कांग्रेस ने शुरू की ‘क्यू.आर. कोड’ से टिकट आवेदन प्रक्रिया

Edited By Updated: 28 May, 2025 06:01 AM

congress started the ticket application process through  qr code

बिहार में विधानसभा चुनाव इस साल अक्तूबर-नवम्बर तक होने वाले हैं, फिर भी राजनीतिक दलों ने अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने पहली बार संभावित उम्मीदवारों के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए क्विक रिस्पांस (क्यू.आर.) कोड सिस्टम शुरू...

बिहार में विधानसभा चुनाव इस साल अक्तूबर-नवम्बर तक होने वाले हैं, फिर भी राजनीतिक दलों ने अभी से कमर कसनी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने पहली बार संभावित उम्मीदवारों के लिए आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए क्विक रिस्पांस (क्यू.आर.) कोड सिस्टम शुरू किया है। क्यू.आर. कोड अनिवार्य रूप से एक कोडित ग्राफिक है, जिसे स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करके स्कैन किया जा सकता है। यह उपयोगकत्र्ताओं को डिजिटल सामग्री से जोड़ता है। चुनावों के संदर्भ में, यह भौतिक सामग्रियों को ऑनलाइन संसाधनों से जोड़ता है, जिससे दस्तावेजों और डाटा तक तुरंत पहुंच मिलती है। इस महीने की शुरुआत में पटना में एक प्रैस कांफ्रैंस में बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने बताया कि यह प्रक्रिया कैसे काम करेगी- उम्मीदवारों को अब समर्थन के लिए लॉबिंग करने के लिए वरिष्ठ नेताओं के पास जाने की जरूरत नहीं है। इसकी बजाय, कोड को स्कैन करने पर उन्हें एक विस्तृत आवेदन पत्र मिलेगा, जिसमें मुख्य व्यक्तिगत विवरण, निर्वाचन क्षेत्र की जानकारी और पार्टी की साख शामिल होगी।

राम ने बताया कि उम्मीदवारों को कांग्रेस के साथ अपने जुड़ाव, अपनी सदस्यता की स्थिति और ‘हर घर झंडा’ जैसे अभियानों में अपनी भागीदारी के बारे में 5 तस्वीरों के साथ बताना होगा। आवेदन में जन आक्रोश रैलियों, सामुदायिक बैठकों, सोशल मीडिया आऊटरीच और पूर्ण बायोडाटा में भागीदारी सहित सार्वजनिक जुड़ाव के साक्ष्य की भी मांग की गई है। सभी विधायकों, जिनमें वर्तमान विधायक भी शामिल हैं, को कांग्रेस के साथ अपने संबंधों के बारे में विस्तृत जानकारी देनी होगी।
उन्होंने बताया, ‘‘आवेदन करने वाले आवेदकों को क्यू.आर. कोड के माध्यम से आवेदन करना होगा और फॉर्म को पूरी तरह से भरना होगा। आवेदनों का मूल्यांकन 6 अलग-अलग मानदंडों के आधार पर किया जाएगा।’’ क्यू.आर. कोड के साथ एक उम्मीद भरी टैगलाइन भी दी गई है- ‘बिहार बदलाव के लिए तैयार है।’ हालांकि, पार्टी के भीतर संदेह बरकरार है। महाराष्ट्र के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता, जहां पार्टी को हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भारी हार का सामना करना पड़ा, ने इस पर परिप्रेक्ष्य पेश किया। उन्होंने कहा, ‘‘चाहे बिहार हो या कहीं और, राजनीतिक संरक्षण और शीर्ष नेताओं से निकटता अक्सर टिकट वितरण का फैसला करती है।’’

