कार्पोरेट्स लोकतंत्र को जनता से कोई सरोकार नहीं

Edited By ,Updated: 11 Feb, 2024 04:39 AM

corporate democracy has nothing to do with the public

यदि हम आज की वैश्विक संघर्ष व्यवस्था पर बारीकी से नजर डालें, और इसका गहराई से विश्लेषण करें तो वर्तमान वैश्विक राजनीतिक एवं सामरिक संदर्भ में इसकी परिभाषा पूरी तरह से बदली हुई नजर आती है।

यदि हम आज की वैश्विक संघर्ष व्यवस्था पर बारीकी से नजर डालें, और इसका गहराई से विश्लेषण करें तो वर्तमान वैश्विक राजनीतिक एवं सामरिक संदर्भ में इसकी परिभाषा पूरी तरह से बदली हुई नजर आती है। 19वीं सदी में अमरीकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा गढ़ा गया लोकतंत्र और लोकप्रिय शब्द ‘जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार’ अब पूरी तरह बदल गया है। आज का शब्द लोकतंत्र कार्पोरेट्स  के लिए, कार्पोरेट्स का और कार्पोरेट्स द्वारा निर्वाचित सरकार की स्थापना के बारे में है। 

कार्पोरेट्स लोकतंत्र की घटना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शुरू हुई थी। 1947 में भारत की आजादी और उसके भयानक विभाजन, 1948 में अरब क्षेत्र में इसराईल राष्ट्र की स्थापना की कहानी, पश्चिमी और विशेषकर अमरीकी कार्पोरेट्स  शक्तियों द्वारा लिखी गई थी। ऐसे क्षेत्रों का गठन बारहमासी क्षेत्रीय, धार्मिक और अल्पसंख्यक युद्धों को जारी रखने के लिए किया गया था। 1989-91 में सोवियत रूस और उसके सैटेलाइट राष्ट्रों का विनाश, चीनी साम्यवाद का निगमीकरण इसी के कारण है। 

भारत पर प्रभाव : आज भारत में भाजपा-आर.एस.एस. नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पूर्णतया कार्पोरेट्स लोकतांत्रिक सरकार के रूप में स्थापित हो चुकी है। भारतीय संविधान, कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, मीडिया, बाबूशाही आदि का कार्पोरेट्स लोकतंत्रीकरण लगातार हो रहा है। आज इसका एक प्रमुख उदाहरण भारत के चुनाव आयोग की नियुक्ति और भारतीय न्यायपालिका की मंजूरी है। कांग्रेस पार्टी शुरू से ही उनकी गुलाम रही है। राजीव गांधी, नरसिम्हा राव और डा. मनमोहन सिंह सरकार इसकी खुली समर्थक थी। भारत-चीन युद्ध और लगातार सीमा तनाव, भारत-पाकिस्तान युद्ध, नवंबर 1984 में पंजाब में ऑपरेशन ब्लू स्टार, सिख कत्ल-ए-आम, गुजरात में गोधरा और 3 दिनों के सांप्रदायिक नरसंहार आदि इसी की देन है। राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने और नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री बने। 

वैश्विक प्रभाव : आज की दुनिया में कॉर्पोरेट लोकतंत्र पूरी तरह से स्थापित होता दिख रहा है। भारत में इस साल अप्रैल-मई में होने वाला लोकसभा चुनाव इसी सिस्टम से खुलकर लड़ा जा रहा है। कॉर्पोरेट लोकतंत्र की मुख्य विशेषताएं बदल गई हैं। इसकी मुख्य मांगें सार्वजनिक सबसिडी, निजी मुनाफाखोरी का खात्मा, अमीरों के लिए समाजवाद की स्थापना, गरीबों के लिए पूंजीवाद की स्थापना और आर्थिक सुदृढ़ीकरण के लिए दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में युद्धों को कायम रखना है। एक तरफ, भारत को दुनिया की 5वीं आर्थिक शक्ति बनाना और दूसरी तरफ, सार्वजनिक सबसिडी को जारी रखना है। 

