज उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मोर्चे पर तलवार भांज रहे हैं।

बीते लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल शुरू हुई। यह लगातार बढ़ रही है। आज उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मोर्चे पर तलवार भांज रहे हैं। भाजपा के 100 विधायकों को तोड़ कर समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने में मौर्य को मुख्यमंत्री का पद ऑफर किया गया था। सूबे में जारी इस घमासान का व्यापक असर देर-सवेर देश पर भी पड़ेगा। इसके कारण भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा की हालत ऐसी है कि देश का स्वास्थ्य मंत्रालय ही नेतृत्व विहीन प्रतीत होने लगा है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री के बीच की तकरार सरहदें पार कर गई है। केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्य नाथ के नाम पर आज संगठन बनाम सरकार का समीकरण बन गया है। इसके बीच उत्तर प्रदेश की जनता की कौन सुनेगा? आज यक्ष प्रश्न यही है। लोकसभा चुनाव में भाजपा की ढलती स्थिति के लिए योगी को जिम्मेदार मान कर सत्ता से बेदखल करने का प्रयास अब तक सफल नहीं हो सका है। पार्टी नेतृत्व को याद होगा कि पूर्व में कल्याण सिंह की लोकप्रिय सरकार अंतर्कलह की भेंट चढ़ गई थी।

अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में हुई भूल के बाद भाजपा को सत्ता प्राप्त करने में 18 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा। क्या मोदी के दौर में भाजपा फिर वही गलती दोहराएगी? इस सवाल के जवाब में तमाम तरह के दावे बाजार में मौजूद हैं। लोकसभा की 80  में से 75 सीटें जीतने का दावा करने वाले मात्र 33 पर सिमट गए। इसके कारण चुनाव में हार का ठीकरा फोडऩे की कवायद लगातार चलने लगी। लखनऊ में हुई समीक्षा में योगी आदित्य नाथ ने पार्टी की दुर्दशा के 3 कारण गिनाए।

पहला, उन्होंने भाजपा के 400 पार के नारे को अति आत्मविश्वास का प्रतीक करार दिया। दूसरा, संविधान बदलने की योजना को अनुकूल समझ कर इसे जनता ने  खारिज कर दिया। तीसरे कारण के रूप में डबल इंजन सरकार की सभी उपलब्धियों को जनता तक नहीं पहुंचा पाना माना। हालांकि पहले दोनों कारणों में उन्होंने दिल्ली की ओर उंगली घुमाई है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए शीर्ष नेतृत्व पर बराबर प्रहार कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बायोलॉजिकल नहीं होने की बात पर भागवत भी राहुल गांधी की तरह चुटकी लेने से नहीं चूके थे। 

सामाजिक समरसता के बदले हिन्दू मुस्लिम के नाम पर धुव्रीकरण के प्रयास पर उनकी प्रतिक्रिया चर्चाओं में है। भाजपा के करोड़ों कार्यकओं के सामने संघ के 50 लाख स्वयंसेवकों पर पार्टी अध्यक्ष नड्डा की बातों को उन्होंने अहंकार का प्रतीक माना है। इनका वास्तविक खमियाजा चुनाव में भुगतने के बाद संघ और भाजपा से जुड़ी हस्तियों की प्रतिक्रिया पर हार का टोटा हावी है। क्या विधानसभा उप चुनाव पर इस बात का असर नहीं होगा? उप-मुख्यमंत्री के रूप में 2 सहयोगी बैठाकर आलाकमान ने योगी जी पर अंकुश लगाने का काम किया। 

विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए योगी की तैयारी चकित करती है। इसमें जीत दर्ज करने के लिए प्रदेश सरकार ने 30 मंत्रियों की टीम मैदान में उतारी है। दोनों उप मुख्यमंत्रियों को इससे बाहर रख कर उन्होंने आलाकमान को साफ संकेत दिया है। योगी की पसंद के 3 मंत्री प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र को साधने का काम करेंगे। प्रतिपक्ष इस अंतर्कलह को भुनाने के प्रयास में लगा है। आलाकमान की शह पाकर ही केशव प्रसाद मौर्य बगावत को हवा दे रहे हैं। यह हिन्दू हृदय सम्राट और नेतृत्व शिखर पर बाबा के पहुंचने के मार्ग में बाधा खड़ी करने का काम है। इसके खिलाफ बुल्डोजर बाबा की रणनीति से चित्त और पट्ट का टॉस बाबा के पाले में है। त्याग पत्र की मांग करने वाले बैकफुट पर हैं। 

मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया और छत्तीसगढ़ में डा. रमण सिंह की तरह उत्तर प्रदेश से योगीजी की विदाई आसान नहीं है। उनके राजनीतिक पैंतरे का असर भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे इन सभी कद्दावर नेताओं पर पड़ेगा। अपनी हैसियत बनाए रखने के लिए मोदी, शाह व नड्डा कद्दावर नेताओं के पर कतरने से नहीं चूकते हैं। ऐसा पहली बार हुआ कि अनुशासित मानी जाने वाली पार्टी में बगावत इस कदर मुखर हो गई है। संघ और उत्तर प्रदेश की जनता का सहयोग, सहानुभूति व समर्थन योगी के साथ है। ऐसे में क्या भाजपा आलाकमान उत्तर प्रदेश में सत्ता परिवर्तन कर सकेगी? 

जातिवाद की इस राजनीति का गढ़ माने जाने वाले सूबे में ठाकुरवाद और वर्चस्व के समर्थन और विरोध में सक्रिय लोगों की कमी नहीं रही है। क्या आज पार्टी आलाकमान आसन्न संकट से अपना ही बचाव करती नहीं दिखती है? उत्तर प्रदेश विधानसभा उप-चुनाव के बाद इस पर फिर विचार करना होगा। देश के सबसे बड़े सूबे में सूबेदार बनने की होड़ में लगे नेता और अपनी कुर्सी बचाने में लगे शीर्ष पर बैठे नेता मिलकर एक दिन बाबा को शिखर पर पहुंचा कर ही दम लेंगे। -कौशल किशोर

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