उन्होंने प्रक्रिया का वर्णन किया- जिला इकाई आम तौर पर प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से 5-6 नाम राज्य इकाई को भेजती है। राज्य इकाई के अध्यक्ष की अध्यक्षता वाली प्रदेश चुनाव समिति (पी.ई.सी.) फिर इनकी समीक्षा करती है। अनुशंसित नामों की संख्या मु_ी भर से लेकर 50 से अधिक तक हो सकती है। पी.ई.सी. के सुझावों के आधार पर एक शॉर्टलिस्ट संकलित की जाती है और स्क्रीनिंग कमेटी को भेजी जाती है, जिसमें राज्य के बाहर से कम से कम एक सदस्य शामिल होता है। यह समिति प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से 2 या 3 नाम चुनती है, जिन्हें फिर अंतिम निर्णय के लिए केंद्रीय चुनाव समिति को भेजा जाता है। व्यवहार में, नेता ने स्वीकार किया, प्रलोभन अक्सर प्रक्रिया को बिगाड़ देते हैं। ‘‘कैंडिडेट्स प्रत्येक चरण में प्रलोभन देते हैं। इसका मतलब है कि कभी-कभी संभावित दावेदार हार जाते हैं। क्यू.आर. सिस्टम कम से कम यह गारंटी देता है कि प्रत्येक आवेदन को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्वीकार किया जाता है।’’ जब गठबंधनों के भीतर सीट बंटवारे की बात आती है तो यह प्रक्रिया और भी जटिल हो जाती है, जिसमें कई सप्ताह तक बातचीत चलती है।

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों द्वारा उद्धृत एक उदाहरण प्रदेश कांग्रेस कमेटी के एक पूर्व प्रमुख का था, जिन्हें इस खुलासे के बाद हटा दिया गया था कि उन्होंने 2020 में सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ एक ‘हानिकारक’ सीट-सांझाकरण सौदा किया था, कथित तौर पर पार्टी के कार्यकाल में अपने बेटे के लिए टिकट सुरक्षित करने के लिए। टिकट वितरण में अस्पष्टता की शिकायतें नई नहीं हैं। हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनावों से पहले, तत्कालीन राज्य इकाई के अध्यक्ष अशोक तंवर ने पार्टी नेता सोनिया गांधी के आवास के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें दावा किया गया कि टिकट बेचे गए थे। उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘सोहना सीट 5 करोड़ रुपए में बेची गई थी। अगर टिकट वितरण अनुचित है, तो हमारे उम्मीदवारों के जीतने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?’’

2010 में बुराड़ी में कांग्रेस के विशेष सत्र में, आम कार्यकत्र्ताओं ने चुनाव टिकटों की कथित ‘बिक्री’ के खिलाफ नारे लगाकर कार्रवाई बाधित की और 2008 में, सोनिया गांधी की करीबी मानी जाने वाली पूर्व कांग्रेस महासचिव मार्गरेट अल्वा ने कर्नाटक में अपने बेटे को टिकट न दिए जाने के बाद पार्टी की टिकट संबंधी भ्रष्टाचार के लिए सार्वजनिक रूप से आलोचना की। उन्हें तुरंत कहा गया कि पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था कांग्रेस कार्य समिति में अपनी सीट सहित सभी पदों से इस्तीफा दे दें। एक पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘‘चाहे क्यू.आर. कोड हो या गूगल फॉर्म, यह अभी भी राजनीतिक निर्णय पर निर्भर करता है। एप्लीकेशन को डिजिटल बनाना आसान काम है। महत्वपूर्ण यह है कि उसके बाद क्या होता है।’’

कांग्रेस के भीतर डिजिटल उपकरणों के बढ़ते इस्तेमाल का श्रेय रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को जाता है, जो अपने डाटा-संचालित दृष्टिकोण और तीखे संदेश के लिए जाने जाते हैं। 2023 में, पार्टी के चंदे के लिए क्यू.आर. कोड की शुरुआत के पीछे उनका दिमाग बताया गया। बाद में वह कर्नाटक (2022) और मध्य प्रदेश (2023) में कांग्रेस के अभियानों में शामिल हो गए, जहां तत्कालीन भाजपा सरकारों के कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए ‘मुख्यमंत्री को भुगतान करो’ नारे वाले कोड का इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, संभावित उम्मीदवारों को सीधे पार्टी तंत्र से जोडऩे के लिए क्यू.आर. कोड का इस्तेमाल पहली बार किया गया है।-अदिति फडणीस 

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