मेकांग नदी के माध्यम से पड़ोसी देशों में दखल दे रहा चीन

Edited By ,Updated: 14 Sep, 2021 06:18 AM

china interfering in neighboring countries through mekong river

अफगानिस्तान में चीन, रूस और अमरीका के बीच चल रहे गंभीर शीतयुद्ध के बीच चीन ने चुपचाप अपने पांव एक बार फिर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में पसारने शुरू कर दिए हैं। चीन इस समय मेकांग नदी के

अफगानिस्तान में चीन, रूस और अमरीका के बीच चल रहे गंभीर शीतयुद्ध के बीच चीन ने चुपचाप अपने पांव एक बार फिर दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में पसारने शुरू कर दिए हैं। चीन इस समय मेकांग नदी के जरिए राजनीति कर रहा है और अपने पड़ोसी देशों में दखल दे रहा है।

लानसांग-मेकांग कमिशन के जरिए चीन ने अभी 60 लाख अमरीकी डॉलर निवेश करने की बात कही है हालांकि चीन के वैश्विक स्तर पर एक खरब अमरीकी डॉलर के निवेश के आगे यह बहुत कम राशि है लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वे इस राशि का इस्तेमाल पहले से चल रही लानसांग-मेकांग नदी कमिशन में ही जोड़ेगा और यह धनराशि पशुधन टीकाकरण परियोजना, कृषि में विकास, विज्ञान, आपदा प्रबंधन, राजनीतिक स्थिरता और पर्यटन में खर्च करेगा। 

चीन का कहना है कि कई अरब डॉलर की यह परियोजना इस पूरे क्षेत्र की काया पलट कर देगी। मेकांग राष्ट्रों में चीन ने यांमार को भी जोड़ा है। चीन बाकी देशों की तरह भारत के पड़ोसी यांमार को अपनी मुट्ठी में रखना चाहता है ताकि वह आने वाले समय में जब चाहे इसका भारत के खिलाफ इस्तेमाल कर सके।

चीन ने वर्ष 2015 में लानसांग-मेकांग कमिशन की स्थापना पश्चिमी दुनिया द्वारा शुरू किए गए मेकांग नदी कमिशन, जिसकी आधारशिला 1950 के दशक में रखी गई थी, के उत्तर में शुरू की है जिससे इस पूरे क्षेत्र पर पश्चिम के आधिपत्य को खत्म कर चीन खुद काबिज हो सके। मेकांग नदी को चीन में लानसांग नदी कहते हैं जो तिब्बत की मानसरोवर झील से निकल कर पूरे दक्षिण-पूर्व देशों का चक्कर लगाकर 5000 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए दक्षिण चीन सागर में गिरती है।

लानसांग-मेकांग कमिशन बनाकर चीन ने मेकांग नदी कमिशन के मु य कत्र्ताधत्र्ता जापान और अमरीका को दरकिनार करने की कोशिश की है। इन दोनों देशों ने इस परियोजना में अब तक अपना अधिक धन खर्च किया है लेकिन इन देशों (लाओस, थाईलैंड, वियतनाम, कम्बोडिया तथा म्यांमार) ने मेकांग नदी के मार्ग में बांध बनाने की कई देशों की परियोजना को यह कह कर धन नहीं दिया कि इससे मेकांग नदी सूख जाएगी और इस पूरे क्षेत्र के पर्यावरण पर विपरीत असर पड़ेगा लेकिन चीन ने जालसाजी दिखाते हुए इन देशों को हाइड्रो पावर योजना के तहत धन देना शुरू कर दिया ताकि वह इन देशों का कोपभाजक न बने और उसे अपना स्वार्थ साधने में कोई परेशानी न हो। 

मेकांग नदी पर बांध बनाकर चीन इस नदी का पानी अपने लिए रखना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ धन के जोर पर वह अपने दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों को अपने पर आश्रित रखना चाहता है। चीन ने बड़ी चालाकी से मेकांग नदी पर 11 बांध बना लिए हैं और ये सारे बांध चीन ने अपने देश में बनाए हैं। मेकांग नदी के यांमार और लाओस की सीमा में प्रवेश करने से पहले ही चीन ने बांध बना लिए हैं और अभी 80 बांध निर्माणाधीन हैं। चीन सीधे तौर पर मेकांग नदी के पानी का बड़ा हिस्सा खुद इस्तेमाल करना चाहता है और लानसांग-मेकांग परियोजना के धन को भी अपनी मुट्ठी में रखना चाहता है ताकि कोई भी देश चीन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद न कर सके। वैसे भी चीन को विरोध की आवाज सुनने की आदत तो है नहीं। 

चीन ने 1990 के दशक से ही मेकांग नदी पर बांध बनाना शुरू कर दिया था। इसके विरोध में स्वर उस समय भी उठ रहे थे क्योंकि गर्मी के समय चीन मेकांग नदी के बांधों को बंद कर देता है जिससे पानी बाकी दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को नहीं जा पाता, इससे उन्हें कृषि और मत्स्य पालन के लिए बहुत परेशानी होती है। मेकांग नदी में कई अलग-अलग प्रजातियों की मछलियां पलती हैं और पानी के बहाव के साथ ये मछलियां उत्तर से दक्षिण की ओर बहते हुए जाती हैं। इन सारे देशों में मछलियों का 17 अरब डॉलर का कारोबार होता है जो चीन के बांध बनाने से खटाई में पड़ गया है। इसके साथ ही पीने के पानी का अकाल पड़ जाता है और जब बरसात आती है तो चीन अपने बांधों के दरवाजे खोल देता है जिससे जरूरत से ज्यादा पानी इन क्षेत्रों में भर जाता है। दोनों ही हालात यांमार, लाओस, वियतनाम, थाईलैंड और क बोडिया के लिए खतरनाक बन जाते हैं। 

दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में जब वर्ष 1999 और उसके बाद अकाल पडऩे लगा तो सभी देशों ने सामूहिक तौर पर चीन को जि मेदार ठहराया। इनके गुस्से को शांत करने के लिए चीन ने एक नई चाल चली। वह पानी  पर तो नहीं माना लेकिन इन देशों को खुश करने के लिए यहां पर भी कई बांधों का निर्माण कर दिया ताकि यहां पर बिजली की समस्या हल हो सके लेकिन यह चीन की मक्कारी भरी चाल थी जिसका पता समय रहते चल गया। जब चीन दक्षिण की तरफ पानी छोड़ता ही नहीं है तो बांधों के बनने या न बनने से कोई फर्क नहीं पड़ता। न तो बांधों में पानी रहेगा और न ही बिजली और न ही मत्स्य और कृषि को कोई लाभ मिलेगा। 

अगर अमरीका, जापान सहित जी-7 देशों, यूरोपिय संघ ने इस क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं किया तो किसी भी देश की हि मत नहीं है कि मेकांग नदी के पानी पर चीन को कब्जा करने से रोक सके। चीन इस समय किसी भी छोटे से छोटे आय के स्रोत के लालच में पड़ गया है। ड्रैगन के बढ़ते कदमों को इस इलाके में रोकना बहुत जरूरी है नहीं तो दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों का भविष्य खत्म हो जाएगा।


 

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