पत्रकारिता पर प्रभाव : लोकतंत्र में पत्रकारिता को चौथा प्रमुख एवं सशक्त स्तंभ माना गया है। पत्रकारिता की स्वतंत्रता लोकतंत्र की प्रमुख विशेषता हुआ करती थी। वह सरकार और समाज को अपनी कमजोरियों का आईना दिखाने के लिए मशहूर हुआ करती थीं। यह स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर खोजी और सनसनीखेज विशेषज्ञता के साथ सच्चाई की खोज करता था। हिटलर, मुसोलिनी जैसे तानाशाहों का झूठा प्रचार ‘वाटरगेट’ के माध्यम से अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन के कारनामों को उजागर करने की ताकत रखता था। 

‘वाटरगेट’ ने  राजनेताओं, सरकारों और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यकों पर अत्याचार, नशीली दवाओं और अन्य मूल्यवान वस्तुओं की तस्करी, कॉल गल्र्स के साथ कवर-अप को उजागर किया। लेकिन आज की कॉर्पोरेट लोकतांत्रिक व्यवस्था में मीडिया उपकरण और पत्रकारिता मुनाफ़े और आजीविका के गुलाम बन गए हैं। स्वाभिमान, स्वायत्तता, उच्च मूल्य, शील, निर्भयता कम होती जा रही है। उत्तरी अमेरिकी कॉर्पोरेट जगत में इंटरनैट, ट्विटर, फेसबुक, गूगल आदि जैसी बेहतरीन मीडिया कंपनियों का दबदबा है। 

कुख्यात कारनामे : विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में युद्ध, युद्ध सामग्री का संचयन इस व्यवस्था का एक प्रमुख व्यापारिक माध्यम बन गया है। 9/11 के बाद युद्ध उद्योग का शेयर बाजार अमर बेल की तरह बढ़ता नजर आया। कार्पोरेटवादियों ने अपनी व्यक्तिगत संपत्ति को समृद्ध करने के लिए निरंतर युद्धों का माहौल बनाया। आज ये युद्ध अफगानिस्तान, इराक, लीबिया, यमन, सूडान, पाकिस्तान, फिलिस्तीन, यूक्रेन आदि में स्थायी रूप लेते नजर आ रहे हैं। मध्य एशिया, ईरान, पाकिस्तान ऐसे आंतरिक-बाह्य युद्धों में उलझे नजर आ रहे हैं। अमरीका की कार्पोरेट लोकतांत्रिक व्यवस्था में शैतान महाशक्ति क्या कर रही है, इस पर ध्यान से विचार करें तो बिल्कुल आश्चर्यजनक दृश्य दिखाई देंगे। इसने 50 से अधिक देशों में तख्तापलट या तख्तापलट की साजिशों को अंजाम दिया है। 30 से अधिक देशों के चुनावों में हस्तक्षेप किया। 20 से अधिक देशों में स्वतंत्रता आंदोलनों को कुचल दिया गया। 

अमरीकी शक्तिशाली कार्पोरेट्स लोकतंत्र की विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य दूसरे देशों को नष्ट करना, आंतरिक गृह युद्ध कराना और आपसी तनाव पैदा करना है। अपने वैश्विक और व्यक्तिगत हितों की रक्षा करना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, स्वतंत्र प्रैस, स्वतंत्रता संग्राम का गला घोंटना है। कार्पोरेट्स लोकतंत्र को जनता से केवल उसी हद तक सरोकार है, जहां तक वह अपने निजी हितों की पूर्ति के लिए विनाशकारी कृत्य करने को तैयार है। यहां तक कि दुनिया भर में नशीली दवाओं की तस्करी और आतंकवादी आंदोलन भी इसकी उपलब्धियां हैं। 

दरअसल, कार्पोरेट्स लोकतांत्रिक व्यवस्था रूस-यूक्रेन युद्ध को जारी रखने के लिए यूक्रेनी जनता की आखिरी आर्थिक बूंद भी चूसना चाहती है। इस युद्ध से आक्रामक पश्चिमी और अमरीकी कॉर्पोरेट लोकतंत्र उजागर हो गया है। अन्य युद्ध क्षेत्रों का भी यही हाल है। कॉर्पोरेट लोकतंत्र का महामारी, अकाल, बर्बादी से कोई लेना-देना नहीं है। इसे केवल और केवल अपने समग्र वैश्विक एकाधिकार से प्यार है।-दरबारा सिंह काहलों

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